Sajida Akram

Inspirational

3.3  

Sajida Akram

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रोशनी की ओर

रोशनी की ओर

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देवकी को अपने ही घर से निकल जाने का कहने वाले उसके सुसराल वालों को, लगा की इसका पति तो मर चुका है, इसके पांच बच्चों का गुज़ारा अब हम पर ही बोझ पड़ने वाला है।

देवकी के बूढ़े सास, ससुर अपने बेटों से ये भी नहीं कह पाए की ये जवान है पांच बच्चों को लेकर कहा जाएगी। मगर उनका गुज़ारा दीनानाथ, और जग्गु की कमाई से होता था वो जो मजदूरी करके लाते थे । 

उसी से गुज़ारा चलता था, दीनानाथ की पत्नी बड़े कटु स्वभाव की थी। उसने देवकी को निकाल बाहर किया 

 अपने बच्चों को लेकर इधरउधर भटकती रही एक ऐसे गिरोह के हाथ लग गई उन लोगों ने उसको पैसों का लालच देकर एक किडनी बिकवा दी बेचारी डुबते को तिनके का सहारा मुंबई में कुछ दिन रही,उसने अपनी बहन को सारा किस्सा बताया, और पूछा कि क्या मैं तेरे पास आ जाऊं लखनऊ, मैंने किडनी बेच कर थोड़े दिन तो बच्चों का उसका गुज़ारा किया मगर वो पैसे भी ख़त्म हो रहें हैं, तु मुझेअपने वहाँ काम दिला देना, 

बहन थी आखिर। बहन ने मुसीबत में मना नहीं किया बुला लिया, उसको लेकर जहाँ वो काम करती थी बंगले पर लेकर गई मिसेज रहमान से मिलवाया उन्होंने कहा ठीक है तू इसको बाहर बिठा, फिर आकर बात कर देखतें है क्या होता है। 

दूसरे दिन पुनिया गई तो मिसेज रहमान ने कहा क्यों मै कैसे रख लूं उस औरत को क्या नाम बताया था देवकी, मालूम नहीं कोई गिरोह की सदस्य हो चोरी चकारी करके भाग जाए। 

पुनिया बोली अरे नहीं मेडम वो मेरी छोटी बहन है, उसकी सारी आपबीती बताई और कहा हम तो जरा सी खोली में रहते हैं अभी इसका रहने का इंतजाम पाइप में कर दिया है, पांच बच्चे हैं कुछ खाने-पीने का इंतजाम मै कर देती हूँ। 

मिसेज रहमान रहम दिल है कहती हैं ठीक है ऐसा करते हैं *डस्टिगं* का काम दे देती हूँ झाड़ू, पोंछा और बर्तन तो तुम करती हो पुनिया, पुनिया झट से अपनी बहन के लिए कहती है मेडम मेरा झाड़ू, पोंछा भी उसको दे दीजिए मैं बर्तन कर लिया करूंगी। 

देवकी को बहन से सहारा मिल गया और भी जगह काम दिलवा दिया पुनिया ने, देवकी अपनी बहन को और मिसेज रहमान को बहुत सी दुआएँ दे रहती। धीरे-धीरे उसका बड़ा बेटा भी किसी दुकान पर छोटा -मोटा काम करने लगा उसको अपनी माँ की और छोटे बहन -भाईयों की फिक्र थी। हालात आठ-नौ साल के बच्चे को भी बड़ा बना देतें हैं। 

वो हफ्ते की मज़दूरी ले आता। देवकी का बेटा किशन पढ़ने की बड़ी इच्छा थी कभी उसकी दुकान जहाँ वो काम करता था कुछ दूरी पर स्कूल था बच्चों को जाता देखता तो मन ही मन सोचता काश मैं भी स्कूल जाता। 

 कभी स्कूल के बाहर से झांकता बच्चों को टीचर के पढ़ाते हैं, वहाँ से सुनकर आ जाता तो खुब दोहराने की कोशिश करता मन ही मन में या पत्थर से ज़मीन पर आढ़ी तेढ़ी रेखा खिंचता। एक दिन जिस चाय की दुकान पर काम करता था वहाँ मास्टर जी आएं, उन्होंने किशन को स्कूल में झांकते देखा था। किशन से पूछा तू पढ़ना चाहता है, उसने गर्दन हिला कर सहमति दी मास्टर जी ने कहा यहाँ से कब छुट्टी होती है, किशन ने कहा शाम को मास्टर जी ने कहा कल से मेरे घर पर शाम को मैं पढ़ा दिया करुंगा। किशन ने भोले पन से कहा मेरे पास पैसे नहीं है मेरी माँ घरों में झाड़ू खटका करती है। मास्टर जी ने मुस्कुरा कर किशन को थपथपाया कहा पैसे की चिंता मत कर। 

