Shweta Sharma

Drama

5.0  

Shweta Sharma

Drama

शादी का सपना

शादी का सपना

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"अब मुझे लगता है कि हमें घरवालों से बात कर लेनी चाहिए अपनी शादी के बारे में।" पार्क में सुबोध के कंधे पर सर रख कर बैठी हुई मीता बोली।


"अरे बता देंगे इतनी भी क्या जल्दी है मेरी स्वीटहार्ट।" मीता की आंखों में देखते हुए मुस्कुरा कर सुबोध बेफिक्री से बोला।


"नहीं, अब जल्दी बताना है; वैसे ही मुझे डर लग रहा है कि पता नहीं शादी का सुनकर सब क्या बोलेंगे, लेकिन तुम्हें तो कोई टेंशन ही नहीं है।" परेशान होते हुए मीता ने कहा।


"अरे बाबा टेंशन मत लो; एक दो दिन में बात करते हैं, चलो अभी तो गोल गप्पे खा कर आते हैं बाकी टेंशन बाद में लेंगे।" सुबोध ने मुस्कुराते हुए कहा।


"तुम भी ना एक ही हो सच में; मेरा मूड कैसे ठीक करना है सब पता है तुम्हें; तभी तो गोलगप्पे का नाम ले लिया, क्यूंकि अच्छे से जानते हो कि गोलगप्पे मेरी कमजोरी है।" हंसते हुए मीता बोली।


"डियर, हम तो तुम्हारे बारे में सब जानते हैं; इतने साल का साथ जो है हमारा।" सुबोध बोला।


"हां वो तो है ही, पर अब बातें ही बनाते रहोगे या गोलगप्पे भी खिलायोगे।" बेसब्र होती मीता ने बोला।


"हां हां भाई चलो।" हंसते हुए सुबोध बोला और दोनों खाने-पीने के बाद घर चले जाते हैं।


उसी रात को दोनों की आपस में बात होती है और वो डिसाइड करते हैं कि कल अपने घर वालों से शादी के बारे में बात करेंगे, दोनों को बस यही चिंता है, कि घर वाले शादी कि बात सुनकर क्या कहेंगे।


अगली सुबह दोनों घरवालों से बात करते हैं, पर घरवाले मना कर देते हैं, ये कहकर समाज में हमारा मजाक बन जाएगा अगर ये शादी हुई तो।उसी शाम को पार्क में सुबोध और मीता बैठे हैं, सुबोध मीता से कहता है,

“किसी को हमारी परवाह नहीं है; सब अपने बारे में सोचते हैं; समाज के बारे में सोचते हैं, पर हमारे बारे में नहीं सोचा किसी ने।"


"अब क्या कर सकते हैं; घरवालों के खिलाफ भी तो नहीं जा सकते ना।" मीता हार मानते हुए बोली।


"ये हमारी ज़िन्दगी है तो फैसला भी हम ही करेंगे; जब उन्हें हमारी परवाह नहीं, तो हम क्यों करे।" सुबोध गुस्से में बोला।


"समझने की कोशिश करो; मैं घरवालों के खिलाफ नहीं जा सकती हूं, अगर उन्हें नहीं मंज़ूर तो हम शादी नहीं करेंगे।"


"तो बस यही है तुम्हारा प्यार?" दुखी होते हुए सुबोध ने पूछा।


"प्यार बहुत है, पर समझने की कोशिश करो।" मीता ने दुखी होते हुए कहा।


 "अब मुझे कुछ नहीं समझना, मैंने सोच लिया है कि हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे और अपने अपने दोस्तों को बुला लेंगे और छोटी सी पार्टी दे देंगे सबको।" खुश होते हुए सुबोध बोला।


"पर घरवाले?"


"एक बार शादी हो गई तो फिर वो कुछ नहीं कह पाएंगे।" सुबोध बोला।


"मैं घरवालों के बिना शादी नहीं करना चाहती थी।" दुखी होते हुए मीता बोली।


"करना तो मैं भी नहीं चाहता था, पर क्या करें उन्हें हमारी परवाह ही नहीं।" दुखी मन से सुबोध बोला। दोनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं ये सोचकर कि उनके घरवाले सिर्फ अपना सोच रहे हैं। आगे तय होता है कि 15 दिन बाद 18 मार्च को दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे।


18 मार्च की सुबह मीता सुबोध से कहती है, "देखो अभी भी सोच लो, रहने दो; अगर हमारी खुशी में घरवाले ना हो तो फायदा ही क्या।"


"उन्हें भी तो हमारे बारे में सोचना चाहिए था ना; सोचा उन्होंने? नहीं ना, तो क्यूं परेशान हो रही हो?अब मैं पीछे नहीं हटूंगा, शादी तो होकर रहेगी; आखिर हमारे भी कुछ सपने है।" सुबोध बोला।


"ठीक है, पर घर से क्या कह कर निकलेंगे?"


