सबसे बड़ा सच

सबसे बड़ा सच

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                                              जानते हो तुम , तुमसे कितना प्यार करती हूं जितना कि तुम भी नहीं करते मुझसे ! 

     चल झूठी !

     नहीं , सच कह रही हूं , पहले नहीं कह पाई इसका खेद है मुझे ! देखो ना ये प्यार नहीं तो और क्या है ? आज तुम मेरे साथ नहीं हो फिर भी हो , यही तुम्हारी सबसे बड़ी जीत है और मेरे प्यार की भी ! अक्सर मैं सोचती रहती हूं - तुम हो कहां ? तुम्हारे इस होने और न होने के बीच फासले हैं जमीन-आसमान के , इन फासलों में इन्सान कहीं का कहीं पहुंच जाता है तब लगने लगता है - इन्सान ताश के उस पते के सिवा कुछ नहीं जिसे जब चाहे , जहां चाहे जिन्दगी फैंकती है तो मौत उछालती है इन दोनों के बीच फुटबॉल बना कभी गोल करता है कभी खुद गोल हो जाता है ! हमारे साथ भी तो यही हुआ सच में यह गोल मेरे इर्द - गिर्द गोल-गोल घूमता रहता है ! जिन्दगी के हर फ़लसफ़े में एक नया फ़लसफ़ा दिखाई देता है , घर की हर शै में यही होता है मेरे साथ ! देखो ना हमें जिन्दगी ने इस तरह उछाला कि तुम जिन्दगी के आखिरी किनारे पर पहुंच गए और मैं यहीं इसी किनारे अकेली रह गई ! कुछ ऐसे उछाला है कि बस कुछ न पूछो यार , जमीन-आसमान के फासले पर हम आ गए जिसकी उम्मीद भी नहीं थी , फिर भी तुम्हारा अस्तित्व जैसे का जैसे ही रह गया ! मेरे हाथ खुद-ब-खुद वो सारे काम करने लगे हैं जो तुम करते थे , फिर एकदम ऐसा लगने लगता है जैसे मैं नहीं तुम कर रहे हो ! जिन कार्यों के लिए तुम्हें टोकती रहती थी अब खुद ही वो सब करती हूं - दरवाजे की कड़ी पर लटकता वो भीगा तौलिया , उसी के पास पड़ी वो भीगी छतरी और वहीं पलंग के पास पड़े तुम्हारे वो गीले जूते जूतों के ऊपर फैलाए हुए जुराब ,ये सब मुझे अहसास कराते हैं तुम्हारी मौजूदगी का , जैसे अभी-अभी लौटे हो दफ्तर से और इंतजार कर रहे हो चाय का , पतीली में उबलती चाय की खुशबू और उस पर तुम्हारी आवाज़ - कितनी देर है कुसुआ ? इस तरह सब घेर लेते हैं मुझे ,, मैं तलाशती हूं तुम्हें , तुम सामने हो फिर भी नज़र नहीं आते हो तब तो सारे समीकरण ही बदल जाते हैं जिन्दगी के ! जैसे किसी की नजर लग गई हो तब सच में ऐसा ही लगता है तभी तो तुम आज नहीं हो फिर भी दिल में एक चाहत है इसीलिए तो तुमसे बार-बार कहता है - ‘’ कभी यूं भी आ मेरी आंख में कि मेरी नज़र को भी ख़बर न हो ‘’ ताकि तुम्हें फिर कभी किसी की भी नज़र न लगे ! क्या बताऊं , कैसे बताऊं तुम्हे ,,, बस ऐसे ही ऐसी जाने कितनी-कितनी बातें हैं , कितने मंज़र है जो हमें जोड़े बैठे हैं इतने-इतने फासलों के बाद भी ! कुछ खाने बैठती हूं या चाय लेकर बैठती हूं हमेशा तुम्हें आवाज देती हूं लेकिन जब कभी तुम्हें आवाज दिये बिना शुरू कर लिया तो तुम फट से ठोकते हो - अरे , आज तुम अकेले ही खा रही हो बहुत ज्यादा भूख लगी थी जो मुझे बुलाना ही भूल गई और मैं तो इंतजार ही करता रह गया ,, क्या यार , तुम भी ना , !

      तो तुम खुद आ जाते !

      आता कैसे , तुमने आदत जो बिगाड़ रखी है , अब देखो ना तुम्हारी आवाज़ के चक्कर में भूखा रह गया ना मैं ! 

      क्यों भूखे क्यों ? अभी मैंने शुरू ही किया है , फिर तुमने खाने ही कहां दिया , पहले ही टोक दिया ,, तुमने नज़र और लगा दी ! 

     नज़र , ? अच्छा देखूं तो सही तुमने ऐसी कौन-सी मेरी फेवरेट डिश बनाई है ,, ओ होओओओ तो ये , इसके लिए मेरी नज़र क्यों ख़राब करूं मैडम , अपने राम के लिए कुछ अच्छा बनाओ तो खाने का कुछ मज़ा आये !

      किसलिए इतने नखरे कर रहे हो ,, आज यही खा लो ना कल अच्छा बना दूंगी ।

      अच्छा कल , मतलब रात के खाने की छुट्टी ? 

      अच्छा बाबा आज रात को ही बना दूंगी , अब तो खुश ! पर जनाब , अभी तो यही खा लेंगे ना ? 

      चल यार , खा लेता हूं , तुम भी क्या याद करोगी , किस दिलदार से पाला पड़ा था !

     ओ हो हो हो ,, आये बड़े दिलदार !

      एक नंबर की सड़ू हो !

      ठीक है मैं सड़ू हूं , तो जाओ मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी । 

      मत करो , मैं भी जाकर आराम करता हूं पर चाय तो पिला दे मेरी जान !

      जी जनाब ,, तुम कितना जोर का ठहाका मारते हो , पड़ोसी भी बेचारे गरीब घबरा जायेंगे ! 

      ओ मेरी मां , तू हारी मैं जीता ,, अब खुश हो जाओ , और मैं खुशी-खुशी चाय बनाती हूं ,, चाय देते समय तुम्हें शरारत से मुस्कराते हुए देखती हूं तो ख्याल आता है - तुमने क्या बोला था शायद कुछ गड़बड़ था इसलिए हंस रहे हो , मुझे सोचते देख तुम कहते हो - जानू , कुछ याद आ रहा है ? तुम्हारे इतना कहते ही मुझे समझ में आ गई तुम्हारे द्वारा की हुई गड़बड़ ,,, सच में तुम बड़े बदमाश हो !

      मगर तुमसे कम ,,, 

       ठीक है - ठीक है ,, किसी और को उल्लू बनाना , मुझे तो तुम नहीं बना सकते !

       उल्लू को भला कोई उल्लू बना सकता है !

       ओओओ ,, तुममममम ! सच में तुम्हारा ठहाका सुनाई देता है मगर तुम नहीं दिखाई देते हो एकाएक हकीकत में लौट आती हूं तब ऐसा लगता है जैसे किसी ने आसमान से जमीन पर पटक दिया हो ,, उस पर कटे पंछी की तरह जो उड़ने से लाचार , दाना-पानी के लिए लाचार ,, बस वही हाल मेरा है पर तुम मेरी इस पीड़ा को थोड़े ही ना समझोगे ! 

      कैसे नहीं समझूंगा ? भला मुझसे बेहतर और कौन समझ सकता है जिसने जिन्दगी के तिरपन साल साथ गुजारे ,,, हां , जिन्दगी के आखिरी कुछ दिनों में तुमसे बात नहीं हुई थी आपरेशन वाले दिन और बाद के चार दिन ‘हां हूं ना’ वगैरह में बात हो जाती थी हालांकि ज्यादा बात नहीं कर पाता था फिर भी तुम समझ जाती थी लेकिन बाद के दस-बारह दिन तो पूरा ही बेहोश रहा फिर तुम कैसे समझती ? 

      सब समझती थी तुम्हारी आंखों की हिलती पुतलियों से पता चल जाता था , तुम्हें कितने बेचैन, परेशान और तकलीफ में हो , कुछ कहना चाहते थे , शायद यही - कुसुआ , बहुत तकलीफ हो रही है मुझे घर ले चलो !

       हां , सच में तुम सब समझती थी , समझती हो तभी तो मेरी हर बात कही - अनकही सब महसूस कर लेती थी और कर लेती हो , समझ लेती हो इसीलिए हम आज भी बातें कर रहे हैं जबकि हमारे बीच में आई इस भौतिक दूरी को पांच साल होने को आये हैं फिर भी ,, 

       इस तीन फरवरी को पूरे पांच साल हो जायेंगे  इन पांच सालों में तुम आसमान में मैं ज़मीन पर ,, तुम्हारे बिना यूं तो सबकुछ है फिर भी कहीं कुछ नहीं यही सबसे बड़ा सच है कि है भी और नहीं भी ! तिरपन साल सुख-दुख में गुज़रे फिर भी जल्दी ही बीत गए मगर ये पांच साल ऐसे गुज़रे जैसे पांच सदियां गुज़री हों !

      मुझे भी ऐसा ही लगता है , मैं तो तुम्हारी उस दुनिया से ही दूर आ गया हूं ! मेरा तो शरीर भी तो वहीं राख हो गया है बस यूं ही इधर-उधर होता रहता हूं और ,, और हो रहा हूं !

     समझ रही हूं तुम्हारी पीड़ा , तुम्हारा दर्द ! यह भी सही है कि हम दोनों अलग-अलग तकलीफ में हैं , दायरा भी अलग-अलग हैं फिर भी अहसास और महसूस करने का माद्दा एक ही है , इसी ने तो हमें और हमारे इन पांच सालों को जोड़े रखा है जो मरते दम तक साथ रहेगा और आखिरी सफर में भी साथ ही चलेगा वो भी इसलिए कि पहले जीने के लिए हमारे पास दो जिस्म थे मगर आज इस ज़मीं पर सिर्फ एक ही जिस्म है ,,

        तो क्या हुआ , जिंदगियां भी तो एक में ही समा गई है ! आज यही सबसे बड़ा सच है !

       सबसे बड़ा सच            


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