रूढ़ी
रूढ़ी
विभागीय हिंदी संगोष्ठी साठी मी आणी काही कार्यालयाचे सहकर्मीना मेघालय राज्याची राजधानी शिलांगला जाण्याचा योगा आला। आम्ही मिळून प्रथम विमानने कोलकोताला पोहचलो। मग दुस-या दिवसी शिलांगला गेलो। मेघालय आणी पूरोत्तरच्या सात बहिण्यांची सेर सपाटा करण्याची तीव्र ईच्छा बरेच काळा पासुन मनात घर करुन बसली होती। तीथले नैसर्गिक सौंदर्य बघण्या सारखे आहे असे नेहमी वाचण्यात आणी ऐकण्यात येत होते। संधी मिलाल्यामुळे ती उत्सुकता अतितीव्र झाली होती। तसी योजना आम्ही निघण्या पूर्विच केली होती। पोहचल्या नंतर आम्ही दुस-या दिवसी मेघालयची सैर-सपाटा करण्याचे ठवरले होते। त्यात प्रामुख्याने भारतात सर्वात जास्त पाऊस नोंद करणार स्थान म्हणजे चेरापुंजीला जावयाचे होते। त्यासाठी आम्ही एक टॅक्सी बुक केली होती। सकाळी तो टॅक्सीवाला आम्हाला घ्यायला आला होता। नंतर आम्ही दोघेही टॅक्सीत बसलो। त्याने विचारले साहब आप सिर्फ दोनोंही हो क्या ? आगे कोई बैठने वाला है क्या । त्याचा प्रश्न ऐकुन आम्ही दोघेही चकित झालो। मग त्याला विचारले। आप ऐसा क्यों पुछ रहे हो भाई । उसने कहा, सामान्यता टॅक्सी में तीन-चार मिलके जाते है। आम्ही उत्तर दिले ,अरे भीड –भाड में चलने से,अच्छा है, जरा आराम से चलते है। त्याच्या योजने प्रमाने त्याने आम्हाला प्रथम काही स्थानिय स्पॉट दाखवले। एका ठिकानी आम्ही सर्वांनी मिळून नश्ता केला।तो फार खुश झाला। त्याने आम्हाला जो एक स्पॉट त्याच्या कार्यक्रमात नव्हता त्या बदल माहिती दिली। म्हणाला साहब ये स्पॉट मेरे तरफ से आप को तोफा। आप भी क्या याद करोगे!। किस अमीर टॅक्सीवाले से पाला पडा था।आम्ही त्याला सहमती दिली तो मग त्या स्पॉट कडे निघाला। रस्तात त्याने कोणाला तरी फोन केला होता। तो काही तरी स्थानीय भाषेत बोलत होता।त्यामुळे आम्हाला काही समजले नाही। थोड्याच वेळात त्या स्पॉटवर त्याने आम्हाला पोहचविले। स्पॉट बघुन येण्यास सांगितले। आम्ही परत आल्यावर बघितले कि तो एक समवयस्क मित्रा सोबत बोलत होता। आम्हाला पाहुन हसत-हसत म्हणाला,अच्छा लगा ना साहब। नंतर तो अपरिचित आम्हाच्या सोबत गाडीत बसला। तो म्हाणाला सहाब ये मेरा दोस्त है।अकेले बौर हो जाता हूं। इसलिए साथ में ले लेता हूं।
आम्ही त्याच्या या प्रस्तावाला सहमती। दिली। आमचा मग चेरापुंजीचा प्रवास सुरु झाला। वाटेत दिसनारे नैसर्गिक सौंदर्य बघत-बघत जात होते।मधे काही सांगण्या सारखे असले की तो त्याची माहित दोघेही टुटी-फुटी हिंदी मध्ये सांगण्याचा प्रयत्न करत होते। काही दाखविण्या सारखे असले कि तो स्वतःच गाडी थांबुन दाखवत होता। प्रवास करता-करता आमचे एका-मेकाशी मन जुळुन गेले होते।परके पणा दुर झाला होता। त्या दोघांची आपसी मैत्री आणी प्रेमळ आपसी व्यवहार बघुन मी त्याला प्रश्न केला।अरे तुम्ही लंगोटी मित्र आहात कां । त्याने विचारले तुम्ही कसे ओळखले। मुझे तो, मित्र से बढ्कर दोनों भाई-भाई ही लगते हो। उसने कहां, सच बोल रहे है। लेकिन ये आपका आधा सच है। मैंने कहा मतलब,भाई मगर साडूभाई है। बोलता –बोलत, मी त्याला विचारले एकाच गांवात राहता कां। तो हसत-हसत म्हणाला एक घर में ही रहते है। मी त्यांना गमत-गमत, करता- करता विचारले, अरे भाई क्या आप दोनों ने एक ही लडकी से शादी कि है क्या। दोनों हसते-हसते बोले, नहीं। हमने दोनों बहनों से शादी की है। हे ऐकुन मी त्याला प्रश्न केला। अरे लगता है दोनों बहनों में शायद बहुत प्रेम है। शादी के बाद में भी दोनों अभी-अभी साथ में रहती है। उन्होने कहा वो और कहां जाएगी। मै ने कहा ससुराल में। आप लोगों के घर।
