शाकाल के सूरमा
शाकाल के सूरमा
आज शाकाल खुद से ही बहुत नाराज है, उसका समुद्री जजीरा उजड़े पुरे ४० साल बीत चुके है और जजीरे को तबाह करने वाले विजय और रवि की तलाश में उसके सूरमा मुंबई का चप्पा-चप्पा छान रहे है लेकिन उनका कोई कुछ पता नहीं लग रहा है।
जजीरे की तबाही के पूरे ३५ साल बाद जब उसकी याददाश्त वापिस आई तो उसने देखा वो गुलफामनागर के मक्खन हलवाई की दुकान का मुख्य कारीगर है और हर प्रकार की मिठाई बनाने ने निपुण। वह यहाँ कैसे पहुँचा, क्यों पहुँचा किसी को याद नहीं था सबने उसे हमेशा मक्खन हलवाई की दुकान पर मिठाई बनाते हुए देखा था और एक अखाड़े में कुश्ती लड़ते-लड़ते वहाँ का भी उस्ताद बन बैठा था।
याददाश्त वापिस आते ही सबसे पहले शाकाल ने हलवाई की दुकान से मिली अपनी तन्खा से जुए की एक फड़ खोली और एक साल के भीतर ही एक विशाल कैसिनो खोल कर जुए की दुनिया में अपना नाम कमा लिया, अब उसके पास बदमाशों, गुंडों और हत्यारो की फौज थी।चार पैसे कमाते ही और अपनी बढाती ताकत का अहसास होते ही शाकाल को अपने जानी दुश्मन विजय और रवि की याद आई और उनकी तलाश में अपने सूरमा जगह-जगह दौड़ा दिए।
छह महीने की भागदौड़ के बाद शाकाल के सूरमा जब खाली हाथ वापिस आये तो शाकाल अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फेरते हुए बोला, "सिर्फ एक हफ्ते की मोहलत देता हूँ यदि तुम विजय और रवि को ना ढूँढ सके तो मै तुम सबकी खाल खिचवा दूँगा।"
"बोस विजय और रवि के शकल के दो बाबा मेरे गाँव के पास बने आश्रम में मस्ती लूट रहे है.........." शाकाल के गैंग के एक गिरहकट ने कुछ सोचकर कहा।
"सही कह रहा है तू वो दोनों बहरूपिया है, जाओ उन्हें पकड़ कर लाओ......" शाकाल गुर्रा कर बोला।
दो दिन बाद रस्सियों में जकड़े बाबा के भेष में विजय और रवि शाकाल के सामने पेश किये गए तो शाकाल सुलग उठा और गुर्रा कर बोला, "तो तुम दोनों मुझे बर्बाद करके बाबागिरी कर रहे हो?"
"अबे तेरी याददाश्त वापिस आ गई तुझे तो हम मक्खन हलवाई की दुकान पर छोड़ गए थे......." विजय चहक कर बोला।
"तुमने मुझे हलवाई बना कर रख दिया आज मैं तुम दोनों को चीटियों की तरह मसल कर रख दूँगा और फिर अपनी बादशाहत कायम करूँगा।" शाकाल गुर्रा कर बोला।
रवि जो अपने बंधन बहुत पहले से एक ब्लेड से काटने की कोशिश कर रहा था; बंधनो के कटते ही उसके पास खड़े शाकाल के आदमी पर टूट पड़ा और उसकी बंदूक छीन कर शाकाल के सिर का निशाना लगाते हुए बोला, "देखो शाकाल पहले भी तुम हमसे नहीं जीत सके थे, अब भी नहीं जीत सकोगे; पहले भी तुम्हारे बहुत से आदमी मारे गए थे आज भी मारे जायेंगे.....इसलिए बेहतर होगा हम लोग आपस में ही निपट लेते है इससे बहुत खून खराबा होने से बच जाएगा........."
"मुझे अपने आदमियों की कोई परवाह नहीं, मरते है तो मरे........मार दो इन दोनों को......." शाकाल गुर्रा कर बोला।
"कैसी बात करते हो बोस, एक बार हार कर मन नहीं भरा; इनकी बात सही है किसी और तरीके से भी इनसे निपटा जा सकता है......." शाकाल के सूरमा एक स्वर में बोले।
"तुम सब कायर हो, इन्हे मै ही मरूँगा......." शाकाल गुर्रा कर बोला और उसने अपनी रिवॉल्वर निकाल ली।
विजय भी अब तक आजाद हो चुका था उसने एक ईंट उठा कर शाकाल के हाथ पर मारी जिससे उसका रिवॉल्वर दूर जा गिरा।
विजय हँसकर बोला, "देखो शाकाल ये ईंट तुम्हारी खोपड़ी पर भी लग सकती थी, भलाई इसी में है तुम हमारी बात मान लो।"
"शाकाल ने अपने आदमियों की तरफ देखा और गुर्रा कर बोला, "क्या चाहते हो तुम?"
"तुम हम दोनों में से किसी एक के साथ कुश्ती लड़ लो, तुम जीते तो हमारी जान और हमारा आश्रम तुम्हारा और हम जीते तो तुम्हारा कैसिनो और तुम्हारी जान हमारी।"
"तुम मुझसे कुश्ती लड़ना चाहते हो, तुम मुझे जानते नहीं मै गुलफाम नगर के पहलवानों का उस्ताद हूँ।" शाकाल गुर्रा कर बोला।
"यार गुर्रा कम हिम्मत है तो लड़ कुश्ती।" विजय हँसते हुए बोला।
"अभी लो....चलो मेरे अखाड़े की तरफ।" शाकाल गुर्रा बिना गुर्राए बोला।
आधे घंटे बाद हट्टा-कट्टा शाकाल और दुबला पतला विजय अखाड़े में कुश्ती लड़ने को तैयार थे।
"आजा शाकाल......" विजय ललकार कर बोला।
शकाल खुले सांड की तरह विजय पर झपटा, विजय उछल कर उसके रास्ते से हट गया और शाकाल जा टकराया अखाड़े के एक खम्बे से। वो अब मस्त सांड की तरह अखाड़े में लहरा रहा था। तभी विजय ने उसका हाथ पकड़ कर उसे धोबी पछाड़ मारी और शकाल को चित्त कर दिया। कुश्ती के रेफरी ने विजय को विजयी घोषित कर दिया।
"अरे मै अब तक कुश्ती लड़ रहा हूँ, मक्खन हलवाई नाराज होगा......." शाकाल अखाड़े के बाहर रखा अपना धोती कुर्ता पहनते हुए बोला।
"अबे इसे क्या हुआ?" रवि ने हँसकर पूछा।
"भाई तुम लोग कौन हो? पहलवान तुम बहुत कमजोर हो, शाम को मक्खन हलवाई की दुकान पर आना तुम्हे मलाई मार के दूध पिलाऊँगा; अब चलता हूँ।" कहते हुए शाकाल मक्खन हलवाई की दुकान की तरफ भाग निकला।
"लगता है भैया इसको अपनी याददाश्त वापिस आ गई है, मेन कारीगर है ये मक्खन हलवाई के...... चलो भैया अब हमको हमारा कैसिनो दिखा दो।" विजय शाकाल के लोगो से बोला।
"यस बोस, आइये चलिए।" शाकाल के सूरमा सर झुका कर बोले।