सेफा ..

सेफा ..

34 mins
671


सेफा परेशान मुद्रा में बार बार... घड़ी और फिर द्वार के तरफ देख रही है। हरीश को उसने सबेरे ही बता दिया था कि शाम के "आनंद" वाले शो की एडवांस टिकट्स उसने बुक कराये है। पौने छह हो रहे है हरीश अभी तक नहीं आया है, वह मन ही मन हरीश को कोसे जा रही है। तभी फोन की घंटी बजती है, वह परेशान कदमों से बढ़ रिसीवर उठाती है।उसके हैलो कहते ही क्लिनिक से चौकीदार की आवाज सुनाई पड़ती है, मेमसाहब, साहब कह कर गये है है कि वे 10 बजे घर पहुँचेंगे बता देना। आगे कुछ सुनने के पूर्व वह फोन काट देती है।


उसके मुख पर क्रोध मिश्रित परेशानी के भाव परिलक्षित होते है। हारे कदमों से वह बेडरूम के तरफ बढ़ती है। सेफ़ा की सास अंजलि जिससे सेफ़ा की बोलचाल बंद है, उसे परेशान देख मुस्कुराती है एवं रसोई में चली जाती है। आसमानी रंग की साड़ी जिसे उसने कुछ देर पहले बड़े मन से पहनी थी वह बेडरूम में जाकर बदलते हुए उसकी आकर्षक आँखों में आँसू की बूँदें झिलमिलाने लगती है। हरीश जो एक डॉक्टर है उससे शादी की बात सुनकर उसे अपने भाग्य पर आज से छह महीने पूर्व बहुत गर्व हुआ था। किन्तु शादी के बाद हरीश का अहंकारी स्वभाव एवं संकीर्ण विचारधारा से सेफ़ा का उसके प्रति लगाव निरंतर कम होता जा रहा था। कुछ दिनों से हरीश की कुछ बुरी आदतों के बारे में इधर उधर से भनक पड़ रही थी। यही सब सोचते हुए साड़ी घड़ी करके जब वह वार्डरोब खोलती है तब तक वह सिसकने लगती है। वार्डरोब में साड़ी टाँगते हुये उसे अपनी नीले कवर वाली डायरी दिखाई देती है। वह डायरी उठा वार्डरोब बंद करती है, एवं आँसू पोंछते हुए बेड पर जा लेटती है। जिसमें पिछले छह-सात सालों से अपनी विशेष अनुभूतियों को वह लिखती रही है। उदासी और तन्हाई के इन क्षणों में अनायास इस डायरी को पढ़ने की इच्छा होती है। वह बेड पर लेट कर उसके पन्ने पलटने लगती है। एक पृष्ठ पर उसकी दृष्टि ठहरती है, उसे वह पढ़ती है -


13-05-1977 

आज जबसे मैं 'कच्चे-धागे' फिल्म देखकर आई हूँ, मन बड़ा बैचैन सा, विचित्र ख्यालों से उल्लासित है। वजह फिल्म नहीं बल्कि एक संक्षिप्त सी फुसफुसाहट रूप में वार्तालाप है जो कि बाजू की सीट पर बैठे कदाचित नव-विवाहित युगल के बीच में हो रहा था। लड़की स्वर - ऐये तुम सीधे बैठते हो या नहीं?

शरारत पूर्ण पुरुष स्वर में उत्तर - नहीं तो क्या करोगी?

बनावटी गुस्से में डूबा, प्रसन्न नारी स्वर - मैं अभी उठकर घर चली जाऊँगी। 

अच्छा घर में माँ से क्या कहोगी? (पुरुष )

ऐये तुमको मस्ती के सिवा कुछ बनता है या नहीं? साथ ही दोनों की हँसी गूँजती है क्रमशः धीमी होती हुई। अब शायद लाजवश नव-विवाहिता ने अपना चेहरा पुरुष के सीने में छुपा लिया था। 

यही है मेरे विचित्र मनोदशा का कारण, सोच रही हूँ कितना मधुर होता होगा इस तरह पति के साथ फिल्म देखना। सोचती हूँ - क्या मुझे भी मिलेगा ऐसा जीवनसाथी? शायद नहीं, ऐसे भाग्य मेरे कहाँ?

आज से 7 वर्ष पूर्व सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में लिखे में 'शायद' आज उसे यथार्थ में लोप हुआ लगता है। सचमुच छह महीने हुए शादी को डॉ. हरीश 2 बार साथ फिल्म दिखा सके, जिसमें सेफ़ा के साथ यूँ बैठते जैसे दो दुश्मन मजबूरन करीब बैठे हों! सोचते हुए उसकी आँखों में पुनः आँसू भर आते है। डायरी के पन्ने उलटते हुए फिर दृष्टि एक पृष्ठ पर ठहरती है -


दि. 31-07 -78

आज सबेरे... से मुझे अच्छा नहीं लग रहा, क्योंकि आज ही शिशिर भैय्या, नवविवाहिता पत्नी रश्मि भाभी के साथ कश्मीर जा रहे थे। भैय्या एवं भाभी के चेहरे उल्लास से दमक रहे थे। भाभी तो इतनी ज्यादा प्रसन्न थी कि किसी काम में चित्त ही न लग रहा था। उनकी आँखें स्वप्निल दिख रहीं थी, शायद पति के साथ यात्रा के सुखद कल्पित चित्र उनकी अंखियों में तैर रहे थे। वे इतनी रोमांचित लग रही थी कि बार बार काम गलत कर रही थी। जाने के लिए जब कार में सवार हुई थी उनके कंधे पर पर्स टँगा न दिखाई दिया। मैंने रोका और अंदर से उनका पर्स लाकर दिया और कहा, भाभी अगर आप इतनी भुल्लकड़ है तो मुझे भी साथ कश्मीर ले चलो, अपनी मदद के लिये। 

जल्दी न मचाओ सेफ़ा, पहले हम तुम्हारे लिए एक अच्छा वर तलाश ले फिर जाना उनके साथ, कहते हुए भाभी शरारत से हँसने लगी। उन्होंने सहज ये शब्द कहे और चली गई, पर इन शब्दों ने मुझे कल्पना लोक में पहुँचा दिया। जहाँ मैं कभी कल्पनाओं के पति के साथ ट्रेन में बैठे यात्रा करती तो कभी, रेस्टारेंट में ठिठोली के साथ खाना खाती दिखाई पड़ती। कल्पना में क्या-क्या आ रहा है, लिखना भी नहीं बनता, पर एक आशंका से मन उदास हुआ कि क्या मेरे पति मुझे हनीमून पर दुनिया घुमायेंगे भी नहीं।


शायद मन में उठती आशंकाओं संबंध कभी कभी भविष्य में होने वाली बातों से होता है। 6 साल पहले की आशंका मेरी शादी के बाद सही साबित हुई। हरीश व्यस्तताओं का कारण बता हनीमून का प्रोग्राम नहीं बना सके। अनायास ही सेफ़ा का मन ज्यादा कसैला हो गया।

फिर भी अतीत अनुभूतियों को पढ़ने के लिए उसकी उँगलियाँ पन्ने उलटने लगी और फिर दृष्टि ठहरी इस पृष्ठ पर -


