शक
शक
निशा को कई दिनों से ऐसा शक है कि उसका बेटा सिगरेट पी रहा। कैसे पूछे? क्या कहे? समझ नही पा रही है, वह चाहती है सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। बच्चा बुरी आदत में न फंसे और उसको शर्मिंदा भी न होना पड़े।
उसको व्योम केश बक्शी याद आ गया और उसकी पूरी आत्मा को अपने अंदर उतार लिया निशा ने फिर जा कर बेटे से बोली, "बेटा, सचिन की मम्मी कह रही थी वह सिगरेट पीता है।"
"ऐसा नहीं है मम्मी, और आंटी ने कब देख लिया? किसी ने झूठ शिकायत करी होगी......" सोनू बोला।
"हो सकता है झूठ करी हो, कह नहीं सकती मैं......."
"लेकिन मैं होती तो बिना शिकायत ही जान जाती......." सोनू की माँ ने पासा फेंका।
"वो कैसे माम्?"
"एक-दो बार पीने से भी उंगलियों पर एक निशान सा बन जाता है......" सोनू की माँ विजयी भाव से बोली।
सोनू जल्दी से अंदर जा हाथ झाड़ने लगा और मन से प्रार्थना कि अभी बचा लो भगवान अब कभी नहीं पियूँगा, भूल हुई है मुझ से।
तीर निशाने पर पहुँचा था, अब माँ सुकून में थी।
