हा! मेरी बिटिया
हा! मेरी बिटिया
अपने रौंदे, जख़्मी शरीर को समेटते हुए पन्द्रह वर्षीय वैशाली, जो कि सेठ पंचूलाल की बेटी की सहेली थी, सिसकियों के साथ चीखने का प्रयास करती हुई बोली ..
"सेठ! तेरी बेटी को गुंडे उठा कर ले जा रहे थे, उसकी कातर चीख सुनकर मैंने उसे बचाने का प्रयास किया, पर वे लोग उसे बड़ी गाड़ी के भीतर ढकेल कर भाग रहे थे, तभी मैं भागती हुई तुझे बताने आ गई थी और तूने मेरा ही शील भंग कर दिया! धिक्कार है...थू है तुझ पे सेठ!"
अपनी विजय की खुशी में गाफिल सेठ के पैर यह सुनते ही वहीं जम गए और वह जोर से चिल्ला पड़ा..
"हा! मेरी बिटिया!"