दि. 04-04-79 

आज दुर्भाग्यवश मुझे एक सास का बहू के साथ दानवी व्यवहार का साक्षी होना पड़ा। हुआ यों कि जब मैं सलवार की कटिंग सीखने के विचार से ममता भाभी (पड़ोस में) के घर गई तो उनके आँगन में कदम रखते ही मुझे उनकी सास का क्रोध पूर्ण स्वर सुनाई दिया - आय हाय, रानी जी फुल स्पीड में पंखा चला पसरी हुई है, बिजली का बिल क्या बाप भरेगा और बर्तन क्या तेरी माँ आकर माँझेंगी? चल उठ फटाफट बर्तन साफ़ कर। सच में, मैं तो ठगा गई मेरा बेटा तो ओवरसियर था, पौन लाख तो कोई भी देता, मेरे करम फूट गये जो तुझे उठा लाई। 

और भी न जाने क्या क्या ममता भाभी को सुनाती रही उनकी सास, मेरी तो हिम्मत इतना सुन पस्त हो गई, मैं उलटे पैर घर लौट आई।

इतनी गर्मी में फैन चलाने पर पाबंदी, ऐसी विवाहिता होने से कुँआरी रह जाना बेहतर होता! सोचते हुए सेफ़ा डायरी बेड पर एक तरफ फेंक देती है, उसकी हिम्मत आगे पढ़ने की नहीं रहती है। उसे ऐसा लग रहा है कि जैसे आज वर्तमान हो रही घटनाओं की परछाई उसने पूर्व में ही डायरी में लिखीं इन घटनाओं के माध्यम से देख ली थी। 

उसे नहीं मालूम था की ममता भाभी से कठोर सास उसके भाग्य में है। हरीश की माँ को, हरीश के डॉक्टर होने का बड़ा गुमान था। दहेज में सेफ़ा को मायके से बहुत कुछ मिला था पर भी सास प्रसन्न नहीं थी। सेफ़ा को उसने सच्चे-झूठे इल्जाम लगा कर उसके उलाहने इधर उधर बुराई जैसे कहना उन्होंने अपना कर्तव्य जैसा मान रखा था। पिछले रविवार को जब उनकी पड़ोसन मीरा चाची बोली, क्यों सेफा तुम कितना घी खाती हो? तुम्हारी माँ जी कह रही थी, तुम बहुत घी ढकोसती हो! 16 लीटर का टिन पहले चार महीने चलता था अब एक महीने में खत्म हो जाता है। मीरा चाची के सामने सेफ़ा को कुछ बोलते नहीं बना, उनके सामने रो नहीं दे, उससे बचने के लिए, उसने जल्दी विदा ले ली। 

साधारण मात्रा में भी नहीं खाने के लिए मम्मी-पापा उसे कितनी बार डाँटते थे, अपने हाथों से जबरदस्ती खिलाया करते थे। इस पर जब, माँ जी का यह झूठा आरोप सुनने मिला तो वह तिलमिला के रह गई। हरीश से कहने का विचार उसके क्षण भर को मन में आया लेकिन उसने हरीश से कुछ कहना उचित नहीं समझा, क्योंकि उसे लगता था जैसे कि हरीश खुद भी अपनी माँ के सेफा के प्रति ऐसे व्यवहार का समर्थक था। 

अपने घर में लाडली सेफा ने कभी किसी चीज का अभाव या अपनी इच्छा का तिरस्कार होते नहीं देखा था। निरंतर अपने प्रति पति और माँ जी की उपेक्षा और कठोर और छल के व्यवहार से वह दिन प्रति दिन टूटती जा रही थी।


इन सभी बातों को याद से सेफा एकदम तड़फ उठी और सिसकने लगी। उसकी आँसू भरी आँखों में ना जाने क...ब नींद ने अधिकार किया उसे याद न रहा। उसकी नींद कानों में, डोर बेल की आवाज से खुली, घड़ी देखी तो रात का एक बजा था। बगल में बेड खाली पड़ा था, इसका अर्थ हरीश अभी आया था, शायद। हरीश का इतनी देर से घर लौटना वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। उसने पहले डायरी यथा स्थान रखी तब जाकर द्वार खोला, द्वार खोलते ही हरीश का थर्राया स्वर सुनने मिला - कहाँ मर गई थी, कितनी देर से बाहर खड़ा हूँ ? पहले ही गुस्से में भरी बैठी सेफा ने इस अपमानजनक व्यवहार पर उत्तर देना ठीक नहीं समझा और बेडरूम के तरफ बढ़ गई। लेकिन तभी उसे हैरान रह जाना पड़ा क्योंकि हरीश ने पीछे से उसके बाल पकड़ के जकड़ लिया और पुनः गुस्से से बोला, जबाब क्यों नहीं देती?

इस बात से ज्यादा उसका ध्यान हरीश के मुहँ से आ रही बुरी गंध पर गया, हरीश ड्रिंक किये हुए था। उसने आश्चर्य एवं भय से पूछा, क्या आप शराब पीकर आये है?

तू कौन होती है पूछने वाली? नशे में लड़खड़ाती आवाज में हरीश बोला। 

पत्नी हूँ आपकी, बोलो क्यों पी? कह कर, सेफ़ा बेडरूम में रोते हुए बिस्तर पर बैठ गई।


पीछे हरीश, पेंट-शर्ट उतारते हुए बोला, हेह-पत्नी, भूल जा यह बात... मेरी पत्नी गीता है, गीता, समझी? चुड़ैल जैसी सूरत है तेरी और कहती है, पत्नी हूँ आपकी, हेह। कहते हुए वह बिस्तर पर हाथ-पैर फैला के आ पसरा। 

निरंतर अपमान और उस पर कोई गीता का नाम हरीश से सुन सेफ़ा एकदम आवाक रह गई, कई आशंकायें उसके मन में जन्म लेने लगीं इस बारे में हरीश से कोई जानकारी ले पाती उसके पूर्व ही हरीश के खर्राटे की आवाज उसके कानों में पड़ी। 

लड़का अच्छा है, सिगरेट पीता है लेकिन कोई खास बात नहीं। आजकल तो यह आम बात है यह बताया गया था, उनके रिलेटिव द्वारा, सेफ़ा की मम्मी-डैडी को, तब सेफ़ा पास बैठ सुन रही थी। किंतु डॉक्टर है, इस विशेषता ने इस (स्मोकिंग) बुराई को अनदेखा कर दिया था, डैडी-मम्मी ने। सेफ़ा को भी ऐसा ही समझा दिया गया था। 

कुछ दिन पूर्व एक पड़ोसन से सेफ़ा ने यह भी सुना था कि हरीश बड़ा जुआं भी खेला करता है। तो उसको इन बातों पर भरोसा नहीं हुआ था, उसने पड़ोसन को तब झिड़क दिया था कि क्या उटपटांग बकती हो। आज सब सामने था - शराब, गीता, अपमान सब, अब वह बात भी सच ही होगी। 

उसे - कुछ ही क्षण पूर्व सुनी बात याद आ गई-"चुड़ैल जैसी सूरत है तेरी और कहती है, पत्नी हूँ!" सब सुन देख सेफ़ा का मन हुआ कि जो जूते हरीश ने अभी उतारे है उन्हें ही लेकर पिल पड़े, इस राक्षस पर, जो पूरे बिस्तर पर पसर कर सो गया है। लेकिन सेफ़ा ऐसा कर ना सकी। पत्नी की मर्यादा से मुक्त नहीं हो सकी थी वह। 

