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Prabodh Govil

Classics

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Prabodh Govil

Classics

साहेब सायराना-15

साहेब सायराना-15

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50

आरंभ से ही हमारा पारिवारिक ढांचा ऐसा रहा है कि यहां पति- पत्नी एक ही फील्ड में होने पर समस्याएं आती ही आती हैं। दोनों को एक साथ सफ़लता, संतुष्टि और साहचर्य एक साथ नहीं मिल पाते।

इसीलिए सयाने लोग यही सोचते हैं कि दोनों की मानस - दुनिया अलग- अलग रहे। तभी अच्छा और प्रेमभरा निभाव हो पाता है।

दिलीप कुमार के मित्र और प्रतिस्पर्धी राजकपूर ने इसीलिए नरगिस से विवाह नहीं किया। इसीलिए अपनी पुत्रवधुओं बबीता और नीतू सिंह से भी शादी के बाद फ़िल्में छुड़ा दीं जबकि ये सभी सफल और होनहार अभिनेत्रियां थीं।

लेकिन दिलीप कुमार इस मामले में भी किस्मत वाले रहे। उनकी पत्नी सायरा बानो उन्हीं की तरह फिल्मी दुनिया का सितारा होते हुए भी फ़िल्में करती रह सकीं क्योंकि दोनों की फ़िल्मों का मिजाज़ अलग - अलग रहा।

इस बात को बार- बार सुनते- सुनते एक दिन सायराबानो को ये लगने लगा कि आख़िर कभी तो उन्हें भी गंभीर निर्माताओं के साथ उद्देश्यपूर्ण फ़िल्में करनी चाहिए। और उनकी इस इच्छापूर्ति का संयोग तब बैठा जब उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी ने फ़िल्म "चैताली" के लिए साइन किया। सायरा बानो के फैंस को इससे सुखद आश्चर्य ज़रूर हुआ पर फ़िल्म नहीं चली।

इच्छा और वास्तविकता का खेल ऐसा ही है। कई बार पानी का बुलबुला भी हीरे की मानिंद दमकता है।

ऐसा ही एक वाकया सायराबानो के कैरियर में उस समय पेश आया था जब निर्माता निर्देशक एच एस रवैल उन्हें फ़िल्म "मेरे मेहबूब" में कास्ट करने के लिए पहुंचे। सब जानते हैं कि मेरे महबूब में राजेंद्र कुमार के साथ दो नायिकाओं की भूमिका रखी गई थी जिनमें एक मुख्य भूमिका थी और दूसरी उससे कुछ कम महत्व की सहायक अभिनेत्री की भूमिका थी। रवैल उस फ़िल्म की हीरोइन के तौर पर साधना को ले चुके थे और सहायक रोल में सायरा को लेना चाहते थे।

लेकिन सायराबानो का अपना आकलन कुछ और था। वो चाहती थीं कि उन्हें "जंगली" फ़िल्म हिट हो जाने के बाद अब यहां हीरोइन की मुख्य भूमिका ही मिले। ये बात न रवैल ने मानी और न साधना ने। फ़िल्म में साधना के साथ अमिता ने सहायक भूमिका की। पर ये फिल्म ज़बरदस्त ढंग से कामयाब हुई और इसने कई लोगों की दुनिया बदल दी।

किंतु फ़िल्म "पड़ोसन" ने जिस तरह धूम मचाई उसने सायराबानो का जादू एक नए आयाम के साथ ही जगा दिया। सायराबानो की इस कामयाबी ने कई प्रोड्यूसर्स को दिलीप साहब के साथ सायरा बानो को साइन करने के लिए उकसाया और दर्शकों के सामने "गोपी", "सगीना" जैसी फ़िल्में आईं।



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