रोटी दो वक्त की-एक कहानी
रोटी दो वक्त की-एक कहानी
दोपहर हो रही थी, कमरी बुखार में कई दिन पड़ी हुई। उसके पति को मरे कुछ ही महीने हुए थे। जेठ की भरी दुपहरी में उसका पति गजरू मजदूरी करने गया था।
वह ठेकेदार के यहां खाना बनाती थी। गजरू बेचारा भूखा प्यासा लगा रहा। पंचायत की छत की की ढलाई चल रही थी, ठेकेदार भी सरपंच का साला था। मजाल था कोई यहां से वहां जा पाये।
उस दिन कमरी को मुर्गा पकाने का काम दिया गया, उसने एक टंगड़ी छुपाकर रख दी थी, बड़े लोग कहां एक एक टांग का हिसाब रखते हैं लेकिन यह हमारे लिये तो जन्नत है। बेचारा गजरू कई दिनों से ढंग से खा भी नहीं पाया था, आज शाम को घर में वह यह चोरी की टंगड़ी पका कर खिलायेगी और उसकी मुनिया जो सात साल की हो गयी थी, बरसों बाद शुरूआ पी लेगी।
सामने तिरपाल की बनी झोपड़ी में ठेकेदार लल्लन सिंह और सब इंजीनियर साहब के साथ मुर्गा की तगड़ी और सोमरस के जाम चल रहे थे, आखिर ठेकेदार लल्लन सिंह को अपने बिल पास करवाने थे।
भोजन और सोमरस के समय सब इंजीनियर की नजरें बार बार खाना परोसती कमरी के शरीर को माप रहे थी, शायद उसकी टंगड़ी कबाब बनाना चाहते थे। कमरी इतनी बेवकूफ़ नहीं थी, उसने अपने ब्लाउज को पेट को ढकने के लिए खींचा तो चर्र की आवाज के साथ बांहों के पास से फटने की आवाज़ आई, उसने हड़बड़ा कर साड़ी के पल्लू से ढक लिया लेकिन सोमरस में डूबी आंखें फिर भी कपड़ों को चीर कर अंदर चुभ रहीं थीं। वह मजबूर थी।
रात हो रही थी, काम अब चल रहा था। तभी जोर से आवाज आई और अफरातफरी मच गयी। पंचायत की छत अचानक गिर गयी और तीन मजदूर दब कर मर गये। आनन फानन में काम रोक कर सब को भगा दिया गया। उस घटना में मरने वालों में कमरी का पति गजरू भी था। तुरंत लीपापोती शुरू हो गयी, दो मजदूर तो बाहर प्रदेश से आये थे लेकिन कमरू तो वहीं का था। तीनों का दाह संस्कार तुरंत कर दिया गया । कमरी को जबरदस्ती दस हजार पकड़ाये गये और कागजों पर हस्ताक्षर करा लिए, वह तो बाद में पता चला कि बीमारी के कारण उसकी मौत दिखाई गयी थी।
दस हजार कितने दिनों चलते। सारा गौरखधंधा रफा-दफा हो गया था।
वह फिर मजदूरी करने लगी, मुनिया भी साथ में जाती और वहीं खेलती रहती। अब कुछ दिनों से कमरी बीमार हो गयी थी, दोनों खाने के लिए मोहताज़ थी। जैसे तैसे अड़ोसी-पड़ोसी कुछ खाने को दे देते लेकिन कब तक---भगवान जाने अब कल से क्या होगा। वह मुनिया का कुम्हलाया चेहरा देख कर चिंतित थी।
तभी मुनिया दौड़ती आई और बोली--
--चलो अम्मा, सरंपच की बऊ(बूढ़ी मां) मर गयी थी, आज सब गांव वालों को खाना मिल रहा है।
कमरी की आंखों में चमक आ गयी और उठने की कोशिश की थोड़ा सा चक्कर आया लेकिन जैसे तैसे उठ कर मुनिया का हाथ पकड़ कर तेजी से चल दी। अभी अभी पत्तल लग ही रहे थे। गरीबों को अलग से लगे लगाये पत्तल पकड़ाये जा रहे थे। उन दोनों ने हाथ बढ़ा कर दो पत्तल ले लिये। मुनिया की आंखें खाना देखती ही फैल गयीं और वह पेड़ के नीचे खाने के लिये बैठने लगी लेकिन कमरी उसका पत्तल और हाथ पकड़ कर घर की ओर भाग रही थी। मुनिया की समझ में कुछ नहीं आया, बस घसीटते हुए जा रही थी।
घर जाकर उसने अपने और मुनिया के कपड़े बदले और फिर पंगत की ओर भागी और लाइन में लग कर फिर दो पत्तल लेकर घर की ओर भागी। अब तक वह हाँफने लगी थी, सारा शरीर पसीने से तरबतर था। उसने मुनिया को घर में छोड़ा और फिर पंगत की ओर भागी, रास्ते में गिरती पड़ती वहां पहुंची और घूंघट निकाल कर लाइन में खड़ी हो गयी, अब पैरों ने जवाब दे दिया था लेकिन वह मुनिया के लिए पांच छै दिनों का इंतजाम कर लेना चाहती थी इसलिए पसीना पोंछ कर घूंघट में मुंह छिपाये पत्तल ले लिया। अब पैर लड़खड़ा रहे थे, मुंह सूख रहा था। घर पहुंचते पहुँचते वह घर के चबूतरे पर गिर गयी।
उस दिन मुनिया ने खूब भर पेट खाना खाया लेकिन कमरी के हलक से दो कौर मुश्किल से गये, वह एकटक मुनिया को खाते देख रही थी।
सुबह मुनिया उठ कर पत्तल में रखे खाने में पुनः जुट गयी, अम्मा चुपचाप लेटी थी। खाने के बाद उसने अम्मा को हिलाया तो अम्मा न उठी, उसने पड़ोस में काकी को बुलाया तब पता चला कि कमरी नहीं रही। कमरी का कोई नहीं था सिवा मुनिया के लेकिन मुनिया दुनियादारी से मुक्त पत्तल की सफाई में लगी थी।
सरपंच को खबर की गयी। वह आये। पंचायत से क्रिया कर्म करना निश्चित हुआ। सभी इस चिंता में थे कि मुनिया का क्या होगा - - अचानक मुनिया बाहर अपने हाथ अपनी फ्राक से पोंछते हुए बाहर आई और संरपच को एकटक देखने लगी। संरपच ने धीरे से उसके सर पर हाथ फेरा तो वह अपनी छोटी छोटी आंखें मटकाती हुई बोली--
--काये दद्दू तुम कबे मरोगे
सब मुनिया को देख रहे थे, कुछ समझे नहीं कि यह क्या कह रही है लेकिन नादान मुनिया तो एक बात समझ रही थी कि अभी सरपंच की बऊ मरी तो अच्छा खाने को मिला--अब सरपंच मरेंगे तो और अच्छा दो वक्त का खाना मिलेगा।