यही सूरत सेफ़ा जानती थी, बहुत सुंदर ना सही पर इतनी आकर्षक तो थी कि कोई घृणा न कर सके। सहसा उसे रोमेश की याद हो आई, दो वर्ष पूर्व उसकी बुआ के घर उससे मुलाकात हुई थी। रोमेश, सेफ़ा की बुआ के किसी रिश्तेदार का बेटा था और इंजिनियरिंग के चौथे वर्ष में पढ़ रहा था। रोमेश ने स्पष्ट तो सेफ़ा से कभी नहीं कहा कि वह उसे चाहता है-प्यार करता है, किंतु एक युवती के लिए यह समझ पाना कठिन नहीं होता कि कौन लड़का उसे प्यार की नज़र से देखता है। यही वजह थी रोमेश के मूक प्रेम को सेफ़ा समझ गई थी। लेकिन कम आकर्षक रोमेश के मूक प्रेम को, सेफ़ा ने गम्भीरता से नहीं लिया था। और न ही कभी रोमेश का साहस हुआ था कि वह सेफ़ा के सामने कुछ कह कर प्रकट कर सके।

उसके प्रति रोमेश की चाहत की पुष्टि उसे तब हुई जब वह अपनी सगाई के बाद बुआ जी के घर गई। वहाँ चर्चित विषय यह था कि जाने रोमेश को क्या हुआ, वह इंजीनियरिंग फाइनल की एग्जाम से ड्राप ले रहा है। वह 10-12 दिनों से ढंग से खाता-पीता नहीं, उदास रहता है, किसी से बात भी नहीं करता। सेफ़ा को समझते देर ना लगी, निश्चित ही, सेफ़ा की सगाई हो जाना ही उसकी इस हालत का कारण है। लेकिन सेफ़ा, बुआ से क्या कहती? उसे रोमेश के प्रति सहानुभूति अवश्य हुई थी, उसने कोशिश की थी कि वह रोमेश से मिल सके और संभव हो तो उसे समझाये किंतु उसकी मुलाक़ात रोमेश से नहीं हो सकी। शायद रोमेश जानबूझकर उससे दूर रहना चाह रहा था। वह चली आई और शायद उसके बाद आज वह पहला दिन था जब उसे रोमेश का ख्याल आया था।


रोमेश से हटकर जब उसके ख्यालों ने वर्तमान की अनुभूति ली तो वह दुखी हो गई, इस घर में उसे किसी से प्यार ना मिला था, माँ जी तो लालची इतनी कि हीरे-जवाहरात का खजाना भी मिल जाए तो कमी ही लगे। उन्होंने हमेशा दहेज का ताना ही दिया था। उनमें संकीर्ण विचार एवं ओछापन इतना कि यदि कोई नई साड़ी, सेफा शौक से पहन ले तो वही उन्हें खटक जाए। इन्हीं कारणों से धीरे-धीरे दोनों के बीच अनबोला ज्यादा रहने लगा था। हरीश जो कि शुरू में कभी तो कुछ अच्छा बोल लिया करते थे लेकिन अब वह भी उसके प्रति उदासीन होते जा रहे थे, और आज तो हरीश ने हद कर दी थी। 

सोने के लिए कुछ सुखद विचार जरूरी थे, सेफा ने स्वयं को समझाया, शायद हरीश शराब के नशे में आएं बाएं बक गए है। सुबह इनसे बात करूँगी, यह तसल्ली मन को देते हुए सेफा सोने का प्रयत्न करने लगी। 

10 बजे सुबह जब हरीश तैयार होकर डायनिंग टेबल पर पहुँचा तो उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे जिससे लगे कि रात की घटना से उसे कोई पश्चाताप हुआ हो। अनमनी सेफा ने उसके लिए नाश्ता लगाया और टेबल पर दूसरी ओर बैठ गई। कुछ बोलने की शायद वह, हिम्मत जुटा रही थी। पर वह बोले उसके पूर्व ही हरीश रूखी आवाज में बोला - कॉलेज के समय से ही मेरी सहपाठी गीता से मेरे प्रेम संबंध रहे है, 3 वर्ष पहले से हमारे बीच पति-पत्नी जैसा सब कुछ रहा था, लेकिन लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व कुछ गलतफहमियों ने हमारा वह मेलजोल खत्म कर दिया था। 

हरीश ने रूककर चाय के कुछ घूँट लिए, तब सेफा बैचैनी से आगे की सुनने के लिए पहलू बदलने लगी। हरीश ने आँखे नीची रख फिर बोलना शुरू किया - इस बात से गीता ना जाने कितनी दुखी रही मुझे नहीं मालूम किंतु मेरा मन नहीं लगता था। कभी लगता कि स्वयं इंजेक्शन लेकर जान दे दूँ। खैर यह सब तो नहीं हुआ, लेकिन मैंने बिलासपुर छोड़ा और 1 वर्ष पूर्व यहाँ आकर प्रैक्टिस आरंभ कर दी। मुझे लगा गीता के बिना जीने के लिए उससे दूर हो जाना, ठीक रहेगा। धीरे-धीरे व्यस्तता बढी और गीता के ख्याल कम होने लगे। एक पॉज लेकर, हरीश ने सेफा की ओर देखा और उसकी तरफ देखते हुये बोला - तुमसे शादी मैं कभी नहीं करना चाहता था, तुम ना तो डॉक्टर और ना ही सुंदर हो। लेकिन तुम्हारा धनवान घर से होना मेरी माँ को भाया और दहेज लालची मेरी माँ ने ऐसी परिस्थिति खड़ी कर दी कि मुझे तुमसे शादी करनी पड़ी। पुनः चाय के लिए हरीश रुका य, इस बार कुछ सोचते हुए चाय पूरी खत्म करने के बाद बोला - तुम्हारे लिए मेरे हृदय में प्यार कभी आया नहीं, तुम्हारी शक्ल भी मुझे कभी नहीं भायी। शारीरिक सम्बन्ध तो शरीर की एक जरूरत है, जो तुम हमबिस्तर होती थी इसलिए होते रहे। 

यह सुनते ही सेफा का मन बुरी तरह आहत हुआ वह प्रतिरोध के स्वर में बोल पड़ी, जब आपकी मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं थी तो क्यों आपने मेरी ज़िंदगी और भावनाओं से खेला? हरीश कठोर स्वर में बोला, चुप होकर सुनो, बीच में मत बोलो। मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं कि तुम पर मेरे कारण बुरी बीतेगी, पश्चाताप, निकम्मों का काम है, वो करते है। एक महीने पहले गीता के पापा का यहाँ ट्रांसफर हो गया है, गीता भी यहीं, जिला अस्पताल में जॉब करने लगी है। मेरी और उसकी अब पुनः ठीक हो गई है। हमारे बीच गलतफहमी अब नहीं रह गई है। अब हम एक दूसरे के बिना नहीं रहा सकते है।


