Mukta Sahay

Tragedy

5.0  

Mukta Sahay

Tragedy

#से नो- शुरुआत में ही

#से नो- शुरुआत में ही

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मैं और मौशान रोज़ की भाँति आज भी कॉलेज जाने के लिए ऑटो में बैठे थे जैसा कि चलन है यहाँ पीछे तीन लोगों की जगह पर चार लोगों को बैठना और आगे चालक के साथ एक आदमी का बैठना , ठीक वैसे ही हाल हमारे ऑटो का भी था । गाड़ी आगे बढ़ी और चालक ने “ आशिक़ बनाया आपने “ फ़िल्म का गाना बजा दिया वो भी ऊँचीं आवाज में । सुबह सुबह इतनी ज़ोर से बजता ऐसा गाना हमारी बर्दाश्त के बाहर था । मैंने और मौशान के आँखो आँखो में एक दूसरे को देखा । हम चुप रहे की शायद कोई सहयात्री उसे गाने की आवाज़ कम करने को कहेगा।लेकिन ऐसा नहीं हुआ।हमें समझ आ रहा था गाना बजाने की मंशा अच्छी नहीं थी।अचानक मौशान ने कहा "भैया गाने की आवाज़ धीमी करो, चाहे तो बंद ही कर दो।"इस पर चालक ने कहा "इतना अच्छा तो गाना है ये ।" सहयात्री भी कहने लगे जितना अच्छा सुनने में है उससे ज़्यादा अच्छा तो देखने में है । तभी दूसरे ने कहा "यार हीरो को जैसी हीरोईन मिली वैसी बिंदास हमें भी मिल जाए तो बस मौज है ।" इन लोगों की असंस्कृत और अशोभनिया बातें आगे बढ़ती ही जा रही थीं । हम दोनो दोस्त बहुत ही परेशान और असहज हुए जा रहे थे।


तभी एक चौराहा आया और वहाँ कुछ पुलिस वाले खड़े थे तो हम दोनो ने ऑटो वहीं रुकवाया और पुलिस वाले से ऑटो और उसमें बैठलोगों की शिकायत की । पुलिसवाले ने उस ऑटो वाले को डाँट लगाई और बाक़ी सवारियों को नैतिकता के पाठ पढ़ाए । हम दोनोदूसरे ऑटो से कॉलेज को निकल गए । 


घर आकर सारी बात माँ को बताई तो माँ ने कहा हमेंजूम्मा के चुम्मे वाले गाने ने ने बहुत परेशान किया था तभी बुआ भी बताती हैं की उनकेसमय में कोई "चोली-चुनरी के पीछे क्या है" के प्रश्न के उत्तर ढूँढता रहता था । अंततः उस मैं ये समझ पाई की महिलाओं , युवतियों , बच्चियों को ऐसे गानों की वजह से हर काल-पीढ़ी में अभद्रता झेलनी पड़ी है । 


आज ये पूराना बात यों याद आई कि जब अख़बार में मैंने #मी टू की शोर पढ़ी। यूँ तो मैं इस मुहिम में उन सभी सेलिब्रिटी महिलाओं के साथ हूँ किंतु उनसे मेरे कुछ सवाल भी हैं। दरअसल सवाल उन सभी पार्श्व गायिकाओं , अभिनेत्रियों, कलाकारोंसे है जो ऐसे गाने को आवाज़ और रूप देते हैं। इन #मी टू का शोर मचाने वाली कलाकारों के कुछ फ़िल्मी गाने और फ़िल्मों के कई सारे सीन सड़क पर चलती आम लड़कियों के लिए एक अशोभनिय टिप्पणियों का ज़रिया बनती हैं ।


अब मेरा सवाल है कि जब ऐसे गाने या पटकथा इन पार्श्व गायिकाओं , अभिनेत्रियों, कलाकारों के पास आते हैं तो ये उसे “ना” क्यों नहीं करते हैं । उस समय इन्हें नाम और पैसे की लगी होती है पर इनके इस एक ना नहीं करने की वजह से कितनी आम लड़कियों, युवतियोंके साथ हर दिन , कई बार # मी टू की घटनाएँ घटित होती हैं इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता। कितनी नज़रें और कितने शब्द, दिन भर में कितनी बार उन्हें भीतर तक भेदते है इसका अनुमान मात्र ही सिहराने वाला है । 


जब इन सेलिब्रिटी के साथ कुछ होता है तो सारा समाज साथ खड़ा दिखता है और वही समाज इन आम लड़कियों , युवतियों पर वार करता है । 


इन सभी पार्श्व गायिकाओं , अभिनेत्रियों, कलाकारों से गुज़ारिश है की इनके एक # ना से बहुत से # मी टू को होने से रोका जा सकता है। इस # मी टू पर वार है # से नो है । अगर ये सभी पार्श्व गायिकाएं, अभिनेत्रियॉ, कलाकार जैसे # मी टू के लिए एक जुट हुए हैं वैसे ही एक जुट हों ,ना करे तो फिर ऐसे बोल और शब्दों वाले गाने वजूद में ही ना आएँ और आम लड़कियाँ भी # मी टू की शिकार ना हों। 


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