शिक्षक
शिक्षक
आज फिर किताबो में सर घुसाए अनिमेष को देख उसकी पत्नी रुचि तुनक कर उससे बोली,
शादी से पहले सुनती थी।
कि सरकारी नोकरी मतलब, मोटी तनख्वाह और आराम का जीवन।पर आपका जो यहां पहले सुबह से शाम तक स्कूल में बच्चो को पढ़ना।
और फिर खुद देर रात तक पढ़ अगले दिन की तैयारी करना। ऊपर से सीमित आय और कोई ऊपरी कमाई भी नही।सच आपकी इस मास्टरी की नोकरी ने तो मेरी सारी सोच ही बदल कर रख दी।
तब रुचि की बात सुन अनिमेष मुस्कुराते हुए उससे बोला, रुचि मैं खुद बच्चों को ईमानदारी की सीख देने वाला एक शिक्षक हूँ।
इसलिये ऊपरी कमाई का तो कोई प्रश्न ही नही बनता।
और रुचि तुम शायद नही जानती,जब माता पिता अपने बच्चों को हमारे पास इस विश्वास के साथ पढ़ने भेजते है। कि एक दिन उनके बच्चे भी पढ़ लिख कर काबिल बनेंगे।
तब उन माता पिता की छोटी छोटी आंखे अपने बच्चों के भविष्य के लिये कई सतरंगी ख्वाब बुनती है।
तब फिर मैं अपने कार्य मे लापरवाही बरत कर भला, उनके इस विश्वास व सपनो को तोड़ सकूं। सच रुचि इतनी हिम्मत तो मुझमे नहीं है।
अनिमेष की ये बात सुन अब रुचि खुद को बहुत शर्मिंदा और निरुत्तर सी महसूस कर रही थी।