आगे कुछ हरीश कहता इसके पूर्व ही सेफा के मुख से रुलाई फूट पड़ी। अपने दुर्भाग्य से वह बहुत ज्यादा भावुक हो गई थी। रोते हुए बोली, एक लड़की के स्वप्नों से इस तरह से खेलने का अधिकार नहीं होता किसी व्यक्ति को, विवाह तक कर लो और उसे प्यार-सम्मान से घर में जगह नहीं दे सको-क्या खिलवाड़ है? चुप क्यों हो गये कह डालो अपने मन की सब, आज। अविचलित हरीश पुनः कठोर स्वर में बोला, देखो ये रोना-आँसू बहाना बंद करो मेरे लिए कोई महत्व नहीं है इन बातों का। मैं अब... सिर्फ यही कहना चाहता हूँ कि मैं और गीता अब निश्चय कर चुके है कि हम दोनों साथ रहेंगे। यदि शादी होना संभव नहीं भी हुआ तो भी हम साथ रहेंगे। इसके लिए किसी का कितना भी विरोध और आलोचना हो हम सामना करेंगे बस अब हम अलग न होंगे। और रहा सवाल तुम्हारा तो तुम अपने मायके में या जहाँ चाहे रहो, चाहो तो यहीं घर पर रहो। मैं तुम्हारे भरण-पोषण योग्य तुम्हें देता रहूँगा, बस। यह कहकर हरीश उठकर जाने लगा, लेकिन पीछे आई सेफ़ा की चीखती आवाज सुनकर उसे रुक जाना पड़ा। सेफ़ा कह रही थी, पैसे की धौंस दिखाते हो मुझे? सुनो - वह पत्नी धर्म था जिसे निभाने के लिए चुप थी। धैर्य से सह रही थी कि आगे, शायद सब ठीक हो जाएगा। नहीं तो, आपने शराब पीकर आकर जिस तरह कल मेरे बाल पटाये थे और दुर्व्यवहार किया था, रात ही यहाँ से चली गई होती। कहते हुए सेफ़ा क्रोध आधिक्य में कंपकंपाने लगी थी। सेफ़ा का चिल्लाना सुनकर, माँ भी उनके रूम में आ पहुँची - उनके समक्ष हरीश ने सेफा के गाल पर एक चाँटा मारा और बोला, तमीज से और धीरे बोल, समझी? लेकिन इससे सेफा अति आवेश में आ गई, अब उसने रोना बंद कर दिया और आँसू पोंछ लिए। कटुता से बोली, नारी पर हाथ उठाते हो और तमीज से बोलने की सीख देते हो। तुम हैवान कर भी क्या सकते हो। निसहाय-भूखी समझ लिया है क्या, मुझे? मानव शक्ल में हैवान, तुम सुनलो - तुम्हारे माध्यम से मिला अब पानी भी मुझे पीना मंजूर नहीं। तुम्हारी यह घिनौनी करतूत, तुम्हारी शक्ल भी अब देखना पसंद नहीं। एक क्या अब 10 गीता रख लेना, मैं अभी यहाँ से चली, समझे? कहते हुए सेफा बेडरूम में चली गई। हरीश और उसकी माँ चुप होकर उसे जाता देखते रहे। हरीश के चेहरे पर विजेता वाले भाव थे जबकि माँ प्रश्न पूर्ण दृष्टि से हरीश को देख रही थी। हरीश ने उनकी उत्सुकता की परवाह नहीं की सिर्फ इतना कहा, देखना माँ, वह कोई कीमती सामान ना ले जाये। मैं क्लिनिक जा रहा हूँ, कहते हुए वह चल दिया। उसकी चाल और मुख पर भाव इतने नियंत्रित थे, देख लग ही नहीं रहा था कि कुछ उसने बुरा किया है।


सेफ़ा को अचानक आया देख, मम्मी-डैडी एवं भाई अचरज में पड़ गये। निश्चित ही वे खुश होते यदि सेफ़ा का मुख गहन गम्भीर ना देखते। मम्मी ने पूछा, सेफ़ा बिना सूचना के आई, सब ठीक तो है ना?


मम्मी, पहले एक कॉफी बनवा दीजिये मैं कुछ बताने ही आई हूँ, कहते हुए सेफ़ा, सोफे पर जा बैठी। चिंतित मम्मी ने, रश्मि भाभी को इशारा किया और स्वयं सेफ़ा के पास बैठ गई। उन्होंने सेफ़ा का सिर गोद में लिया और बालों पर ममता का हाथ फेरने लगी, डैडी ने भी एक चेयर पास खींची और बैठ गये। उन्होंने सेफ़ा का हाथ अपने हाथों में ले लिया और थपकी देने लगे।

माँ की गोद किसी बच्चे के लिए कितनी सुरक्षित होती है यहाँ इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता था कि अनिश्चित भविष्य एवं विषादपूर्ण घटना से चिंतित सेफ़ा अपनी मम्मी की गोद एवं स्पर्श तथा डैडी के हाथों की थपकियों से पल भर में ही बेपरवाह हो निद्रा मग्न हो गई। रश्मि जब कॉफी लेकर आई तो उसे मम्मी ने चुप रहने का संकेत किया। इधर मम्मी-डैडी, सेफ़ा के अचानक आने से कई तरह की आशंकाओं में डूब गये। सेफ़ा को सोफे पर ही व्यवस्थित करके उन्होंने हरीश को फ़ोन बुक किया, ऑपरेटर से यह सुन कॉल लगने में चार-पाँच घंटे लगेंगे वे खिन्न हो गये। और वापिस आ बैठे। दो घंटे बाद जागने पर कॉफी पी कुछ स्वस्थ हुई सेफ़ा ने अपने साथ घटा, प्रत्येक अंश सबको सुनाया तो सभी के क्रोध की सीमा न रही। शिशिर भैय्या तो एकदम उत्तेजित हो गये, बोले, समझता क्या है अपने आप को कमीना? जीने नहीं दूंगा उसे और एकदम बाहर को जाने लगे... डैडी ने पकड़ कर रोका उन्हें और समझाया एवं अपने पास बिठा लिया। वे स्वयं भी खासे गुस्से में थे, बोले विवाह संबंध ऐसे थोड़े टूटते है? कोर्ट में खींचूँगा देखता हूँ गीता को कैसे रखता है। और भी बहुत कुछ सब कहते रहे।

तब सेफ़ा ने निर्णयात्मक स्वर में सबसे कहा, आप कृपया कुछ भी न कीजिये। कोर्ट में जीतने के बाद भी मैं अब हरीश की पत्नी हो...कर नहीं रह पाऊँगी। उसने जिस तरह मुझे अपमानित किया है, उसकी जो निपट स्वार्थी प्रवृत्ति है, जो अमानवीय विचार धारा है - 'ये सब' मुझे कभी भी अब अपना पति स्वीकार ना करने देगी। मैं आगे के अपने जीवन में उसका नाम तक लेना पसंद ना करूँगी। सेफ़ा की दृढ़ता और स्पष्टोक्ति से सब चुप हो गये। सेफ़ा पर अत्याचार से सबको सदमा लगा ही था, जो वेदना हुई थी वर्णन के लिए, कोई भी शब्द नाकाफी थे। कुल तथ्य यह था, उस सुखी घर का वातावरण को अब विषाद ने घेर लिया था।