"मैं तो अभी निकल जाऊंगा; थोड़ा मंदिर में इंतजाम देखना है कि ठीक से हुआ कि नहीं? घर में बोल दूंगा दोस्तों से मिलने जा रहा हूं और मैं जब तुम्हें फोन करूं तो तुम वहां आ जाना ये कह कर की तुम मंदिर जा रही हो; आज तो वैसे भी तुम्हारा व्रत है और तुम मंदिर जाती हो।"


"ठीक है..." मीता ने कहा। सुबोध चला जाता है, पर बहुत समय हो जाता है, लेकिन सुबोध का फोन नहीं आता है; मीता परेशान हो जाती है, फोन करती है, तो सुबोध फोन नहीं उठाता। मीता मंदिर के लिए निकल पड़ती है उसे सुबोध की बहुत चिंता हो रही है, मंदिर में जाकर देखती है कि सुबोध वहीं मंदिर में बैठा हुआ है। मीता सुबोध से पूछती है कि, "तुम ऎसे बैठे क्यूं हों; फोन क्यों नहीं किया मुझे?”


सुबोध एक तरफ इशारा करता है, तो वो देखती है कि सामने घरवाले होते हैं और आकर कहते हैं कि ये शादी वो नहीं होने देंगे; कभी भी नहीं।


घरवाले उन्हें कार में बैठने का इशारा करते हैं और घर चलने के लिए कहते हैं। दुखी मन से सुबोध और मीता कार में बैठ जाते हैं, कार चल देती है, पर कार घर की तरफ ना जाते हुए कहीं और ही रास्ते पर जा रही है; सुबोध और मीता हैरान हो जाते हैं, लेकिन कुछ नहीं कहते; कार एक जगह रुकती है।


घरवाले सुबोध और मीता को कार से उतरने के लिए कहते हैं; मीता और सुबोध देखते है कि सामने एक होटल है और घरवाले दोनों को होटल के अंदर आने के लिए कहते हैं, अंदर जाकर जो वो देखते हैं वो उन्हें पूरी तरह हैरान कर देता है, क्यूंकि वो होटल के एक हॉल में खड़े हैं जो पूरा सजाया हुआ है और उनके रिलेटिव, फ्रेंडस और फैमिली सब वहीं हैं।


"सुबोध घरवालों से पूछते हैं, ये सब क्या है? हमें तो कुछ बताया नहीं।"


"सरप्राइज पहले से बताया नहीं जाता है पापा, आपको क्या लगा था कि हम आपका और मम्मी का सपना पूरा नहीं करेंगे।" सुबोध और मीता के बेटे रवीश ने कहा।


"हां पापा हम तो सिर्फ नाटक कर रहे थे।" हंसते हुए रवीश कि पत्नी अमिता बोली।


"हां पापा हम जानते हैं कि जब आपकी शादी हुई थी, तो उस समय का माहौल अलग होता था। दूल्हा-दुल्हन अपनी शादी में एन्जॉय नहीं कर पाते थे, जैसे आज करते हैं, खूब साथ में फोटोज क्लिक करते हैं, तो मम्मी का भी मन हुआ कि काश हमारी भी इस तरह से शादी होती और आप तो मम्मी को बहुत प्यार करते हो, आप दोनों का प्यार तो वक़्त के साथ और गहरा हो रहा है, इसलिए तो आपने मम्मी को वादा किया था कि आप दोनों की पचासवीं सालगिरह पर आप दोनों दोबारा शादी करोगे और वो भी वैसे ही जैसी मम्मी चाहती है; मम्मी के इस सपने के बारे में आपने हमें भी बताया था, तभी हमने सोच लिया था कि हम इसे पूरा करेंगे और आज वो दिन आ गया, तभी तो हम अमेरिका से एक महिने की छुट्टी लेकर आए इस शादी के लिए, जिससे सारे प्लान बना सके; हम तो एक महिने से तैयारी कर रहे है।"


"और हमको तुमने पता भी नहीं लगने दिया।" मीता ने हैरानी से कहा।


"पता लग जाता तो सारा सरप्राइज खराब हो जाता ना मम्मा।" हंसते हुए सुबोध और मीता की बेटी संजना ने कहा, जो अपने पति आकाश, बेटे समर और बेटी कीर्ति के साथ आई थी।


सुबोध और मीता की आंखों में आंसू आ जाते हैं। सुबोध मीता से कहता है, "देखा तुम्हारे बच्चो ने तुम्हारा सपना पूरा कर दिया।"


"अरे मम्मी-पापा रोने का टाइम नहीं है; शादी का मुहूर्त निकल जाएगा; जल्दी चलिए।" रवीश हंसते हुए बोला।


"आज तो दादा-दादी कि शादी देखेंगे, आई एम वेरी एक्साइटेड।" खुश होते हुए रवीश और अमिता कि बेटी मिष्टी ने कहा।


"अरे हम खुद मम्मी-पापा की शादी देखेंगे।" हंसते हुए संजना बोली।


"चलो मेरी स्वीटहार्ट शादी करते हैं,” सुबोध मीता से बोले।


"चलिए!" शरमाते हुए मीता बोली।

और दोनों की शादी धूमधाम से संपन्न हुई वैसे ही जैसे मीता चाहती थी।


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