सौतेली माँ
सौतेली माँ
भोलानाथ घर के बरामदे से सटे बड़े से कमरे में टूटी चारपाई पर बैठे थे, जिसके आधे से अधिक हिस्से में भैंस का चारा रखा जाता है इसी कमरे से एक दरवाज़ा घर के उत्तर की तरफ खुलता है जहाँ भैंस बाँधी रहती है।
बड़े शौक से भोलानाथ ने यह मकान बनवाया था। उनकी मेहनत की सारी पूंजी इस घर को बनाने में खर्च हो गई थी। उनका गाँव बनारस शहर से कुछ सात आठ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है, यदि इसे शहर ही कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
भोलानाथ विद्युत विभाग में कर्मचारी थे और उन्होंने साथी मित्रों की देखादेखी वी आर एस ले लिया था और उनके जगह उनके इकलौते बेटे रमेश की नियुक्ति भी करवा दी थी ये सोच कर कि रहने के लिये एक अच्छा मकान तो बन ही गया है। पिताजी के देहांत के बाद भाइयों से बँटवारा होने पर उनके हिस्से में इस घर को बनाने के लिये ज़मीन और कुछ पाँच बीघे ज़मीन आई थी।
खेती करने और अपनी पत्नी मनोरमा के साथ कुछ यादगार पल बिताने की इच्छा से भोलानाथ ने वी आर एस लिया था।
जिसके बाद रमेश की शादी धूमधाम से की। भोलानाथ की शर्त थी कि लड़की पढ़ी लिखी चाहिए थी क्योंकि रमेश भी बी कॉम कर चुका था। एक अच्छे ग़रीब घर की लड़की का रिश्ता आया लड़की बी ए फाइनल कर रही थी। भोलानाथ ने तुरंत रिश्ता लपक लिया आनन फ़ानन में बीस दिनों के भीतर शादी भी हो गई। वी आर एस से मिले ज्यादातर पैसे बेटे की शादी में खर्च हो गये, कुछ पैसे बचाकर फ़िर भी रख लिये थे आगे काम आयेंगे।
भोलानाथ जी का गणित भी सही निकला दूसरे पोते के जन्म के बाद पता चला पत्नी को ब्लड कैंसर है, उनके तो होश ही उड़ गये कइयों ने समझाया यह एक लाइलाज बीमारी है लेकिन भोलानाथ कहाँ रुकने वाले थे, आखिर रुकते भी क्यों मनोरमा ने आज तक उनसे कुछ नहीं मांगा था उल्टे जब वह ब्याह के घर आई थी एक एक करके उसके सारे जेवर तीन ननद की शादी में खर्च हो गये और उसने कभी भी इसकी शिकायत भी नहीं कि थी क्योंकि उस समय भोलानाथ की आमदनी भी तो नहीं थी दो भाइयों में घर के छोटे बेटे ही सही उनका भी अपना एक हिस्सा और फ़र्ज़ बनता था। मनोरमा भोलानाथ की सच्ची जीवन साथी थी उसने हर कदम पर भोलानाथ का सर कभी झुकने नहीं दिया चाहे वह घर मे लेकर किसी हिस्सेदारी की हो या किसी भी रिश्तेदार के यहाँ होने वाले मांगलिक कार्य मे मनोरमा ने हमेशा अपना योगदान हर संभव तरीके से दिया था।
आज बारी भोलनाथ की थी कुछ करने की तो वो कैसे पीछे हटते।
खेती और कर्ज लेकर मनोरमा को लिये बी एच यू दौड़ लगाते रहे आखिर वही हुआ जो विधि को मंज़ूर था। मनोरमा भोलनाथ का साथ छोड़कर इस दुनिया से चली गई।
भोलनाथ हमेशा उसे याद करते रहते थे, जब भी वे इस चारपाई पर बैठते तो एक बार जरूर ही मनोरमा याद आ ही जाती।
इस चारपाई को भोलनाथ और मनोरमा ने बड़े प्यार से रमेश के लिये बुना था। घर में होने वाले सनई से छुट्टी के दिनों दोनों मिलकर सूत कात कर इसे पूरा किये थे। जब रमेश बड़ा हुआ था तो उसके लिये चारपाई बनाई थी दोनों ने बड़े ही प्यार से रमेश भी इसी पर हमेशा सोता था और इसपर किसी और को सोने नहीं देता था ये बात अलग है कि शादी के बाद यह चारपाई कुछ दिनों तक यहीं कोने में पड़ी रही थी।
