Dr. Vijay Laxmi

Thriller

4.8  

Dr. Vijay Laxmi

Thriller

रूम नम्बर 303

रूम नम्बर 303

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अहमदाबाद से जामनगर कार से 6 घंटे का सफर है । सुधीर को घर से निकले 2घंटे हो चुके थे । घर से 12 बजे निकला था कि 7 बजे तक पहुंच ही जायेगा । हल्की सी बूंदाबांदी बिन मौसम की बरसात शुरू हो गयी थी उसे पूरा विश्वास था कि वह दिन डूबते ही मित्र के घर पहुंच जाएगा । साथ में बीबी और दो बच्चे थे पर अपना सोचा होता कहां है ?


वह अभी रास्ते में ही था ,जामनगर पहुंचने में अभी 2 घंटे का समय और लगना था कि उसकी गाड़ी में कुछ खराबी आ गयी मैकेनिक को खोजते गाड़ी बनवाते ही 5 बज चुके थे । बिन मौसम की बारिश इतनी तेज आ गई कि वह आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहा था । अंधेरी ठंडी की रातें तूफानी हो रही थीं कुछ दिख भी नहीं रहा था ।


तूफ़ान अपने पूरे जोर में था । 5 बजे दिन में ही रात महसूस हो रही थी । बच्चे भी अंधेरे से परेशान थे नेटवर्क भी काम नहीं कर रहा था ।ऐसा लगता जैसे राह भटक गया हो ।


हारकर गाड़ी धीरे-धीरे चलाता किसी के मिलने की उम्मीद में जा रहा था । तभी उसे एक आदमी अपनी ओर आता दिखाई पड़ा । उसने गाड़ी की रोशनी में उस आदमी को देखा जो बहुत ही वृद्ध था । उसने उससे आगे का रास्ता पूछा ।

"वह बोला बेटा ऐसी रात में तुम गाड़ी चला रहे हो मार्ग आगे और भी दुर्गम हो जाएगा एक छोटा सा नाला भी पड़ता है हो सके तो तुम यहीं कहीं पास में कोई परिचित हो तो ठहर जाओ"। 


"बाबा यहां पर मैं किसी को नहीं जानता ।मैं इस इलाके के लिए बिल्कुल नया व अंजान हूं । मेरा दोस्त जामनगर में है ।सोचा था मैं 7 बजे तक वहां पहुंच जाऊंगा पर अब अचानक की बारिश के यह हालत देखकर कुछ समझ नहीं आ रहा । 


बेटा !! तुम्हारी बात सही है यहां पास में आगे चलकर 1 किलोमीटर बाद एक कोठी है उसे हमारे जमींदार साहब के बेटे किराए पर उठाते हैं । जमींदार जी तो अब नहीं रहे ,उनके बेटे विदेश जाकर बस गए हैं मैं वहां पर केयरटेकर का काम करता हूं" ।


ठीक है बाबा आप तो हमें अंधेरे में रोशनी की किरण जैसे हैं । एक बार पत्नी ने आंखों से कुछ संशय जाहिर किया । पर मरता क्या ना करता कोई और दूसरा रास्ता भी तो नहीं था । सुधीर ने आंखों से ही उसे प्रतिउत्तर दिया । प्रति उत्तर में उसने भी हां कह दिया ।


अब इस अंधेरी रात में इतनी बरसात में बच्चों के साथ आगे जाना भी उचित नहीं था । आखिर में उसने उसे बाबा को अपने साथ आगे की सीट पर बैठा लिया और उनके बताए रास्ते पर वह ड्राइविंग करके जाने लगा ।


आखिर एक मोड़ से दूसरे मोड, एक रास्ते से दूसरे रास्ते होते हुए करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर जमीदार जी की कोठी मिल गई बाहर कोठी में लिखा था


"ठाकुर मदन सिंह जी की कोठी "

बाबा ने गेट का ताला खोला और गाड़ी अंदर खड़ी करने को कहा । सुधीर ने देखा लगभग सभी कमरे बंद थे । बाबा ने कहा," यहां लोग जल्दी आते भी नहीं है वही आता है जिसको कोई ठहरने की जगह नहीं होती है कुछ अंदर घुसकर है "।  


वे फिर बोले , "भैया आजकल शादी का सीजन है मालिक खुद आने वाले हैं उन्होंने दो कमरे ही खोल रखे हैं बाकी में तो शादी का साजो सामान रखा है एक में मैं रहता हूं और एक यह खाली है ।


बाहर गेट पर नजर पड़ी देखा रूम नंबर  303 । मन कुछ फिर सशंकित हुआ । मेरी उहापोह देख उसने आगे कहा ,

