रश्मि संजय (रश्मि लहर) श्रीवास्तव

Tragedy Others

4.5  

रश्मि संजय (रश्मि लहर) श्रीवास्तव

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सारे जहां से अच्छा!

सारे जहां से अच्छा!

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शालीन गाॅंव में चलने वाले 'हर घर तिरंगा' कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न कामों में जोर-शोर से लगा रहा। आज पूरे दस दिन बाद पाॅंच हजार रूपए पाकर वो अपनी व्हील चेयर पर बैठे-बैठे मुस्करा पड़ा। 


उसको अपनी बीमार माॅं का इलाज करवाने जाना है, यह सोचते हुए वो घर की तरफ जाने के लिए व्हील चेयर घुमाने लगा। सहसा उसको लगा कोई बहुत धीरे से उसको बुला रहा है। वो पीछे पलटा, तबतक किसी ने उसके हाथ से पर्स छीन लिया। 


 अचानक हुई इस घटना से वो पल भर को स्तब्ध रह गया। चीख उसके मुंह में ही घुट कर रह गई। कुछ पल बाद, बहुत जोर लगाकर वो चीखा -"पकड़ो-पकड़ो" मगर शोर में उसकी आवाज दूर तक नहीं पहुंच पाई। वह फूट-फूट कर रो पड़ा। रोता-रोता वह घर पहुंचा और "अम्मा-अम्मा" कहते हुए अपनी मां के निकट पहुंचा तो धक से रह गया!


दरवाजे की तरफ पथराई आंखों से देखती हुई अम्मा निष्प्राण हो चुकी थीं! वह स्तब्ध रह गया। 


घर के हर कोने में उसको अपनी अम्मा दिखने लगीं। कभी पैरों में आलता लगाए हुए तो कभी सावन गाती हुई अम्मा । कभी गोदी में उठाकर स्कूल ले जाती हुई तो कभी उसके साथ देशभक्ति की कविता गाती हुई अम्मा! कभी बिना कुछ कहे चुपचाप भरी-भरी आंखों से उसकी नज़र उतारती सी अम्मा! 


वो चीख-चीख कर कह पड़ा-


"हाय अम्मा! तू बिना इलाज चली गई।"


अचानक वो बुदबुदाने लगा..


"कहाॅं से लाऊंगा मैं कफ़न, जलाने के लिए लकड़ी!" 


सहसा वो फुर्ती से व्हील चेयर पर बैठा और घर से बाहर निकल गया। उसको याद आया कि घर के बगल वाले मंदिर के पास ही बैनर बनाने वाले कपड़े रखे गये हैं। गाॅंव में विधायक जी का दौरा होने वाला है, उसी की तैयारी चल रही है। वो बिना विलम्ब वहां पहुंचा और कपड़े का थान उठा कर घर लौट आया। 


अपनी माॅं की मृत देह को उसने उस अजीब मोटे से कपड़े में लपेटने का प्रयास किया। 


तबतक बाहर से आवाज़े आने लगीं..


"वो रहा.. वो रहा!" 


उसने देखा पुलिस ऑफिसर तथा कुछ सिपाही अंदर आ गए थे। शालीन भय से काॅंपने लगा। 


"क्यों लड़के! पूरे पाॅंच मीटर के कपड़े का थान क्यों चुराया तूने?" 


आग्नेय दृष्टि से घूरते हुए एक सिपाही ने उससे पूछा! 


शालीन लड़खड़ाते हुए, व्हील चेयर को पकड़े-पकड़े खड़ा हुआ। सबने देखा.. पीछे उसकी माॅं का शव उसी थान के कपड़े में लिपटा हुआ तख़्त पर रखा था। शालीन ने पुलिस अफसर के पैर पकड़ लिए और बोला-


"साहब! मुझे जो चाहे वो सजा दीजिए! मैं क्या करता? मेरी माॅं के कफ़न के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे, मेरा पूरा पर्स कोई छीन कर भाग गया। मुझे लगा नया थान है तो कफ़न.." 


कहते-कहते शालीन चीख-चीख कर रोने लगा। पल भर को सब स्तब्ध रह गये। पास खड़े सिपाहियों की भी आंखें भर आईं। 


अचानक एक पुलिस अफसर ने कुछ पैसे उसकी मुट्ठी में दबाए और सब घर से बाहर निकल गये। 


शालीन अपना सर झुकाकर रोता रहा.! कहीं दूर देशगीत बजता रहा..


"सारे जहां से अच्छा!"



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