रोटी का जुगाड़
रोटी का जुगाड़
इतनी मूसलाधार बारिश मानो बादल ही फट पड़ा हो जैसे। अभी सुबह के 9 बजे बहुत अंधेरा था और बारिश के कारण सामने की इमारत भी नज़र नहीं आ रही थी। फ़ुर्सत थी तो गिरती बूंदों का आनंद लेने के लिए चाय का कप थामे बालकनी में आ गई। तन -मन फुहारों से शीतल हो चला था। गर्मी के बाद की वर्षा ईश्वरीय अस्तित्व का आभास दे रही थी जैसे।
तभी सामने बायीं ओर से एक आकृति तेज़ी से आकर सामने एक घर की छत के मुहाने पर रुक गई। दिल तेज़ी से धड़क उठा, पर कुछ स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा था।
कुछ बारिश कम हुई तो देखा, एक 17-18 साल का लड़का अपने चेहरे और आँखों पर से बार -बार पानी झटक रहा है। वह कांप भी रहा था, भीगने के कारण। पर बारिश से बचने के लिए सिर पर अंगोछा लपेटे हुए था वह, जो कि पूरी तरह भीग कर उसके सर से चिपका हुआ था। वह एक हाथ से पानी झटके जा रहा था और उसका दूसरा हाथ सीने से लगा हुआ था। तभी दूसरा हाथ उसने नीचे किया तो देखा उसके हाथ में फावड़ा था। देख कर मन द्रवित हो उठा।
तभी वाचमैन वहाँ आया तो मैंने उससे कहा कि ,"उस लड़के को इधर छाया में बुला लो, बारिश थम जाए तो चला जाएगा।" वाचमैन ने कहा ,"मैडम शर्मा सर के घर कल्पना बाई है न उसी का लड़का है। इसके पिता की छह महीने पहले मौत हो गई , माँ भी बीमार चल रही है तो ये दिहाड़ी पर मज़दूरी का काम करता है। पढ़ा- लिखा नहीं है ज़्यादा तो और क्या काम करेगा मैडम!"
वाचमैन ने आगे कहा, "अपने बाज़ार में पड़ाव पर रोज़ कुछ ठेकेदार लोग आते हैं और मन मुताबिक मज़दूरों को काम के लिए ले जाते हैं और शाम तक पैसा भी दे देते हैं, ये भी वहीं जा रहा है। तकदीर जबरदस्त हुई तो काम मिल जायगा या फिर घर वापस। इस तरह यह माँ की सहायता करने की कोशिश कर रहा है।"
तभी अचानक एक गिट्टी से भरी ट्रक रुकी और वह लड़का लगभग उछल कर पीछे बैठ गया। वाचमैन को उसने हल्की मुस्कान के साथ हाथ हिला कर 'बाय' किया। दूर जाती ट्रक में मैंने साफ़ देखा उसने अंगोछा बदन से उतार कर गिट्टी पर ही निचोड़ा और अपने भीगे सिर और मुँह को पोंछा। दोबारा उसने वही अंगोछा अच्छे से निचोड़ कर बदन पर लपेट लिया और एक कोने में इत्मिनान से बैठ गया ।
चेहरे पर हल्की मुस्कान अब भी बनी हुई थी, शायद इसलिए कि उसकी माँ की दवाई और आज की रोटी का जुगाड़ हो चुका था।