Nisha Nandini Bhartiya

Tragedy

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

Tragedy

रूपवती

रूपवती

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उसका नाम रूपवती था और वह थी भी रूप का खजाना। मेरे विद्यालय में वह एक अध्यापिका के रूप में आई थी। उसको प्रथम देखते ही मुझे बहुत अच्छा लगा। परिचय प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ कि वह विवाहित है उसकी पांच साल पहले शादी हुई थी। रूपवती तीन बहनें और एक भाई थे। वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। बहुत लाड़ प्यार से पली थी। अर्थ शास्त्र विषय में एम. ए किया था। वह बहुत ही संस्कारी संघ परिवार की लड़की थी। पर भाग्य तो बहुत बलवान है। माता पिता के विरुद्ध होकर उसने अपनी पसंद के अमन नाम के लड़के से विवाह किया था। विवाह के बाद माता-पिता भी सहमत हो गए थे।

रूपवती पढ़ी-लिखी होकर भी सब कुछ भूलकर अपने ससुराल पक्ष की सेवा में लग गई, प्रात: चार बजे उठती और रात्रि के 12:00 बजे सोती थी। अपने पति की डांट-फटकार सुनना उसका रोज़ का काम था। वह कोशिश करती थी कि किसी तरह अपने सास-ससुर व परिवार के अन्य लोगों को प्रसन्न रख सके लेकिन पासा उलटा ही पड़ रहा था। वह जितना अच्छा बनने की कोशिश करती उतना ही उसके ऊपर अत्याचार बढ़ता जा रहा था।

धीरे-धीरे उसके पति ने उस पर हाथ उठाना भी शुरू कर दिया था। बिना कारण ही उसको मारा-पीटा जाता था। वह रोती- चिल्लाती पर उन ज़ालिमों पर कोई फर्क न पड़ता था। उसका पति बहुत ही ऐयाश किस्म का था। उसके अन्य लड़कियों के साथ भी संबंध थे।

रूपवती सब कुछ सहन करती रही क्योंकि वह पति का घर छोड़कर अपने माता-पिता का दिल दुखाना नहीं चाहती थी। उसने अपनी मर्ज़ी से विवाह किया था। इसलिए वह सारे अत्याचार सहती रही, पर एक समय ऐसा आया जब रूपवती की सहनशीलता जवाब दे गई।

रूपवती की ससुराल में उसकी दो ननद, उसका पति व सास-ससुर थे। दोनों नन्दों का विवाह हो चुका था। एक ननद अपना ससुराल छोड़कर तीन साल के पुत्र को लेकर मायके आ गई थी। रूपवती पर होने वाले अत्याचार की वह मुख्य जड़ थी, ठीक ही कहा गया है कि आज घर-घर में नारी ही नारी की दुश्मन है। उसका नाम सुशीला था। उसके दिमाग में सदैव नकारात्मक विचार ही चलते रहते थे। वह बहुत क्रूर स्वभाव की थी। सुशीला ही थी जो रूपवती के पति और सास के कान भरती रहती थी। उसके ही कहने पर रूपवती के पति ने उसके पिता से एक बड़ी गाड़ी की मांग की थी। रूपवती के पिता ने अपनी पुत्री के सुख के लिए उनकी यह बात मानकर इनोवा गाड़ी भी ख़रीद कर दी, लेकिन रूपवती पर अत्याचार कम नहीं हुआ। वह दर्द से कराहती रहती थी। वह अपनी करनी पर बहुत पछता रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक बार उसने अपने पति से नौकरी करने की बात कही- तो उसका पति भड़क उठा। तुमसे नौकरी करवा कर घर में नौकरानी रखूंगा। तुम नौकरी के विषय में सोचना भी मत, मेरी माँ और बहन की सेवा कौन करेगा ? घर के काम कौन करेगा ?

एम. ए तक पढ़ी-लिखी रूपवती अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी। वह भगवान से प्रार्थना करती, अपने भाग्य को कोसती- हे भगवान तुमने मेरे भाग्य में और कितने दुख लिखे हैं। अब रूपवती ने सोचा कि अगर एक बच्चा हो जाए तो वह उस बच्चे के सहारे अपना जीवन काट लेगी। लेकिन अमन उसको अपने पास बैठने तक नहीं देता था। एक बार उचित समय देखकर रूपवती ने अमन से कहा - मुझे एक बच्चा हो जाए और मुझे कुछ नहीं चाहिए। तब अमन उस पर भड़क उठा - तुमने बच्चे के विषय में सोचा कैसे ? मुझे तुमसे कोई बच्चा नहीं चाहिए। तुम इस घर में सिर्फ एक नौकर की तरह रहो। तुम्हें रोटी- कपड़ा और रहने के लिए मकान सब मिला है। तुमको किस बात की कमी है। अमन हर दिन रात में बारह- एक बजे के बाद नशा करके आता और रूपवती पर अत्याचार करता उसको मारता-पीटता। दिन में उसकी सास-नन्द उसके साथ दुराचार करती थी। उसको सबसे बाद में बचा-खुचा खाना दिया जाता था।