भोलानाथ की आँखें आज फ़िर भर आईं और आज तो धारा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
ढीले पड़े चारपाई में उंचन को देखकर फफक पड़े अक्सर मनोरमा उन्हें टोका करती थी खटिया ढीली हो गई है टाइट कर दिया करो रमेश को सोने में दिक्कत होती है।
जबकि कई दिनों से यह चारपाई न टाइट की गई है और न ही जगह जगह से टूटे हुये सूतों की मरम्मत ही हुई है। जिससे तीन से चार छोटे बड़े छेद हो गये है। सूत टूटकर नीचे ऐसे लटक रहें है जैसे किसी बरगद के पेड़ उसके तने से जड़ें लटकी रहती हैं किसी पुराने वटवृक्ष की तरह।
आज भोलनाथ को अपनी दादी की कहानी याद आ रही थी। दादी बताती थी उनके पड़ोस में उनकी एक सहेली थी जिसकी माँ बचपन मे ही मर गई थी। पिता ने दूसरी शादी कर ली और वह उसे हर तरह से सताती थी। यहां तक की उसे खाने को भी ठीक से नहीं देती थी। दादी भोलनाथ को अक्सर यह तब कहती थी जब वो खाना खाने ने आनाकानी करते थे, तो समझाते हुये कहती थी कि तू बड़ा नसीब वाला है तेरी माँ-दादी सब तुझे कितना स्नेह देते है अगर सौतेली माँ होती तो पता चलता जब तुझे ठीक से खाना भी नहीँ देती और सारे काम करवाती।
भोलानाथ दादी की बातों को हँसी में उड़ा देता और कहता अच्छा दादी मुझे खाना खिलाने का बढ़िया तरीका खोजा है आपने आपकी सहेली और उसकी सौतेली माँ।
भोलनाथ यादों में खोये ही थे कि बहु रजनी पैर पटकते हुये आई और चिल्लाते हुये बोली "खाने को तो रकम रकम चाहिये नहीं दो तो मुँह फूल जाता है वहाँ भैंस अपना दूध बच्चे को पिला रही है और तुम हो कि यहाँ अपने महल में आसन जमाये बैठे हो। आने दो आज तो फैसला हो ही जायेगा या तो तुम बाप बेटा यहाँ रहो और मैं चली मायके या तो तुम ही कोई और रास्ता देख लो काम तो कुछ होता नहीं।
अरे ! तबियत खराब थी खाने को रात की बासी रोटी क्या रख दी खाना ही नहीं खाया। इनको इनकी माँ के जैसा गरम गरम तवे पर की रोटी खाने की आदत है ऐसा कहते फ़िरते है गाँव भर घूम घूमकर, जैसे कि मैं तुमको ढंग से खाना ही नहीं देती और नखरे बहुत है जब देखो तब मुँह फुलाये बैठे रहते हैं। ऊपर से दूध का नुकसान अलग अब रात को मेरे बच्चे क्या पियेंगे। भैंस ने सारा दूध अपने बच्चे को पिला दिया एक काम तो ढ़ंग से होता नहीं। बहु बड़बड़ाती हुई पैर पटककर चली गई।
भोलनाथ फ़िर से अपनी दादी को याद किये उन्हें आज पूर्ण विश्वास हो गया था कि दादी की सहेली और सौतेली माँ कोई बनाया किस्सा नहीं थी। वह हर जगह है हर रिश्ते में है, और उसका व्यवहार सौतेला ही है। क्योंकि यदि इंसान का दायरा सिर्फ उसके अपने स्वार्थ तक सीमित हो जाये तो सबकुछ सौतेला ही है। खून का रिश्ता भी।
भोलनाथ गमछे से आँसू पोंछते हुये पीछे के कमरे की ओर चल दिये जहां एक माँ अपने बच्चे को उसके हक का दूध पिला रही थी उसे रोकने के लिये ताकि उसके हक का दूध दूसरे पी सके।