सावधान
सावधान
9 बज रहे थे सुबह के, जब विचित्र सी संगीतमय आवाज आई, आलू बैंगन , तोरी-----
इतना खींच कर बेसुरे स्वर में अपने आने की सूचना तो वो सब्जी वाला भैया ही दे सकता था। हंस पड़ी संगीता और ऊपर से ही आवाज़ देकर बोली, "रुकना भैया, आ रही हूँ,।" ये कह वो जल्दी से थैला उठा नीचे की ओर चल पड़ी।
तब तक कॉलोनी की 2,4 महिलाएं भी सब्जी लेने उतर चुकी थी,फिर वही रोज का सिलसिला शुरू हुआ मोल भाव का---
"भिंडी महंगी है, आधा किलो प्याज दो, अरे हाँ टमाटर भी रख देना"के समवेत स्वर गूंजते और इस बीच उन सभी की गप्प गोष्ठी भी जारी रहती। भइया भी हंस हंस कर उनकी बातों का आनंद लेता रहता और सब्जी तोलना भी जारी रखता। अंत मे धनिया मिर्च की मांग।
सब अभ्यस्त थे इस रूटीन के। और तो और सब उस सब्जीवाले के बारे में भी काफी कुछ जान चुकी थी, वो उनकी कॉलोनी के पीछे ही बनी मलिन बस्ती का था। 2 बच्चे थे एक बेटा 9 साल की आयु का और बेटी 5 साल की।
सब उसे छेड़ती भी, अरे तू तो बड़ा स्मार्ट है, बिल्कुल सरकार की योजना के हिसाब से---हम दो हमारे दो वाला, और वो हंस देता।इधर 4,5 दिन से वो नदारद था असुविधा हो रही थी सभी को
और उत्सुकता के साथ थोड़ी चिंता भी कहाँ गायब हो गया अचानक
एक दिन संगीता के फ्लैट की घंटी बजी, सुबह 7 बजे ही
दरवाजा खोला तो भईया! "अरे तुम? कहाँ गायब थे इतने दिनों से?" और उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही चौंक गई उतरा हुआ मुँह अब रोया तब रोया वाली हालात
"दीदी, आप डॉक्टर हैं न?"
" हैं तो ??? "संगीता ने पूछा, "दीदी मेरी बेटी का बुखार उतर ही नही रहा, डॉक्टर को भी दिखाया पर---उसकी तो तबियत बिगड़ती ही जा रही है, आप चलकर एक बार देख लेती, मेरी बीबी का रो रोकर बुरा हाल है।"
"अच्छा तुम परेशान न हो चलती हूँ, तुम नीचे चलो आती हूँ।"
संगीता ने जल्दी से चप्पल पैरों में डाले खुले बालों में क्लिप लगाई अपना मेडिकल वाला बैग उठकर चल दी, विक्की दरवाजा लगा ले मैं अभी आई। अच्छा उनींदी सी आवाज आई विक्की उसका छोटा भाई था, जो बहन के पास ही रहता था, पढ़ने के लिए।लंबी सी गली पार कर कर वो दोनो उस अधपक्के बने मकान में पहुंचे"आइये दीदी", ये कहता है वो दरवाजा खोलकर अंदर।
"कहाँ है तुहारी बेटी?"
वहां एक व्यक्ति और था। और भइया और दूसरे व्यक्ति के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी-----संगीता खतरा भांप चुकी थी और उसने लड़ने का फैसला लिया।उनको धक्का देकर उसने बाहर निकलना चाहा पर वो दो थे।
उधर जब विक्की संगीता का भाई जब दरवाजा बंद करने उठा तो उसे एक पेपर दिखा, दीदी की लिखावट में ये सब्जी वाले का मोबाइल नम्बर है, और इसी गली में पीछे जा रही हूँ, जरा भी देर हो तुम फौरन पुलिस लेकर पहुंचो--"20 मिनट हो चुके थे, वो हड़बड़ा कर घर से निकला।
पुलिस गंतव्य तक पहुंच चुकी थी, बूट की ठोकर से दरवाजा खुल गया । संगीता का संघर्ष जारी था। जल्दी ही उन गुंडों को पुलिस ने कब्जे में लिया।जरा सी सावधानी से अनहोनी को रोका जा सका था।
