Saroj Verma

Romance

4.5  

Saroj Verma

Romance

रूख़सत...

रूख़सत...

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245


"क्या बुआ जी?अभी तक आप तैयार नहीं हुई,सुजलाम कब से तैयार होकर बैठा है,कह रहा है, बुआ दादी कहां है? और फिर लड़की वालों के घर शहर पहुंचने में ही तीन घंटे लग जाएंगे और फिर शाम तक सगाई करके वापस भी तो लौटना है",सुजलाम की मां सुपर्णा अपनी बुआ सास शैलजा से बोली।।

 "हां.. हां.बस तैयार हो गई,बाबा! तुम लोग भी बस हाय तौबा मचा देते हों", शैलजा बोली।।

शैलजा,पहले इंटरमीडिएट स्कूल में प्रिंसिपल थीं,अब रिटायर हैं, अविवाहित हैं,खुद से वादा किया था,सारी उम्र विवाह ना करने का।।

सब घर से निकल पड़े,दो तीन कारें थी,सारे लोग आराम से आ गए लेकिन शैलजा बहुत बेचैन सी थी, कुछ उदास भी थीं,उसे उस शहर में दोबारा जाने का मन नहीं था, जहां पर उसने अपना सबकुछ खोया था,सुपर्णा ने एक दो बार पूछा भी कि बुआ जी क्या बात है? तबियत ठीक नहीं है क्या? लेकिन शैलजा ने मुस्करा कर टाल दिया।।

सारे लोग लड़की वालों के घर के घर पहुंचे,अच्छे से सबका स्वागत सत्कार हुआ, फिर सब खाना खाने बैठे।सब खाना खा ही रहे थे कि एकाएक शैलजा की प्लेट में किसी ने आकर दुबारा रसगुल्ला रख दिया,पहले से ही प्लेट में रसगुल्ला रखा हुआ हैं,शैलजा ने ये कहते हुए उसकी तरफ देखा तो उसके हाथों से निवाला छूटकर प्लेट में गिर पड़ा।उस सख्स ने कहा कि आपको तो रसगुल्ले बहुत पसंद हैं और इतना कहकर वो सख्स चला गया।।शैलजा ने अपने आप को सम्भाला और फिर से खाने में ध्यान देने लगी।।

शैलजा, खाना खाकर बाहर छत पर खुली हवा में अकेले ही आ गई,वो थोड़ी देर अकेले रहना चाहती थी लेकिन वो सख्स छत पर शैलजा के पास आ पहुंचा। शैलजा बोली, तुम!!

"हां!!मैं मयंक !!इतने सालों बाद तुम्हें देख रहा हूं, तुम तो बिल्कुल भी नहीं बदलीं,बस थोड़े बाल बस सफेद हो गए हैं, मुझे पता नहीं था कि इतने सालों बाद तुम मुझे ऐसे अचानक मिलोगी।"

"तुम्हें याद है कि मैं अक्सर तुम्हारे लिए छन्नू हलवाई के रसगुल्ले लाया करता था ,जो तुम्हें बहुत पसंद थे",मयंक बोला।।

"लेकिन अब उन बातों को तो अरसा बीत गया है, तुम्हारी पत्नी और बच्चे कैसे है?" शैलजा ने मयंक से पूछा।।

"सब ठीक है,दो बेटे हैं, दो पोती और दो पोते हैं सब ठीक-ठाक है",बस इतनी ही बातें हुई मयंक और शैलजा के बीच फिर शैलजा के जाने का समय हो गया।।

शैलजा कार में आते समय अपने अतीत में खो गई,वो और मयंक हाईस्कूल से कालेज तक साथ में पढ़ें थे,कच्ची उम्र का प्यार था, उम्र बढ़ते बढ़ते और पक्का हो गया, दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी एक-दूसरे से अलग होंगे,प्यार और एहसासों से भरी यूं ही चल रही थी जिंदगी,बस दोनों को नौकरी लगने का इंतज़ार था, नौकरी लगते ही दोनों ने शादी करने का सोचा था।।

लेकिन किस्मत को और ही कुछ मंजूर था,मयंक के पापा को भी मयंक और शैलजा के बारे में सब पता हो चुका था और वो शैलजा को पसंद भी करते थे, उन्होंने कई बार मयंक से कहा भी कि ना शादी ना सही तुम लोग सगाई ही कर लो, लेकिन मयंक ने कहा,अब सीधा सब फुल एण्ड फाइनल ही होगा ।।

मयंक को कभी ऐसा लगा ही नहीं कि कोई भी शैलजा से उसे अलग कर सकता हैं लेकिन कभी कभी कुछ हालात ऐसे बन जाते हैं कि ना चाहते हुए भी हमें बदली हुई परिस्थितियों को सहज स्वीकार करना पड़ता है, ऐसा ही तूफान एक दिन मयंक और शैलजा की जिंदगी में आया,जिसकी आशा किसी को भी नहीं थी।

 मयंक के पिता अपने किसी बीमार दोस्त को देखने गए थे,उनकी पत्नी भी पहले ही किसी लम्बी बिमारी से गुजर चुकी थी उनकी इकलौती बेटी संजना बस थी, संजना के पिता शायद उस समय अपने जीवन की अंतिम सांसें ले रहे थे जब मयंक के पिता उन्हें देखने गए थे,तब संजना के पिता ने मयंक के पिता से संजना को देखते हुए कहा कि ये आज से तुम्हारी अमानत है इसका ब्याह मयंक से करवाकर इसे अपने घर में जगह दे देना, ऐसा वचन दो तभी मैं सुकून से मर सकूंगा,मयंक के पिता उस समय अपने दोस्त के सामने विवश थे, उन्हें अपने मरते हुए दोस्त को ऐसा वचन देना पड़ा।

इतना सब होने के बाद मयंक ने खुद आकर शैलजा से रो रोकर माफी मांगी थी और अपने पिता से बहुत अपशब्द कहे थे लेकिन मयंक के पिता बोले मैं वचन दे चुका हूं और वो तोड़ नहीं सकता।‌

इस तरह मयंक और संजना की शादी हो गई तब शैलजा ने आजीवन अविवाहित रहने का फैसला किया।।

 तभी सुपर्णा ने पूछा,क्या हुआ बुआ जी क्या सोच रहीं हैं तभी शैलजा अपने यादों के साए से बाहर निकल आई।।



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