दोनों पक्षों की सहमति होने के कारण सेफा को हरीश से डिवोर्स शीघ्र ही मिल गया। कहते हैं समय विकट से विकट घाव भी भर देता है। धीरे-धीरे घर का वातावरण सामान्य सा होता गया। कुछ कम ही सही पर शिशिर-रश्मि और सेफा की हँसी -किलोल घर में पुनः गूँजने लगी। अवश्य ही मम्मी-डैडी के लिए यह इतना आसान नहीं था। 'निर्दोष-मासूम' डिवोर्सी बेटी के माँ-पिता की मानसिक दशा क्या होती है, दूसरों के लिए कल्पना कर पाना सरल नहीं होता है। लेकिन जैसे भी था, समय गुजरने तो लगा ही। मम्मी-डैडी का खामोश उदास रहना, धीरे-धीरे सेफा को अखरने लगा। विनोदप्रिय मम्मी-डैडी, उसके कारण नीरस से हो गए है, इस अहसास ने सेफा को परेशान करना आरम्भ कर दिया। कभी कभी तो उसे लगता कि डिवोर्स लेकर कोई गलती तो नहीं कर गई वह। लेकिन पूर्व-पति के अत्याचार-दुर्व्यवहार और चरित्र हीनता वह भुला नहीं सकती थी। उसने मन ही मन संकल्प किया वह कभी अपने आप को कमजोर सिद्ध नहीं होने देगी। लेकिन घर की ग़ायब हुई हँसी ख़ुशी और बाहर वालों के व्यंग्य मन को छलनी कर देने वाले होते थे। एकबारगी तो सेफा को लगा कि उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए। लेकिन मम्मी-डैडी पर उसके मौत का एक और दुख, कहीं उनके लिए प्राण लेवा तो नहीं हो जायेगा इस विचार ने उसको ऐसा करने से रोक दिया। वह आत्महत्या कर लेने से कमजोर कायर भी कही जायेगी, यह विचार भी उसे नापसंद था। वह अपने को दृढ रखने की कोशिश लगातार करती रहती। वह साहसी नारी बन इस पुरुष प्रधान समाज के समक्ष एक उदाहरण बनना चाहती थी, कि पुरुष के अत्याचार के आगे बिना झुके दृढ़ता से कैसे रहा जाता है। यद्यपि सारी आशावाद की बातों से अलग जीवन की काँटों भरी राहों पर - पुरुष का साथ आवश्यक है, उसे यह अहसास अक्सर होता रहता था। समाज की कठिन रीत के समक्ष 'पति' का होना, नारी की बहुत बड़ी सुरक्षा थी।

एक दिन जब इस दृष्टिकोन से जब सेफ़ा विचारमग्न थी तो उसके मन में अचानक 'रोमेश' का विचार उमड़ आया। रोमेश के ख्याल आते ही सेफा को जाने क्यों लगा कि वह निश्चित ही उसके जीवन का नवनिर्माता सिद्ध होगा। उस दिन से सेफ़ा की विचारधारा अक्सर रोमेश पर केंद्रित रहने लगी। विवाह पूर्व रोमेश का एकतरफा प्यार, लगाव उसे अक्सर याद हो आता। इस कारण से वह सोचती कि शायद रोमेश उससे इस हालत में भी शादी कर लेगा। अतः वह अक्सर उपाय सोचती जिससे रोमेश से निकटता हासिल हो और उससे मिल कर वह अपने भविष्य के प्रश्न पर चर्चा करे एवं किसी निर्णय पर पहुँच सके। 

एक नारी को 'पुरुष साथी' की जरूरत शारीरिक तौर पर तो है ही लेकिन मानसिक तौर पर जरूरत ज्यादा होती है। पति के बिना यह 'अवसरवादी - स्वार्थी' समाज कुछ इस तरह से नारी पर व्यंग्य और उपहास करता है कि नारी वेदना बढ़ जाया करती है। मानसिक पीड़ा से उसका मानसिक संतुलन तक बिगड़ जाने का भय होता है। लोगों की वासनामय दृष्टि और हरकतें इतनी आम है कि नारी चार कदम घर के बाहर निकाले तो दूषित दृष्टि के तीरों से शरीर भिदता सा लगता है। यही सब अनुभव सेफ़ा को भी हुए फिर वह तो युवा और डिवोर्सी भी थी। समाज का व्यवहार और भी क्रूर हो जाता है ऐसी नारी से! यही सब कारण थे कि सेफ़ा, रोमेश के बारे में सोचने को बाध्य हुई। अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उसे किसी पुरुष का साथ करना जरूरी था, और उपयुक्त पुरुष उसे रोमेश लगता था। बहुत विचार करने पर भी उसे कोई बहाना नहीं मिला तो उसने रोमेश को पत्र लिखने को सोचा, लेकिन सेफ़ा को पत्र लिखने का साहस अनायास हो नहीं सका। और वह दिन-प्रतिदिन इस चीज को स्थगित करती रही। ऐसे ही बीतते दिनों में एक दिन एक अप्रत्याशित समाचार आया। डैडी ने समाचार पत्र में से एक समाचार घर में सभी के बीच पढ़कर सुनाया - सागर के समीप एक कार और बस की भिड़ंत में कार सवार 25 वर्षीय डॉ. गीता की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। कार चला रहे डॉ. हरीश को हल्की चोटें आई है और वह खतरे से बाहर है। सुनकर रश्मि भाभी एकदम बोल पड़ी, यह होता है एक मासूम पर अत्याचार का फल। लेकिन सेफ़ा ऐसा कुछ नहीं कह सकी बल्कि उसे इस बात का दुख हुआ कि भरपूर युवा एक डॉ. युवती, असमय मौत का शिकार हो गई। उसी समय, डैडी के मन में एक स्वार्थ पूर्ण विचार उत्पन्न हो गया। वे बोले, सेफ़ा देखो अब हम चाहें तो शायद हरीश तुम्हें पुनः स्वीकार करने तैयार हो सकता है। सेफ़ा ने तीव्रता से इसका प्रतिरोध किया बोली, नहीं डैडी उस हैवान से पुनः रिश्ता जोड़ने की बात नहीं कीजिये, प्लीज। आपको मेरी फ़िक्र है ना, मैं जल्द ही कोई समाधान निकाल लूँगी। अब मैं स्वयं नहीं चाहती कि आप इस अवस्था में निरंतर मेरी चिंता में पड़े रहें। कदाचित सेफ़ा, कुछ ज्यादा ही कह गई थी...

इस पर मम्मी ने तुरंत कहा, नहीं बेटी, तुम्हारे डैडी का आशय यह नहीं है, उनके कहने का मतलब यह था कि तुम यदि चाहो तो हम ऐसा कर सकते है। तुम, शिशिर और रश्मि तो हमारे हृदय के टुकड़े हो। तुम तीनों में से कोई दुखी हो तो हम कैसे खुश हो सकते है? हमें यह लगता है कि तुम यहाँ सुखी नहीं रह पाती हो, अतः इस ढंग से सोचते है।

सेफ़ा बोली, मम्मी-डैडी मैं खुश नहीं हूँ सत्य है, किंतु इसलिए नहीं कि यहाँ हूँ। अपितु इसलिए दुखी हूँ कि जिस स्वाभिमान के संस्कार आपने मुझे दिए है, जीवन में वही नहीं बचा सकी हूँ। प्लीज, मुझे क्षमा कीजियेगा, लेकिन उस आदमी से मुझे फिर रिश्ता जोड़ने नहीं कहिये, जिसने मेरा स्वाभिमान बुरी तरह आहत किया है। कहते हुए सेफ़ा रो पड़ी, फिर बेडरूम में चली गई। डैडी ने चाहा था कि रोककर उसे समझायें लेकिन मम्मी ने रोक लिया कहा कि रहने दीजिये, बहुत परेशान है मेरी लाड़ली - एकांत में रो लेगी तो जी कुछ हल्का हो जायेगा।