"या तो आप मेरे कमरे में लेट जायें उनके कमरे में इतना सामान भरा था कि कहीं लेटने की भी जगह नहीं थी ।आखिर मन मार कर सुधीर उसी में रुक गया । उन्होंने खाने को पूछा तो पत्नी ने पहले ही बोल दिया काका हम लेकर चले हैं ।


वे दोनों पति-पत्नी थके होने के कारण रात में जल्दी सो गए । अचानक रात को 12 बजे उनकी पत्नी बाथरूम को उठी तब देखतीं हैं दोनों बच्चे खेल व हंस रहे हैं । उन्हें पहले अजीब लगा फिर उन्होंने सोचा बच्चे हैं गाड़ी में सोते चले आये हैं नींद न आती होगी तो खेल रहे होंगे । 


सुबह मौसम खुल चुका था । सुबह के 8 बज चुके थे । कमरे से बाहर निकलकर देखा दालान में एक टेबल में एक कागज लिखा रखा था ,"बेटा मैं अभी कुछ काम से पास के गांव जा रहा हूं मुझे आने में देर हो जायेगी । गेट का ताला बंदकर चाबी वहीं रख गंतव्य को निकल लेना। दिन में कोई बाधा नहीं ठाकुर मदन सिंह का इलाका है ।


सुधीर व उसकी पत्नी ने देखा हवेली बहुत ही जर्जर थी । दोनों जल्दी ही वहां से निकलना चाहते थे । बच्चों को सोते ही उठाकर लिटा लिया । वह एक धन्यवाद पत्र लिख 500 के 2 नोट लिफाफे में रख निकल लिए। नेटवर्क आ चुका था उसने गूगल मैप लगा देखा अरे जामनगर तो यहां से मात्र 30 मिनट का रास्ता है । कल तूफान के कारण नेटवर्क गड़बड़ था ।


मात्र 5 किमी का रास्ता बचा था तभी उसने देखा उनके मित्र उन्हें खोजते आ रहे थे और बहुत ही चिन्तित थे । उन्हें उनके मित्र ने जो बताया उनके रोंगटे खड़े हो गये ।


उन्होंने बताया आज से 150 साल पहले जमींदार ठाकुर मदन सिंह की ये हवेली थी । दो भाई थे मदन सिंह और सदन सिंह । मदन सिंह के अच्छे स्वभाव के कारण पिता ने उत्तराधिकारी उन्हें बनाया । दोनों भाई जुड़वा 

थे । दोनों की कदकाठी एक जैसी थी केवल आवाज से फर्क समझ पड़ता । आपस में पटती भी न थी ।


कहते हैं उन दोनों के भूत अब भी हवेली में रहते हैं ।सदन सिंह का भूत 15 दिन कृष्ण पक्ष में मदन सिंह का 15 दिन शुक्ल पक्ष में । तुम भाग्यशाली थे तो तो कोठी तक आते-आते शुक्ल पक्ष लग चुका था । मदन सिंह की बारी आ चुकी थी वरना अनर्थ हो जाता हम इसी से परेशान थे । मौसम अच्छा था वह उसकी माया थी । नेटवर्क भी काम नहीं करता । रात में 15 दिन यहां से कोई नहीं गुजरता ।


तभी सुधीर के दोनों बच्चे जग कर कहने लगे "मम्मा वो दादा जी कहां गये जो हमें रात में मजेदार कहानी सुनाकर हंसा रहे थे । जब आप बाथरूम गयीं तो वे पर्दे के पीछे छुप गये" ।

"पर मैंने तो दरवाजा बंद किया था "।

"उनको जादू भी आता था वे दीवाल से भी निकल सकते थे "।


सुधीर के मित्र ने वापस उस जगह आकर दिखाया तो वहां कहीं कुछ नहीं उड़ती रेत और टीले मे उसके द्वारा रखा लिफाफा फड़फड़ा रहा था ।

उसने अपने मित्र से 302 व 303 कमरे का रहस्य पूछा तो बताया सदन सिंह ने अपने को कोठी का रूम नंबर 302 लिया और मदन सिंह को 303 दिया जिससे लोग 303 के भ्रमजाल में फंस 302 नंबर के कमरे में आ उसके शिकार बनें । दोनों पति-पत्नी ने मन ही मन मदन सिंह जी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया ।


सुधीर को वह घटना याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो झुरझुरी हो जाती है । कैसी लगी रूम नंबर 303 की कहानी समीक्षा देकर बतायें ।

            



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