हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

सौतेला

सौतेला

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260



तकदीर का भी अपना एक अलग ही फसाना है । इंसान सोचता क्या है और हो क्या जाना है । पलक झपकते खुशियां गमों की राख में कैसे बदल जाती हैं यह सुमन से बेहतर और कौन जान सकता है ? एक हंसती खेलती मुस्कुराती हुई जिन्दगी इस तरह आंसुओं के समुद्र में डूब जायेगी, किसने सोचा था ? आरजुओं ने आसमान में बनाया था एक आशियाना जो बादल के फटने जैसा भरभराकर गिर पड़ेगा और सुमन की जिंदगी तबाह करके रख देगा किसने ऐसी कल्पना को थी ? एक प्रेम कहानी बनने से पहले ही खत्म हो जायेगी ऐसा तो किसी कवि, शायर या लेखक ने भी नहीं सोचा होगा । राजेश की जान सुमन के हाथों में से होकर गई थी । सुमन को यह विश्वास ही नहीं हो रहा था । 


राजेश के पार्थिव शरीर को देखकर सुमन पत्थर की तरह हो गई । उसे इतना भयानक सदमा लगा कि वह प्रतिक्रिया विहीन , भावशून्य और स्थिर हो गई थी । दरअसल ऐसा शॉक जब किसी को लगता है तो वह अपने होश खो बैठता है । लोग उससे उसका पता , नाम, फोन नंबर पूछ रहे थे लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । उसकी इंद्रियों ने कार्य करना बंद कर दिया था । लोगों ने चैन खींचकर गाड़ी रुकवाई । जब रेल्वे पुलिस आई तब उन्हें बताया कि राजेश की मृत्यु हो गई है । पुलिस के आने से सुमन की चेतना वापस आई तब उसे हालात की जानकारी हुई तो वह राजेश के शरीर पर अपना सिर रखकर फूट फूटकर रोने लगी । पागलों की तरह व्यवहार करने लगी । "मुझे भी राजेश के साथ जाना है" यह कहकर वह ट्रेन से कूदने का यत्न करने लगी । 


लोग अब राजेश को छोड़कर सुमन को पकड़कर बैठे रहे । पुलिस ने उससे उसके घर का पता और फोन नंबर लेकर उन्हें घटना की जानकारी दी । अगले स्टेशन पर उन्हें उतार दिया गया । लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया । इस बीच सुमन बदहवास सी आर्त स्वर में जोर जोर से विलाप कर रही थी । ईश्वर ऐसे दिन किसी को भी न दिखाए जब रोने के लिए एक कंधा तक नसीब नहीं हो । कोई जान पहचान का चेहरा नजर नहीं आए और अपना सबसे प्यारा आदमी अचानक इस दुनिया से रुखसत हो जाये । क्या ईश्वर सुमन की परीक्षा ले रहे थे ? सुमन की तो रोज शिव जी से बात होती थी फिर शिव जी ने उन्हें क्यों नहीं बताया कि अब तेरी खुशियों का खजाना खत्म हो गया है ? शिव जी का ध्यान आते ही सुमन शिव जी पर ही बरस पड़ी "मैंने आपका क्या बिगाड़ा था भोलेनाथ, जो आपने मेरे साथ ऐसा किया ? मैं तो अपनी नई जिंदगी की शुरुआत आपके आशीर्वाद से करने के लिए आपकी ही शरण में आ रही थी और आपने बीच रास्ते में ही मेरी जिंदगी मुझसे छीन ली । अब मैं भी जी कर क्या करूंगी ? मुझे भी 'उनके' पास ही भेज दो । यहां नहीं मिले तो क्या कम से कम आपके लोक में ही मिल लेंगे" । सुमन का क्रंदन हर किसी को विचलित कर रहा था । लोग सुमन को दिलासा देने का प्रयास कर रहे थे मगर सुमन शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी । 


"इस घटना के लिए हम ही जिम्मेदार हैं । हमने ही उन्हें महाकाल के दर्शन कराने के लिए कहा और हमें ही "काल" के दर्शन करा दिये । ना मैं उज्जैन चलने को कहती और ना ही यह दिन देखना पड़ता । अब मैं क्या करूं ? कहां जाऊं ? किस से विनती करूं जो मेरे राजेश को मुझे लौटा दे ? कोई मेरा सब कुछ ले लो और मेरे राजेश को वापस लौटा दो"। कहकर दहाड़े मार कर रो रही थी सुमन । एक एक पल एक एक युग के समान बीत रहा था उसका । विक्षिप्तों की तरह छाती कूट रही थी सुमन । 