इधर-सेफ़ा ने कुछ समय में स्वयं को संयत कर लिया और पेन कॉपी लेकर बैठ गई, उस कार्य को करने, जिसका साहस बहुत दिनों से जुटा ना पाई थी। शब्द चयन सावधानी से करते हुए लिखना आरंभ किया -


सम्मानीय रोमेश जी,

सादर अभिवादन यह पत्र और इस पर आपका उत्तर, मेरे लिए भविष्य तय करने वाला है। मुख्य बात पर आने के पूर्व इतना ही लिख रही हूँ कि यदि आपका सोचने का ढंग या उत्तर यदि मेरे विरोध में है तो कृपया इस पत्र को तुरंत नष्ट कर दीजिये, और इसमें लिखी बात को हमेशा के लिए भुला दीजियेगा। ऐसा नहीं होने पर पहले से पीड़ित - मुझे और ना जाने कितनी जगहँसाई भुगतनी पड़े। मुझे विश्वास है कि आप जैसा भी सोचें पर कम से कम मुझे कठिन सामाजिक विषमताओं में देखना पसंद नहीं करेंगे। अब मैं अपने प्रयोजन पर आती हूँ - शायद आपने सुना ही होगा, मेरी, हरीश से शादी और उसके बाद तलाक हो जाने का। आपको अपनी सफाई में, मैं कुछ नहीं लिखूँगी क्योंकि दोष मेरा ही है। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी रूप जन्मने का। हरीश नाम के उस पुरुष ने मेरे इस दोष का बदला मुझसे छल और अपमानित करके लिया। मुझे तलाक को विवश किया। जिसे मैंने अति आशावाद में सहर्ष स्वीकार किया। मुझे गुमान था कि मैं कमजोर नहीं हूँ, मुझे पुरुष अत्याचार नहीं सहने चाहिए। लेकिन कुछ दिनों के अनुभव ने मुझे अहसास दिला दिया है कि पुरुष भले ही अत्याचारी हो उसका विरोध यदि नारी करे तो उसके पास एक ही विकल्प बचता है कि वह मौत को गले लगाये। किन्तु मैं एक जिद्दी प्रकृति की लड़की रही हूँ अतः मैं समाज में ऐसे पुरुषों के समक्ष, जो नारी को सिर्फ एक खिलौने सा मनोरंजन और भोग की वस्तु मानते है, सबक बनना चाहती हूँ। ऐसे पुरुषों के सामने ना झुकने की दृढ़ता अभी भी मुझमें है, इसलिए जीवित भी रहना चाहती हूँ। लेकिन इस लक्ष्य में, विडंबना यह है कि मुझे एक पुरुष सहारा ही चाहिये। और इस बार मुझे इसके लिए एक ऐसे सहृदय 'सहारा-पुरुष' की तलाश है जो नारी की आकांक्षाओं एवं अरमानों को अपने अरमानों के समतुल्य मानता हो। निश्चित ही ऐसे पुरुष इस समाज में है, किंतु कुछ कम ही है। मेरे अपने जानने वालों में इस दृष्टि से सबसे अधिक उपयुक्त आप लग रहे है। शायद, मेरा ऐसा विचार गलत या अनुचित हो, लेकिन मेरी आपसे विनती है कि आप मुझे पत्नी रूप में अपना कर हरीश जैसे हैवान पुरुषों के सामने "नारी स्वाभिमान" को बनाये रखने में मुझे मजबूत कर सकते है। यहाँ मैं यह लिखना जरूरी समझती हूँ कि जिस गीता नाम की युवा डॉक्टर से संबंध के कारण हरीश ने मुझसे विवाह-विच्छेद कर लिया था, दुर्भाग्यवश वह अब इस दुनिया में नहीं रही। ऐसे में हरीश मेरी पहल पर शायद मुझसे जुड़ने में पुनः रूचि ले, किंतु विकल्पहीनता की इस अवस्था में उस जैसे छली के बजाय कदाचित मैं मौत को गले लगाना पसंद करूँ। मैं आपके क्या, किसी के भी जबरन गले नहीं पड़ना चाहती। आप यदि सहर्ष मेरे निवेदन को स्वीकार करते है तो ठीक है अन्यथा यह प्रस्ताव मैंने किया था, कभी जग जाहिर नहीं कीजियेगा। कृपया भावुक हो निर्णय नहीं कीजियेगा। मेरी शुभकामनायें - 

सेफ़ा 


लिखने को तो सेफ़ा ने पत्र लिख लिया किंतु उसे पोस्ट करने में फिर उसे साहस जुटाना था, किसी तरह साहस संचय कर आखिर यह पत्र पोस्ट कर ही दिया। और फिर उसी पल से आरंभ हो गई उत्तर की प्रतीक्षा की घड़ियाँ, जिसका, शायद कभी अंत ना भी हो। सेफ़ा की मानसिक हालत अत्यंत चिंताजनक थी इन दिनों। अब हर रोज वह पोस्टमैन की राह देखती। पोस्ट मैन कभी उनके घर डाक देने आता तो बड़ी उत्सुकता से उसे देखती, लेकिन जिस पत्र की प्रतीक्षा थी उसे आया न देख निराशा से भर जाती थी। जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे थे वैसे-वैसे उसके मन में ये बात घर करते जा रही थी कि रोमेश का पत्र नहीं आएगा। भावुक हो उसने जो गलती की है वह मात्र मूर्खता ही कही जायेगी, भला एक इंजीनियर क्यों एक डिवोर्सी से विवाह को तैयार होगा? ऐसे निराशाजनक विचार उसे शारीरिक और मानसिक रूप से दिनोंदिन क्षीण करते जा रहे थे। और ऐसे में रोमेश के पत्र की आशा लगभग समाप्त हो गई थी। अचानक एक दोपहरी जब वह सोने की कोशिश कर रही थी तब उसके कानों में रश्मि भाभी का स्वर पड़ा, सेफ़ा देखो तो किसका पत्र आया है तुम्हारे नाम? और सेफ़ा को लगा हो न हो रोमेश का हो किन्तु प्रत्यक्षतः बनते हुए बोली, मेरे नाम? भला कौन लिखेगा मुझे पत्र? कहते हुए भाभी के हाथ से पत्र ले लिया। सेन्डर्स नेम & एड्रेस का स्थान खाली था, अपनी उत्सुकता दबाने के लिए बेफिक्री का भाव दर्शाते हुए पत्र को एक तरफ रख भाभी से बोली, होगा किसी का सोकर उठने के बाद देखूंगी। भाभी बोली, जरा देखो तो हो सकता है हरीश का हो और कहते हुए चली गई। हरीश का नाम सुनकर सेफ़ा एक दम क्रुद्ध हो गई। लेकिन भाभी के जाते ही उसने झपट कर पत्र उठाया और खोलकर देखा, सबसे पहले उसकी दृष्टि अंत पर पड़ी -जहाँ रोमेश लिखा होना देख उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो गई। यह देखकर भी मन के एक कोने में भय था, कहीं किसी बहाने से रोमेश ने इंकार तो नहीं किया है। जिज्ञासावश वह पत्र पढ़ने लगी -


