मेरी अहमियत
मेरी अहमियत
मैं नहीं जानता कि कौन मुझे क्या कहता है और कौन क्या सोचता है मेरे बारे में। लेकिन अब उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि जब से मैंने लिखना शुरू किया और किताबों से दोस्ती शुरू की है तब से मैं अकेला हो गया हूं।
मैं अपने दिल को हर पल ये दिलासा देने लगा कि किताबें मेरी दोस्त हैं और मैं दुनिया से इस तरह कटता गया। मैंने खुद को एक दिन अकेले कमरे में बंद कर दिया। मैं शायद अकेलेपन का शिकार हो गया था।
मैंने कहीं पढ़ा था कि जब आप एकांत होते हैं तो आपके दिमाग में कई सवाल जन्म लेते हैं। जो आपको मानसिक रूप से बहुत दर्द देते हैं। लेकिन मुझे याद है कि इसी अकेलेपन में मैंने मेरी अहमियत को समझा था।
अब मैं इंसान नहीं हूं। लेकिन फिर भी मेरा सम्मान बहुत करते हैं लोग। जब मैं इंसान था तो इंसानियत के लिए काम करता था लोगों को फ्री में खाना खिलाने के लिए एनजीओ में फ्रि में काम करता था। लेकिन मेरे अकेलेपन से छुटकारा दिलाने के लिए न ही कोई एनजीओ आया ंऔ न ही कोई दोस्त।
"दोस्त सिर्फ कुछ समय के लिए होते हैं। समय के साथ दोस्त आएंगे आपकी जिंदगी में और फिर चले जाएंगे। आप अकेले हैं और अकेले ही रह जाएंगे। आप इसी अकेलेपन में खुश रहना सीखिए।"
~ रंजन साव
अकेलेपन ने मुझे बहुत कुछ सीखाया है। मैंने अच्छे और बुरे में न सिर्फ अंतर करना सीखा बल्कि जीवन के सही मूल्यों की पहचान भी करना सीख गया हूं। मेरी अहमियत बस इतनी है कि मैं अपने मां बाप का एक बेटा हूं। जिसने मुझे मेरे अकेलेपन में कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा।