सास बिना ससुराल
सास बिना ससुराल
शेखर के साथ वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद अर्चना मायके से रोते-बिलखते विदा होकर ससुराल की देहरी पर खड़ी थी। कभी घूंघट की ओट से शेखर को देखती तो कभी दरवाजे के अंदर देखने की कोशिश कर रही थी।अंदर से कुछ आवाजों को सुनने के सिवा वो कुछ भी समझ नहीं पा रही थी।उसे ये तो पता था कि शेखर की माँ नहीं हैं यानि वो सास बिना ससुराल में जाने वाली है।
काफी देर के बाद भी कोई गृह प्रवेश के लिए नहीं आया तो उसने शेखर की तरफ आशा भरी नजरों से देखा क्यूंकि वो खुद भी काफी थकान महसूस कर रही थी। शेखर ने शायद अर्चना की नजरों की भाषा पढ़ ली थी। वो अपनी छोटी बहन को बुलाकर लाया और उसके कान में कुछ कहा। थोड़ी देर में बहन कुछ औरतों को साथ लेकर आई और अर्चना का गृह प्रवेश करवाया। आगे भी कुछ रस्में हुईं। इन सब के बीच अर्चना तो ये समझ ही गयी कि 'सास बिना ससुराल का मतलब है बवाल'
धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार चले गए, कोई अपनापन दिखाता तो कोई बेगानापन। सब अपने-अपने तरीके से अपना और दूसरों का परिचय दे रहे थे। अर्चना कभी इनकी तो कभी उनकी बातें सुनकर परेशान सी हो रही थी।लेकिन धीरे-धीरे ससुर, पति और दो छोटी ननदों के साथ अर्चना अपनी गृहस्थी की गाड़ी को रास्ते पर लाने का प्रयास करने लगी।
पति का प्यार, ससुर का दुलार और छोटी ननद का स्नेह अर्चना को कब अल्हड़ लड़की से जिम्मेदार गृहणी बना दिया, वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी। पर इन सब चीजों के बीच उसके दिल में एक चीज की कसक रहा करती थी कि उसकी भी सास होतीं। शादी के समय सारी सहेलियाँ उसे काफी किस्मत वाला मानती थीं कि चलो ससुराल में सास की किच-किच नहीं रहेगी पर सच्चाई तो ये है की जिस घर में सास ना हो उस घर में आने वाले सारे लोग सास ही बनने की कोशिश करते हैं। अर्चना भी इस बात को समझती थी। तभी तो दिल ही दिल में फैसला कर चुकी थी कि वो अपनी बेटियों की शादी सास बिना ससुराल में नहीं करेगी।
दोस्तो, कुछ रिश्ते नमक जैसे होते हैं, सास का भी रिश्ता कुछ इसी तरह का है। ससुराल का हर सुख बिन सास के फीका ही स्वाद देता है। ये कहावत भी सही है कि सास गले की फाँस होती है जो ना निगली जाती न उगली जाती है पर इनका रिश्ता काफी खास होता है।