सेफ़ा ,

पत्र विलंब से देने का कारण है कि जिस बात को आपने लिखा उस बारे में अपने मम्मी-डैडी एवं भैया से जब मैंने चर्चा की तो उन्होंने कई वास्तविक कठिनाइयों का उल्लेख कर इस पर विरोध किया, किंतु मेरा सिर्फ तुम्हारे पक्ष में निर्णय देख आखिरकार वे सहमत हो गये है। बेहतर रहेगा आप, अपने मम्मी-डैडी को चर्चा के लिए भेजो। अभी सिर्फ इतना ही, शेष समय आने पर। जब तक अपने को किसी प्रकार से हीन मत समझना-बस।

रोमेश


पत्र पढ़कर सेफ़ा को अपने दिल की धड़कनें ठहरती सी महसूस हुई। उसने पत्र को अपने बैचैन दिल से भींचते हुए आँखें बन्द कर ली और गहरी गहरी सांसें लेने लगी। सेफ़ा को ऐसे अनुभव हो रहा था कि जैसे उसने अपनी जीवन मंजिल पा ली है।

उसे, ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके समस्त दुखों का अंत हो गया है, जब रोमेश से विवाह के बाद प्रथम रात्रि, रोमेश को कोमलता से यह कहते सुना - आप मेरी पहली और अंतिम चाहत हो,?आप कल्पना नहीं कर सकतीं कितनी पीड़ा मुझे रही है जब आप पराई हो गई थी! कहते हुए रोमेश स्वयं सेफ़ा के समीप आया और सेफ़ा का सिर अपने सीने से लगा उसके बालों पर प्यार से अपने हाथ फिराते हुए कहा, इसे अपना भाग्य कहूँ या सच्ची चाहत कि आपको, जिसे इस जन्म में पाना असंभव मान लिया था, आखिर अपनी पत्नी रूप में पा ही गया। मेरे लिए वह पल अभूतपूर्व ख़ुशी का था जिस पल आपका पत्र और प्रस्ताव मुझे मिला था। रोमेश ने सेफ़ा की ठोड़ी पर हाथ रख उसके मुख को अपनी ओर किया फिर उसकी आँखों में निहारते हुए बोला, मैं स्वयं, नारी के मामले में प्रगतिवादी विचारों का व्यक्ति हूँ। ऐसे पुरुषों को मैं पसंद नहीं करता जो नारी को भोगने मात्र की वस्तु समझते है और शादी के बाद सिर्फ अपना आधिपत्य समझते है। सेफ़ा यह सब मंत्र-मुग्ध सी सुन रही थी... और इधर -सब कुछ बदल गया था...


आरंभ में सेफ़ा से डिवोर्स के बाद हरीश इतना प्रसन्न रहने लगा कि जैसे उसे सारे जहान की खुशियाँ मिल गई हो। कुछ महीने हुए, सेफ़ा को गये इस बीच हरीश-गीता के साथ के दिन बहुत हँसी-ख़ुशी से बीते। किंतु परिवर्तनशील इस सृष्टि में कोई चीज हर वक़्त कहाँ विद्यमान रह सकती है। हरीश के मजे के दिन उस दिन चुक गए, जब कार दुर्घटना में उसने गीता को गँवा दिया। 

उस सदमे से हरीश के सोचने के ढंग में परिवर्तन आने लगा। अहंकारी हरीश को पहली बार ऐसा अनुभव हुआ कि सब कुछ अपने वश में नहीं होता है, कुछ बातें जीवन में अपने नियंत्रण से बाहर भी होती है। अपनी प्रियतमा को खोकर व्याप्त दुख की हालत में उसकी प्रैक्टिस प्रभावित होने लगी। उसके पेशेंट्स का विश्वास उस पर से उठने लगा। ख़राब मनःस्थिति में उसका डायग्नोसिस ठीक काम नहीं करता। 

मित्रों ने बहुत समझाया, नियति के आगे वश नहीं होता है, जो हो गया जो चला गया, उसके आगे करना और सोचना होगा। तुम्हारी उम्र 26 की ही है, ज़िन्दगी बहुत है अभी -चाहोगे तो फिर ख़ुशी आएगी जीवन में। कोई अन्य डॉक्टर लड़की भी देख लेना। पर इन बातों का प्रभाव भी हरीश पर उल्टा पड़ता। 

वह सोचता सेफ़ा को गीता के कारण छोड़ा, गीता उसे छोड़ चली गई, सुख है नहीं भाग्य में अब तीसरी में क्या सुख लेगा। निराशावादी सोच के चलते उसे लगा अपने मन की करने से भी हासिल वही हुआ जो भाग्य में था और भी कुछ हासिल करेगा तो भी क्या किसी दिन वही मर जाएगा, तब?

तब - सब वैभव किस काम आएगा। यही विचार उसे सोचने को मजबूर करते कि उसने सेफ़ा के साथ अच्छा नहीं किया और हो ना हो उसे जो मिल रहा है उसी बुरी करनी का फल है! इससे वह चिढ भी जाता, यह मानने को तैयार नहीं हो पाता कि उसने कुछ गलत किया है। 

ऐसे बिरले ही लोग होते है जो अपने किये को गलत स्वीकार कर लें। हरीश उन बिरलों में नहीं था। यद्यपि वह अपने बुरा करने को नकारता जाता लेकिन अंतरात्मा से बार बार यही विचार आता, सेफा के साथ ठीक नहीं किया उसने। 

यह भी विचार उसे आया कि सेफ़ा के साथ फिर विवाह कर अपनी भूल का पश्चताप कर ले, लेकिन तब उसे वह दृढ मुखाकृति याद आ जाती जो सेफ़ा की इस घर को छोडते हुए थी। इससे हरीश की हिम्मत नहीं हो सकी कि वह इस संबंध में प्रस्ताव करे।

पहले हरीश की लालची माँ ने दहेज और लेने के चक्कर में सेफ़ा को सताया, सेफ़ा से हरीश के डिवोर्स पर खुश हुई। फिर... वह चाहती थी कि कमाऊ भी और डॉक्टर भी, गीता से हरीश जल्द शादी कर ले, ताकि उनके घर में धन वर्षा होने लगे। इससे वे उन बातों से भी दूर होना चाहती थी, जो वे जहाँ जाती लोगों से सेफ़ा के बारे में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, सहानुभूति के साथ उन्हें सुनने मिलती थी। और वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष व्यंग्य एवं कटु वार्तालाप की निशाना बना करती थी। इन बातों से बचने के लिए अभी उन्हें, लोगों से मिलना-जुलना छोड़ना पड़ा था।


मनुष्य की 55-60 वर्ष से ज्यादा की अवस्था अत्यंत दयनीय होती है, जीवन के प्रति अनिश्चितता हर पल बढ़ती जाती है। वह कभी युवा पीढ़ी के किलोल देख ईर्ष्या करता है, तो कभी स्वयं की कमजोरी से घबड़ा जाता है। इस मनःस्थिति में उसकी दशा दयनीय हो जाती है। अगर उसने परोपकार की आदत बना रखी है तो उसके मन को तसल्ली होती है, कि मैंने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं इसलिए मुझसे किसी को कोई शिकायत तो ना होगी। इन परोपकारों के साथ बच्चों एवं धर्म में मन लगा वह अपनी जीवन संध्या सहज जीता है। लेकिन जिसने परोपकार न किये हों उसकी आत्मा अनजाने ही उसे कचोटते रहती है। कमजोरी, चिंता, ईर्ष्या, भय एवं किये पाप के अहसास इस उम्र में उसे मानसिक रूप से भी कमजोर कर देते है। कमजोर मानसिक अवस्था, उसे सठिया गए का ख़िताब दिला देती है। 