राजेश के पिता, सुमन के पिता और उसका भाई दौलथ गाड़ी लेकर आ गये । राजेश का पार्थिव शरीर देखकर कुंदन फफक फफक रो पड़े । उनका इकलौता पुत्र था राजेश । कितने अरमान थे उनके ? सब एक पल में चकनाचूर हो गये । वे राजेश से लिपट कर रोने लगे । सुमन के पिता और दौलत की हालत भी वैसी ही थी पर वे दोनों कुंदन और सुमन को संभालने में लगे रहे । 


सारी औपचारिकाताऐं पूरी करने के पश्चात ऐंबुलेंस अजमेर की ओर चल दी । कुंदन वहीं रहते थे । जैसे ही ऐंबुलेंस राजेश के घर पहुंची तो वहां कोहराम मच गया । राजेश की मां राजेश के शरीर से लिपट कर दहाड़ें मारकर रोने लगी । राजेश की बहन दीपा भी बुरी तरह सुबक रही थी । अभी तक किसी का भी ध्यान सुमन की ओर नहीं गया था । जैसे ही राजेश की मां लीला देवी ने सुमन को देखा तो वे बिफर पड़ी "ये क्यों आई है यहां पर ? मेरे बेटे को खाने वाली इस औरत को मेरी नजरों के सामने से ले जाओ नहीं तो मैं इसका खून पी जाऊंगी । इसी ने ही मेरे बेटे को मरवाया है । यह यहां पर क्यों आई है ? क्या रिश्ता है इसका हमसे ? यह किस रिश्ते से यहां पर आई है ? इससे कह दो कि इससे हमारा कोई रिश्ता नहीं है । यह अपनी मनहूस शक्ल यहां से कहीं और ले जाए । मैं इसका मनहूस चेहरा देखना भी नहीं चाहती हूं । अगर यह सीधी तरह से नहीं जाती है तो इसे धक्के मारकर निकाल दो यहां से" । लीला देवी चिंघाड़ने लगीं । 


सुमन की हालत बड़ी खराब हो गई । एक तो विधाता ने उसका सर्वस्व लूट लिया । उस पर "मनहूस" होने का तमगा और मिल गया । फिर भी वह राजेश के पास ही बैठी रही और रोती रही । राजेश के पिता कुंदन ने स्थिति को संभालने की बहुत कोशिश की । उन्होंने लीला देवी को समझाया "भाग्यवान, इसमें इस बेचारी का क्या दोष ? ये क्या कर सकती थी उस हालत में । इस बेचारी को तो सोचने का भी मौका नहीं मिला था और यमराज जी अपना काम कर के चले गए । यह सावित्री तो है नहीं जो यमराज के पीछे पीछे जाकर राजेश के प्राण वापिस ले आती । यह रोने चिल्लाने के अलावा और क्या कर सकती थी" ? 


लेकिन लीला देवी की सोचने समझने की शक्ति मानो समाप्त हो गई । वे सुमन को कोसने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहती थी । सुमन इन सबके बावजूद बड़ी बहादुरी से वहीं बैठी रही और सारे ताने , उलाहने सुनती रही । जैसे तैसे राजेश का अंतिम संस्कार हुआ । सुमन ने बहुत जिद की राजेश के साथ जाने की मगर उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया । सुमन की दुनिया उसी कमरे में सिमट गई । वह न कुछ खाती और न कुछ पीती बस दिन रात रोती रहती । सासू मां के तानों से उसका पेट भर जाता था । आंसुओं से उसकी प्यास बुझ जाती थी । नई मां और दिव्या ने सुमन को संभाला भी मगर ऐसे हालात में संभालना आसान काम नहीं होता है । 


शिवम ने अपनी बुआ की यह स्थिति देखी तो वह सन्न रह गया । तब तक शिवम दस बारह साल का हो चुका था । कुछ कुछ समझने लगा था । बुआ की हालत उससे देखी नहीं जा रही थी । नेहा भी सुमन से लिपट कर रोए जा रही थी । नन्हा सा आर्यन भी अपनी बुआ को चुप कराने का प्रयास कर रहा था । 


कहते हैं कि यदि समय बीमारी है तो यह दवा भी है । समय ने सुमन को ऐसा तगड़ा घाव दिया था जिसे भर पाना असंभव था लेकिन समय का मलहम बड़े बड़े घावों को भी भर देता है । सुमन ने दीन दुनिया से अपना संबंध खत्म कर लिया था । वह अपने कमरे में ही पड़ी रहती । बच्चों से मन बहला लेती और कुछ दो चार कौर खाकर जिंदा रहती । इसी तरह समय गुजरने लगा । 



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