सातवां दिन
सातवां दिन


प्रिय डायरी 31/3/20
सातवां दिन भी आज पूरा हुआ,एक ही ढ़र्रे पर जीते हुए.....बिना कुछ ज्यादा परिवर्तन के.....
एक अजीब से फितरत है मेरी कि बहुत ही जल्दी किसी बात से मन भरने लगता है। अब डायरी से भी......।
शायद आप लोग भी रोज़ वही सब कुछ पढ़ के ऊब चुके होंगे...... ये इक्कीस दिन का संकल्प पूरा करने का संयम रहेगा या नहीं..... पता नहीं।बिना मन के कुछ काम करे तो वो बस औपचारिकता होती है और मेरे व्यक्तित्व में औपचारिकता बहुत कम मात्रा में है।
बहरहाल... आज जो सबसे महत्वपूर्ण व चिंताजनक बात यह ख़बर है कि 'तबलीगी' जमात के लोगों का 'मरकज़' में एक धर्मिक सभा का आयोजन वो भी सभी हिदायतों को ताख पर रखकर....
अब बस यही चिंता है कि सरकार और समाज के सभी कोशिशों पर कहीं इस समाज की नासमझी से पानी न फिर जाए और हम घिर न जाएं एक ऐसी परिस्थिती से जिसको सोच के भी हम सिहर उठते हैं।