सामान्य जीवन

सामान्य जीवन

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विचारों में गुमसुम माधुरी को ,मालकिन की कर्कश आवाज़ सुनाई दी "ऐसा बर्तन मांजती हो, कपड़े भी साफ नहीं धुले हैं? तुझे औरतों के भी काम, नहीं आते क्या?"

माधुरी कहती है "आंटी जी,दो दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है, बुखार से शरीर तप रहा है, मैं फिर से कर देती हूं , अब ग़लती नहीं होगी "।

मालकिन तबियत ठीक नहीं तो आयी क्यों? मैं जानती हूं तुम लोग बहाना बनाने में उ़स्ताद होती हो, चल निकल और अपनी सूरत,फिर नहीं दिखाना।

अपंग पति को दवा देने का समय हो गया था, वह सोचती हुई घर के लिए निकल पड़ी, अब उसे दूसरा काम तलाशना होगा ।

उसे याद आने लगा कि, एक माह पूर्व ही उसका ,विवाह एक राज मिस्त्री से हुआ था और उसके पति की दोनों टांगे सड़क दुर्घटना की भेंट चढ़ चुका था ।

माधुरी ग़रीब थी और अनपढ़ भी, पेट की आग उसे दूसरे घरों में काम करने, झाडू-पोंछा करने पर मजबूर कर गयी, किस्मत ने उसे भरी जवानी में,बुढ़ापा दे दिया था और अपंग पति अलग से।

फिर भी माधुरी ने हिम्मत नहीं हारी, घर पहुंचने पर उसका पति रोता हुआ दिखा, माधुरी को देख उसके आँसू नहीं रूके, कहा"तुम कितना काम करती हो, मुझे तुमको खुश रखना चाहिए, मुझे लगता है कि ऐसे जीवन से मेरा मर जाना अच्छा होगा "माधुरी ने कहा "हमारे भी दुख दूर होंगे, हमें हारना नहीं जीतना है, कायर लोग आत्महत्या करते हैं।"

सौभाग्य से उसे डाक्टर का घर काम करने मिला, डाक्टर को उसने अपने हालात बताये, पति के पैरों की जांच कर उसने कहा "इलाज हो जायेगा, नकली पैर लगवायेंगे और यह फिर से सामान्य जीवन जीने लगेगा ।"


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