पाँच साल तक रूपवती अपने ससुराल पक्ष के दुराचार सहती रही। एक रात अचानक उसके मन में एक ख्याल आया कि इस तरह पशुओं की तरह जीने से तो अच्छा है मैं इस घर को छोड़कर भाग जाऊँ और नौकरी करके अकेली रहूं। इस एक विचार से उसके अंदर ख़ुशियों का संचार होने लगा। बस फिर क्या था एक दिन शाम को वह अपना कुछ सामान लेकर अपने पिता के घर आ गई। उसको देखते ही उसके माता-पिता और भाई- भाभी को बहुत धक्का लगा। वे सोचने लगे लोग क्या कहेंगे ? उन्होंने सोचा- दो चार दिन में समझा- बुझाकर वापस ससुराल भेज देंगे। लेकिन वह दिन कभी नहीं आया। रूपवती ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह अब अपने ससुराल कभी नहीं जाएगी। पाँच साल उसने बहुत पीड़ा-दुख सहन किया। उसको बहुत अपमानित किया गया। लेकिन अब वह नये सिरे से अपना जीवन शुरू करेगी ।


माता-पिता और भाई के बहुत कहने पर भी वह टस से मस नहीं हुई। उसके इस निर्णय पर उसके  पिता को हृदय आघात ( हार्ट अटैक) हो गया समय पर ठीक प्रकार इलाज होने के कारण उनके प्राण बच गए। रूपवती अपने पिता की ख़ातिर दुखी मन से एक बार फिर अपनी ससुराल आ गई। लेकिन अब तो उसके साथ और भी बुरा व्यवहार किया जाने लगा। सात-आठ महीने में जब उसके पिता पूरी तरह ठीक हो गए तो वह पुनः अपने मायके वापस आ गई। इस बार उसने अपने पिता को वहां की सब बात बता कर समझाया। पिता मान गए और उन्होंने अपनी बेटी का साथ देने का निश्चय किया। फिर क्या था एक दिन उसने अपने सभी प्रमाण पत्रों की फाइल निकाली और एक नौकरी के लिए आवेदन पत्र लिखा। उसकी आठ-दस फोटो कॉपी करवा कर विभिन्न स्कूलों में भेज दी। जब वह विद्या मंदिर स्कूल में गई तो उसकी शैक्षिक योग्यता और उसका व्यवहार देखकर प्रिसिंपल ने उसे तुरंत रख लिया क्योंकि उन्हें भी एक योग्य टीचर की आवश्यकता थी। उन्होंने रूपवती को एक अगस्त से ज्वाइन करने के लिए कहा। रूपवती की खुशी का ठिकाना न था मानो उसके पंख लग गए हो ।

अब एक अगस्त (1/8/15) को रूपवती ने विद्या मंदिर स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली। वह बच्चों को समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र पढ़ाती थी। स्कूल के सभी अध्यापक व बच्चे रूपवती से बहुत खुश थे। वह भी खूब मन लगा कर बच्चों को पढ़ाती थी।

एक महीने में ही रूपवती की दुनिया बदल गई थी। अब उसने अपने पति के खिलाफ संबंध विच्छेद ( तलाक़) की अर्जी भी कोट में दे दी थी। उसके माता-पिता व भाई भाभी भी अब बहुत खुश थे। उसने माता पिता से अलग मकान लेकर रहने की बात कही पर माता पिता बिल्कुल तैयार न थे। अब उसके माता-पिता के अंदर भी हिम्मत आ गई थी। अब उन्हें समाज का कोई डर न था। उन्हें अब पछतावा हो रहा था कि उन्होंने अपनी बेटी को पहले ही अपने पास क्यों नहीं बुला लिया । हमारी कोमल सी बेटी ने कितने अत्याचार सहन किए। उसके पूरे शरीर पर चोट के निशान बने हुए थे जो कि रूपवती ने बहुत बाद में अपने माता-पिता को दिखाए थे।

अब उसके माता-पिता को लगता था कि बेटी के विवाह से भी ज्यादा जरूरी उसको पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करना है। जिससे वह अपने सम्पूर्ण निर्णय लेने में समर्थ हो। आखिर बेटी भी तो इंसान है। उसको भी अपना जीवन अपने अनुसार जीने का हक है ग़लती भी इंसान से होती है और इंसान ही उसमें सुधार करता है।

आज रूपवती को विद्या मंदिर स्कूल में पढ़ाते हुए दो साल हो चुके हैं अब उसकी दुनिया बदल चुकी है, दुनिया देखने का नज़रिया भी बदल चुका है। उसका अपने पति से संबंध विच्छेद हो गया है। वह बहुत खुश है। उसके माता-पिता उसके पुनर्विवाह के लिए एक अच्छे वर की तलाश कर रहे हैं।

आज हर माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे पहले बेटी को पढ़ाए लिखाए, उसे अपने पैरों पर खड़ा करे, तत्पश्चात उसका विवाह करें। अगर बेटी से कोई नादानी हो जाए तो उसे एक मौका अपने आप को सुधारने का अवश्य दें। तभी हमारे देश की बेटियों का कल्याण होगा। देश का कल्याण होगा।



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