मेरे ऐसा सवाल सुनकर बोला, क्या आप के तरफ शादी के बाद लडकिया ससुराल जाती है । आम्ही म्हटले ,कुठे जाणार, सासुरवाडीलाच जाणार। तो हासायला लागला। आम्ही त्याला विचारले। इकडे थोडी तिकडच्या पेक्षा वेगळी पध्दत आहे। इकडे लग्ना नंतर मुलगा मुली कडे जावुन राहतो। मुलगा नंतर नेहमी साठी मुलीच्या घरी घरजवाई म्हणुन राहतो। इसलिए हम दोनों अपने ससुराल में अपने सांस और ससुर के साथ रहते है। मी त्याला विचारले कि माणसाला काही इकडे किंमत नाही आहे कां ।तो फक्त कोलुचा बैल आहे का। आपने सही कहां। जब हम शाम को घर लौटेगें तब हमें अपने सांस को ,पुर्ण कमाईचा हिशोब द्यावा लागेल। मी विचारले ऐसा क्यों। त्याने सांगितले कि ये टॉक्सी मेरी नहीं।ये ससुरने लेके दी है। मुझे इसे चलाना है। बस इसके बदले उसके लड्की के पति का फर्ज निभाना है। इकडे सगळी संपत्ती स्त्रीच्या नावाने असते। पुरुषाच्या नावाने काहिच नसते। ये जो पर्वत आप देख रहे है। इस में एक भी पर्वत कोणत्याहि पुरुषच्या नावाने नाही। त्याचे हे कथन ऐकुन मी एकदम हादरलो। माझ्या पाया खालची जमिन एकदम खसकली। मी विचारले ये सभी पर्वतों कि मालकिन सब यहां की औरतें है। सरकार का इन पर कोई अधिकार नहीं है। मग माझ्या लकक्षात आले कि जस्या जमिनी आपल्या कडे निजी मालमत्ता असते। तस्या इकडे टेकडया व पर्वत ही निजी मालमत्ता असते। मग त्याला प्रश्न केला। इन पर्वतों का आप क्या करते है। इसका क्या लाभ है। उसने कहा कुछ निचले भागों में बरसात में हल्की से खेती-बाडी करते है। कुछ औषधी वाले वृक्ष से उसके कुछ भागों को काटकर दवा कंपनियों को बेचा जाता है। जीन पर्वतों में मकान के लिए पत्थरों के स्लँब याने शिला निकलती और अन्य जीजें जैसे संगमरमर,चुना कि निलामी की जाती है। पुरा पर्वत कट ने बाद जब समतल आंशिक जमिन तैयार होने पर खेती या मकान बनाने के लिए बेची जाती है।
थोड्या वेळा नंतर मी त्याला म्हटले अरे मुझे पर्वत बहुत अच्छे लगते है। अशे वाटते कि दोन चार पर्वत विकत घ्यावे। त्याच्या वर छान पैकी एक छोटासा बंगला बनवावा। तो मनाला साहेब, आपन इथे आपाल्या नांवा वर काहिच विकत घेवु शकत नाही। याच्या साठी तुम्हाला इथल्या कोण्या बाईसोबत लग्न करावे लागेल। आनी मग तीच्या नांवावर पर्वत विकत घेवुन मग बंगला बनवावा लागेल। जर तुम्ही तीला सोडुन दिले तर तो बंगला आणी पर्वत तीच्याच नावांवर राहिल।
मग मी त्याला गंमत केली। तु माझ्यासाठी एक चाची ढूंढ के रख। सेवानिवृति के बाद, मुझे ढेर सारे जो पैसा मिलेगें। फिर मै ईधर आऊंगा ! तु मेरी शादी करवा देना। और फिर मैं बंगला बनाउंगा।
