रश्मि संजय (रश्मि लहर) श्रीवास्तव

Inspirational

3.9  

रश्मि संजय (रश्मि लहर) श्रीवास्तव

Inspirational

तेरी बिंदिया रे!

तेरी बिंदिया रे!

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प्रेरणा को बचपन से पूजा-पाठ, सजना- सॅंवरना बहुत पसंद था। एक तरफ पढ़ने में टाॅपर तो दूसरी ओर इतनी सुन्दर! उसपर जब वो अपने दमकते माथे पर छोटी सी बिंदी लगाती थी तब तो बस एकदम अनुपम रूप निखर आता था उसका। देखते-देखते वो सुप्रसिद्ध भल्ला खानदान की बहू बन गई। 


बख़ूबी अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते- निभाते वह दो प्यारी सी बेटियों की माॅं भी बन गई..चारों तरफ उसके रूप की, गुणों की बातें होती थी..कि सहसा एक दिन उसके माथे पर कुछ खुजली सी शुरू हो गई..लाल निशान..चकत्ते .. डाक्टर दवा तो देते पर फायदा जरा भी न होता, परिवार सदमे में तब आया जब एक बड़े अस्पताल की रिपोर्ट में स्किन कैंसर निकल आया..


मायका.. ससुराल..चारो तरफ हाहाकार मच गया.. रेडियो थेरेपी के कारण चेहरा भयानक हो चुका था। इतनी बुद्धिमान स्त्री..समय की मार को झेलकर एकदम बदल चुकी थी! 


धीरे-धीरे वह ठीक तो हो रही थी.. पर हर वक्त रोती रहती और अपने श्रंगार के सामानों को छू-छू कर देखती...तिल-तिल कर घुटने लगी थी वो। 


उसको अथाह प्रेम करने वाला जीवनसाथी मिला था, वो भी इस सदमे से धक से रह गया था! 


पर कहते हैं ना कि समय कभी एक सा नहीं रहता.. उसके पति ने उसकी सोच को पुनः सकारात्मक करने की सोची। 


उसके घर में ही गरीब लोगों के लिए एक दुकान खोल दी गई..जहाॅं हर सामान के साथ ही एक बिंदी का पत्ता फ्री में दिया जाता था..सिंदूर के कोई पैसे नहीं लिए जाते थे..इस अनोखे प्रयास से उनकी दुकान में हर समय भीड़ रहती थी.. प्रेरणा की एक छोटी सी राय लोगों की सुंदरता में चार चांद लगा देती थी।


 धीरे-धीरे प्रेरणा स्वस्थ होने लगी थी..उसकी दुकान की चर्चा और उसके स्नेहिल व्यवहार की बातें दूर-दूर तक फैल चुकी थी। कहते हैं ना कि जब आपकी सोच उत्तम हो, प्रयास निश्छल एवं सकारात्मक हों तो कायनात भी आपका दुःख दूर करने में लग जाती है!


गरीबों के आर्शीवाद का प्रभाव था या प्रेरणा का भाग्य, उसकी बीमारी ठीक हो चुकी थी..पर उसने अपनी दुकान पूर्ववत चलने दी!


आज पूरे दो वर्ष के इलाज के बाद प्रेरणा शरद पूर्णिमा के पावन दिवस की पूजा करने के लिए तैयार होकर कमरे से निकली तो उसके पति ने भावुक हो कर उसको गले से लगा लिया और कानों में धीरे से कहा.. 


"बहुत सुंदर लग रही हो प्रेरणा!"  


बहुत दिनों बाद अपने लिए ऐसी बात सुनकर प्रेरणा लाज से लाल हो पड़ी..तभी उसके कानों में आवाज पड़ी..


'तेरी बिंदिया रे.. ' 


उसने पीछे मुड़कर देखा तो चौक पड़ी.. उसकी दुकान का नामकरण हो गया था.. दोनों बेटियां बैनर लिए जा रही थीं..'तेरी बिंदिया रे' और प्रेरणा! दुकान का नाम पढ़कर खुशी से रो पड़ी..



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