शांति का मार्ग
शांति का मार्ग
साधु महाराज नदी में उतरकर जमी हुई काई और गंदगी साफ करने लगे । पुराने शिष्यों के साथ कुछ नए भक्त भी आज सुबह उनके साथ आये थे । एक भक्त बिल्कुल पहले दिन आया था । उसने सुना था कि मन की शांति के लिए बाबा जी अच्छा मार्ग दिखाते हैं । नया भक्त सुबह ही इस सफाई अभियान को देखकर कुछ विचलित हुआ । उसने सहज ही बाबा जी के पास जाकर पूछा ।
"बाबा जी ,क्षमा करें एक प्रश्न है क्या पूछ सकता हूँ,अगर आज्ञा हो ?"
"हाँ क्यों नही,बस थोड़ा रुक जाओ,और अपने प्रश्न के जितने उत्तर तुम स्वयं सोच सकते हो,तब तक सोचते रहो । अभी पानी का बहाव नदी में कम है तो पहले हम ये सफाई का काम निपटा लें,तुम बस देखो और जितना कर पा रहे हो,सफाई में सहयोग दो ।" बाबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा ।नए भक्त ने ये सुनकर हाथ जोड़े और काम करने लगा ।
दो घण्टे काम करते हुए बीत गए । फिर सब हाथ मुंह धोकर एक पेड़ की छांव में बैठ कर जलपान करने लगे ।फिर बाते करते हुए थोड़ा विश्राम भी कर लिया । सामने बहती नदी,आस पास फैली हरियाली और चलती हवा जैसे एक सुकून दे रही थी ।
बाबा जी ने नए भक्त को पुकारा,"आओ भाई,यहां बैठो,बताओ क्या प्रश्न था तुम्हारा ?"
नया भक्त बाबा जी के पास आकर बैठ गया । अब वो थोड़ा कम विचलित था। उसने अपने प्रश्न के सभी संभावित उत्तर मन मे सोचे और प्रश्न की आक्रामकता अब वैसी न रही जैसे पहले थी ।
"बाबा जी मैं तो ये जानना चाहता था कि मन की शांति का नदी की सफाई से क्या सबन्ध है ?"उसने फिर भी पूछ लिया ।
"ये जीवन बहती हुई नदी ही तो है,और इसमें आने वाली हर कठिनाई थोड़े समय के लिए ही टिकती है,पर फिर भी लगातार प्रयत्न करते रहने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है । मैं अकेला इस नदी की सफाई नही कर सकता,तुम सब का सहयोग आवश्यक है । इसी प्रकार जीवन मे भी दुख हो या सुख हो उसे अधिक से अधिक बांट देने से व्यक्ति का चित्त अस्थिर नही होता और ये ज्ञान मिलता है कि सुख और दुख से ज्यादा जरूरी सहयोग है,वो बना कर रखना चाहिए । ये जीवन हमारा अपना है,इसलिए इसे बिना किसी अहंकार और पछतावे के जीना चाहिए और इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि हम जीवित हैं और स्वस्थ हैं । " बाबा जी ने सभी को सम्बोधन करते हुए कहा ।
नया भक्त विचारमग्न हो गया ,उसके बहुत से प्रश्नों के लिए ये उत्तर शायद शांति पहुंचाने वाला था ।