थोडी वेळे नंतर आम्ही चेरापुंजीला पोहचलो। तीथे अपेक्षा प्रमाने मला असे वाटत होते कि जीकडे –तिकडे पानीच- पानी असेल सर्वत्र हिरवे गार दिसेल। पण तीथे दृश्य काही वेगळेच होते। जीकडे-तिकडे उघडे सुकलेले जमिन आणी पर्वत। काही ठिकाणी स्थानिय बाया-माणसे पाण्याचे भांडे घेवुन रांगेत उभे होते। टँकर ची वाट बघत। मी त्याला प्रश्न केला। क्या चेरापुंजी आ गया। तो म्हलाला साहब हेच चेरापुंजी आहे।मी त्याला म्हटले ही कशी चेरापुंजी असु शक्ते । इथे तर जागात सर्वात जास्त पाऊस पडतो। अरे इथे ही कशी काय पाण्याची किल्ल्त । तो म्हणाला। साहब यहां तो बरसाता में लगातार बहुत बारिश होती रहती है।लेकिन बारिश का मौसम खत्म होने पर पुरा पाणी बह जाता है। गर्मीयों में यहां तो लोग एक-एक बुंद पाणी के लिए तरस्ते है। यहां ना कोई तालाब या नदी में कोई पाणी बचता है। सब बह जाता है।
लेकिन यहां कि सरकार कोई पाणी रोकणी की कोई ठोस योजना क्यों नही बनाती है। वो हसने लगा। जो पुरे देश के राजनेता और सरकारे करती है। वह यहां भी होता है। जीस की सरकार बनती है वे सब पैसा डकार जाते है।अपने बच्चों और परिवार को देश-विदेश के सुख-सुविधा युक्त शहरों बसा देते है। चुनाव के वक्त ही वे सिर्फ दिखते है। चेरापुंजी बघितल्या नंतर,मग आम्ही वापसीच्या प्रवासाला निघालो होतो।
आता आम्ही जवळ पास शिलांगच्या वापसी वर होतो। नंतर त्याने आम्हाला जीथुन घेतले होते तीथे आणले होते। त्याचे पैसे वैगरे देने झाल्या वर मी त्याला गंमत केली। अरे तुने मेरे लिए चाची ढूंढने का वादा किया है। भूल मत जाना। वो हसते हुयें बोला। आप साहब आई तो पहिले। आप के लिए जरुर चाची ढूंढ के रखुगां। अरे तुने तो मुझे अपना नाम पत्ता तो दिया नहीं है। मै तुझे कैसे ढूढुंगा । वो बोला साहब आप के पास मेरा नंबर तो है ।आप फोन कर लेना। अरे लेकिन आप तो रोज हजारो पर्यटको, सैलानीयों से मिलत हो। आप मुझे कैसे याद रखोंगें। वो बोला , आप मेरे से ये चाची वाली बात सिर्फ छेडा देना। मैं आपको पहचान लूगां? अरे ऐसे कैसे पहचान लोगे। वह बोला आप के जैसे मजेदार चाचा कहां मिलते हमेशा। मेरा तो दिल कर रहा है कि आपसे कुछ ना लू। लेकिन घर में सांस डंडा लेकर बैठी होगी।घर पहुंचते ही सर्वप्रथाम सांसु मॉ के पैर छुकर उसा पर धन अर्पन करना पडेगा। बाद में ही हम दोनों को अपने-अपने चांद का दर्शन होगा।
फिर मैंने उससे मजाकिया मूड में छेडा। अगर तुम्हारे सांस को जुडवा लडकियां होती।उनकी शादियां आप दोने के साथ हो जाती। तो आपको अपना चांद पहचानने में बहुत दिक्क्त हो जाती। वह बोला साहब आपने सही बात बोली है। हमारी पत्नीयं सही में जुडवा बहने है। वे कपडे भी एक जैसे पहनती है। कभी –कभी तो खुद की पत्नीयां हमे चक्कर डाल देती है। बहुत बार खुद की पत्नी ही हमे डांट कर अपने बिस्तर से भगा देती है। इतने साल हो गये। अपने पत्नी के गंध को नहीं पहचानते। फिर हम दोनों साडूभाऊ दालान में सो जाते है। सुबह फिर अपनी- अपनी उठाने आती जाती है। वे जमके एक दुसरे को देखकर हसती है।
आज कल हम इनके बारे में ज्यादा नही सोचते। जो पास में आ गई वही अपनी। सोचते है, आखिर में उत्पाद तो एक ही कंपनी का है ना । कोई भी इस्तमाल कर लो,क्या फर्क पडता है । इसी संवाद के साथ हमारा सुहाना सफर संपन्न हो गया था।
