विश्वास
विश्वास
चाय पीने के बाद सुशीला पति के पास आ बैठी। स्नेहिल भावों से अपने दृष्टिहीन पति मृदुल के दोनों हाथों को हाथ में लेकर वह यकायक बोली..
"सुनिए! एक बात पूछनी है !"
"पूछो प्रि य!" मृदुल ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं घर-बाहर के सब काम अकेले करती हूॅं। आपको समय भी कम दे पाती हूॅं, फिर भी आपको कभी गुस्से में नहीं देखा.. हमेशा मुस्कुराते रहते हैं आप ! आपको कभी शक नहीं होता मुझप र?"
"शक ? गुस्सा ? नहीं प्रिय ! हमारा रिश्ता तो भरोसे पर टिका है। मुझे तुम्हारी हर आहट से अपनेपन की छुवन मिलती है। तुम्हारी हर साॅंस से मुझे प्रेम की महक आती है तो गुस्सा कैसे आ सकता है, बताओ ?"
मृदुल ने शांत स्वर में कहा।
"और यह विश्वास ही न! मेरी मुस्कराहट की वजह है! समझीं तुम ?"
अब सुशीला के होंठों पर एक मृदुल मुस्कान थी, विश्वास से भरपूर।