अकेलेपन, साथ ही किये ख़राब कर्मों के ग्लानि बोध ने, हरीश की माँ को सठियाई हालत में पहुँचा दिया। दिन बीत रहे थे। अब हरीश को माँ की फिक्र नहीं थी। वह इस बात से गीता को भी मन ही मन कोसता। उसी समय गीता की मौत हो गई और हरीश गीता को खोने के दुख में डूब गया। अब उसका क्लीनिक में मन नहीं लगता ज्यादातर वह बेडरूम में ही पड़ा रहता। कभी कुछ भी खाने से अरुचि लगती तो कभी असामान्य रूप से अधिक खा लेता। 

गीता के मरने के बाद हरीश की माँ की मानसिक स्थिति पलट गई। अकेले में कभी उन्हें स्वयं लगने लगा कि उन्होंने सेफ़ा के साथ शायद ठीक नहीं किया। जो किया वह एक नारी पर नारी द्वारा ही ज्यादती थी। अपने सेफ़ा पर अन्याय के अंदरूनी ग्लानि बोध, घर में हरीश की हालत, बाहर लोगों के व्यंग्य और वृद्धावस्था ने मिलकर हरीश की लालची माँ को दयनीय मनःस्थिति में पहुँचा दिया, वह चिड़चिड़ी और भुल्लकड़ हो गई। ऐसे में एक दिन जब हरीश घर पर नहीं था वे, रसोई का काम करने के बाद गैस नॉब बंद करना भूल गई और जाकर बिस्तर पर लेट गई। बाहर तेज धूल की आँधी चली बिजली दो-तीन बार बंद चालू हुई और नॉब ऑन रहने से भरी गैस से घर में भीषण आग लग गई। गर्मी का मौसम उस पर तेज चलती हवाओं ने तेजी से बँगले को खाक कर दिया, बाहर से कोई मदद नहीं कर सका। किसी को मालूम नहीं चल पाया कि घर में अकेली हरीश की माँ ने जान बचाने का कोई प्रयास किया भी या नहीं या निद्रा में ही चिरनिद्रा को प्राप्त हो गई।


पहले ही उजड़ चुका हरीश जब वापिस लौटा तो, जल गई अपनी कोठी और उसमें जल के मर गई माँ, देख जड़वत रह गया। प्रियतमा को खोया था तो मन से खाली हुआ, संपत्ति और कोठी जल गई, धन से खाली हुआ। माँ भी चली गई, उसका सारा संसार खाली हो गया। उसे गहन सदमा बैठ गया और वह विक्षिप्तों सा व्यवहार करने लगा। पागलों सा सड़कों पर भटकने लगा, दाढ़ी बढ़ गई। पहले तो कोई कोई परिचित कुछ खिला-पिला देते। बाद में जो भिखारी समझते दया से कुछ दे दिया करते...


हाँ साहब यह ताजमहल है, पति-पत्नी के सच्चे प्रेम की मिसाल। और इस पागल को देखिये, जो सामने लॉन में बैठा है भी एक 'जीवित मिसाल' है कि पत्नी पर अन्याय का नतीजा अच्छा नहीं होता है। कहते हुए, 'बूढा गाइड' चुप हो, अपने आप को कुछ व्यवस्थित करता है। वह आगे कुछ बोले उसके पहले उत्सुकता में रचना उससे पूछती है, चाचा, यह आप कैसे जानते है कि इसने अपनी पत्नी पर अन्याय किये थे।

हाँ-बेटी बताता हूँ, गाइड कहता है। गाइड और रचना के प्रश्न-उत्तर के बीच सुनने की रूचि, राजेश की भी उत्पन्न हो जाती है। गाइड ने नवविवाहित लग रहे इस जोड़े को एक बार निहारा फिर कहना आरम्भ किया, किसी को नहीं पता यह कहाँ से आया है। मैं इतना जानता हूँ कोई 4-5 माह से यहीं भटका करता है, वैसे ज्यादातर चुप रहता है, कभी कभी वेदनापूर्ण ढंग से चिल्ला-चिल्ला कर कहता है, "इस दुनिया में कोई किसी वस्तु का या किसी उपलब्धि का घमंड ना करे, इस दुनिया के हर व्यक्ति को जीवन में प्राप्त वस्तु कभी खो देनी है। उस पर जो घमंड करेगा पछतायेगा और दुनिया को उस पर हँसने का बहाना मिल जाएगा। मुझे देखिये मैंने अहंकार किया था, अपने डॉक्टर होने पर, अपनी दौलत पर। आज कुछ ना रहा मेरे पास। मैंने अहंकार में चूर हो ठुकराया अपनी निर्दोष पत्नी को, उसका दुष्फल मुझे मिला। नारी की भावना का सम्मान नहीं किया, उसे हीन माना, उसे एक वस्तु तरह समझा, आज ऐसी हालत में पहुँचा हूँ कि-सब मुझे पागल कहते है। तुम इस ताजमहल को देखो और अपनी पत्नी को शाहजहाँ जितना प्यार दो। उसकी भावनाओं को अपनी भावना जितना महत्व दो। नारी-पुरुष दोनों ही मनुष्य की ही संतान है। फिर एक को सर्वाधिकार और दूसरा अबला क्यों? ऐसा भेद-व्यवहार कभी ना करना, मुझे देख यह शिक्षा तुम लो।"


हाँ, साहब यही सब कहता है, बूढा गाइड कुछ नम स्वर में बताता है। कुछ रूककर फिर कहता है, और साहब जो विवाहित जोड़े ताजमहल देखने आते है उन्हें इस पगले दार्शनिक की बात भी बताता हूँ। फिर राजेश-रचना को ताजमहल की ओर चलने का इशारा करता है। गाइड के साथ कदम मिलाते हुए, राजेश कहता है, चाचा, आपकी भावना बहुत अच्छी है, अगर हर पुरुष को आप यह बतायें तो यहाँ ताजमहल देखने आने वाला, सही सीख ग्रहण कर अपनी पत्नी से सम्मान और प्रेम से व्यवहार करेगा। साथ ही राजेश कुछ छिपाते हुए रचना का हाथ दबाता है। रचना, मुस्कुरा कर धीरे से आँख मार कर साथ देती है। दोनों हँसते है, गाइड भी जैसे कुछ समझ गया हो वह भी इनकी हँसी में साथ देता है। 

विक्षिप्त हरीश-स्वयं एक तमाशा बन गया है। वह आते-जाते जोड़ों में प्यार देख उन्हें हसरत से देखा करता है। एक तरफ ताजमहल होता है दूसरी तरफ वह उस खंडहर हूई भव्य इमारत जैसा जो वक़्त की मार में गिरती गई, जिसमें पनाह भी कोई नहीं लेता कि कब भरभरा कर गिर जाए...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama