सौतेली माँ
सौतेली माँ
मैं विखिलेश आज इस तालाब में कूदकर अपनी जान देने जा रहा हूं। क्यों ? क्योंकि तंग आ गया हूं इस अकेलेपन से। न कोई साथ देनेवाला है न कोई साथ रहनेवाला। और दोष भी किसे दू जब मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार मैं खुद हूं! कुछ दिनों पहले मेरे पास सब कुछ था। सुंदर सा परिवार, नंदा मेरी दूसरी बीवी और गुड़िया सी बेटी सलोनी। सलोनी मेरे कलेजे का टुकड़ा थी। वह पांच साल की थी तभी उसकी माँ लक्ष्मी चल बसी थी। छोटी सी उस बच्ची को मैंने कभी माँ की कमी महसूस होने नहीं दी थी। मैं अपनी बेटी की परवरिश अच्छे से कर रहा था। लेकिन मेरे रिश्तेदारों का कहना था की “माँ आखिर माँ होती है। सलोनी को माँ की जरूरत है और इसलिए मुझे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए।“ लेकिन मैं तैयार नहीं था क्योंकि जानता था की, “सौतेली माँ सौतेली ही होती है।“ आखिरकार मेरे अपनों की जिद के आगे मुझे घुटने टेकने पड़े और मुझे नंदा से शादी करनी पड़ी। शुरू शुरू में सब ठीकठाक चला लेकिन धीरे धीरे नंदा अपना सौतेला रंग दिखाने लगी।
ऑफिस से घर आकर मुझे सलोनी के साथ खेलने की आदत थी। उसे गोदी में उठाकर मुझे जो सुकून मिलता वह अकल्पनीय था। तकरीबन आठ महीने पहले की बात है। मैं जब ऑफिस से घर आकर सलोनी के पास गया तब अचानक नंदाने चिल्लाकर सलोनी को उठा लिया। मैं कुछ समझू उससे पहले वह सलोनी को दुसरे कमरे में रखकर बाहर आई और बोली, “पहले नहा लो... तबतक मैं आपके लिए गरमागरम खाना परोसती हूँ। “ उसदिन के बाद नंदा का व्यवहार अजीब सा हो गया था। वो कुछ न कुछ तरकीबे लगाकर सलोनी को मुझसे दूर रखने का प्रयास करती। कुछ कहने जाओ तो वर्तमान परिस्थितिओं लेकर मेरे सामने सलाहों का पिटारा खोल देती। फिजूल की बकवास। मेरे गले वह बाते नहीं उतरती थी क्योंकि मैं जान गया था की नंदा मुझसे मेरी बेटी को दूर करना चाहती है। मैंने भी नंदा की कारस्तानियों का मुंहतोड़ जवाब देने की ठान ली।
अब मैं उसकी एक बात नहीं मानता। सलोनी के साथ खूब खेलता। मैं अपनी बेटी को दुनियाभर की खुशिया देना चाहता था। वह भी बहुत खुश थी। लेकिन अचानक हमारी खुशियों को मानो किसी की नजर लग गई। एकदिन सलोनी की तबियत बिगड़ गई। मेरी सांसो में बसी सलोनी को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। मैं डर गया, मेरा दिमाग सुन्न हो गया। मैं फौरन सलोनी को होस्पिटल ले गया। लेकिन यह क्या ? उसदिन मेरी बेटी जो होस्पिटल में गई... वह गई। डॉक्टर न मुझे उससे मिलने देते थे न उससे बात करने देते थे। मानो सबका व्यवहार नंदा सा सौतेला हो गया था। दो दिन बाद नंदा की भी तबियत बिगड़ गई सो उसे भी होस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। लेकिन मुझे नंदा से ज्यादा फिकर अपनी बेटी सलोनी की थी। मैं अपनी बेटी को देखना चाहता था। उसे प्यार से गले लगाना चाहता था। उसे चूमना चाहता था। लेकिन कोई तो कहे की वह कहाँ है ? किस हालत में है ? बस एकदिन डोक्टरने आकर मेरे हाथ में दो कागज थमा दिए और बोले, “यह तुम्हारी बेटी का डेथ सर्टिफिकेट है।“
“और यह ?”
“तुम्हारी बीवी का।“
मैं सुन्न सा अपनी जगह पर खड़ा रहा। मेरे सामने खड़ी नर्स बोली, “तुम्हारी बीवी ने तुम्हारे लिए एक संदेश छोड़ा है।“
“क्या ?”
“कोरोना के इस महामारी में अगर हम एक दुसरे से दूर रहते तो आज साथ होते।“
मेरे हाथ से कागज छुट गए।
तालाब में कूदने से पहले मैं आपको एक सवाल पूछना चाहता हूं, “आपही कहिए कौन बुरा था ? मैं या सलोनी की सौतेली माँ ?”