किशन शाम को घर गया तो बड़ा ख़ुश था,माँ को बताया कि स्कूल के मास्टर जी मुझे पढ़ाने का कह रहे हैं, माँ को भी बच्चों की स्कूल भेजने की चिंता थी, देवकी को पैसे की चिंता हुई किशन ने कहा मास्टर जी कह रहे थे पैसे की चिंता मत कर, माँ खुश हो गई और किशन से कहने लगी भागवान इस दुनिया में आज भी अच्छे इंसान बनाता है। माँ ने कहा कब से जाना है मास्टर जी के पास पढ़ने माँ कल बुलाया है उन्होंने, 

देवकी जानती थी ईश्वर एक रास्ता बंद करता है तै दूसरा खोल देता है, उसने मुश्किलों में थक कर हारना नहीं सीखा था, जब पति के मरने के बाद सुसराल वालों ने धक्के देकर निकाला, उसने पति के बड़े भाईयों के पैर पकड़ कर कहा मुझे बस सिर छुपाने की जगह दे दो मैं अपने बच्चों को खुद मेहनत-मजदूरी करके पाल लूंगी। 

वो उन कड़वी यादों को लाख भूलाने की कोशिश कर लें, उसकी आँखों के कोर गीले हो गए, उसने सोचा बच्चे न देख लें। किशन बहुत ख़्याल रखता था।

किशन दूसरे दिन का इंतज़ार करने लगा कब शाम हो काम ख़त्म कर जल्दी-जल्दी घर आया और माँ को बता कर मास्टर जी के यहाँ पढ़ने चला🚶👣👣 वो बहुत ही खुश था आज उसको एक नई रोशनी दिखाई दे रही थी, उसे भविष्य में उजाला होने की उम्मीद जागी थी। 

 किशन मास्टर जी के यहाँ पहुँच कर क्या देखता है वहाँ उस जैसे और भी बच्चे पढ़ने आए हुए हैं उसे लगा मास्टर जी और भी बच्चों को पढ़ाते हैं। मास्टर जी दिल से मेहनत करने लगे, बच्चे भी दिल से मेहनत करने लगे, मास्टर जी ने बच्चों को सरकारी स्कूल में एडमिशन करा दिया और अलग से भी किशन और दूसरे बच्चों के साथ मेहनत करने लगे, पहले एग्जाम में किशन अच्छे नम्बर से पास हो गया, माँ और मास्टर जी और दुगने उत्साह से किशन का उत्साह बढ़ाने लगे।

किशन का दुकान का काम चलता रहता,जब भी दुकान पर थोड़ी फुर्सत मिलती पढ़ने की कोशिश करता। घर पर भी कभी चिमनी की रोशनी में तो कभी स्ट्रीट लाइट की रोशनी में देर रात तक पढ़ता। 

 अब माँ ने और भी काम ले लिए और किशन से कहने लगी बेटा तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दें पर किशन का मानना था कि मेरी थोड़ी सी मदद से मेरे छोटे भाई-बहन भी स्कूल जाने लगे हैं तो माँ हम पांच बच्चों का बोझ नहीं उठा पाएगी।

मास्टर जी की मेहनत रंग लाई वो 10वीं क्लास में आ गया, कुछ ही सालों की मेहनत से किशन को कामयाब व्यक्ति बना दिया। 

किशन ने अच्छे नम्बर से ग्रेजुएशन किया, मास्टर जी के बताये अनुसार उसने कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट पर कालेज में पढ़ाने लगा। 

खुशी-खुशी मास्टर जी के पास माँ के साथ गया और मास्टर जी के पैरों में दंडात्मक प्रणाम किया और आशीर्वाद लिया। मास्टर जी ने ख़ुश हो कर बस ये कहा, मेरे ऊपर कर्जा था हेडमास्टर साहब का, उन्होंने कहा था, आगे तुम भी गरीब बच्चों को पढ़ाते जाना, और उनको कहना वो भी गरीब बच्चों की मदद करें। 

उस दिन मास्टर जी ने अपनी कहानी सुनाई किशन को.... 

किशन को मास्टर जी के बारे में पता चलता है कि अपनी ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने में लगा दिया। 

 वो एक अनाथालय में बड़े हुए हैं,वो भी ऐसे ही छुप-छुप कर स्कूल में झांका करते थे वहाँ के हेडमास्टर जी ने एक दिन उन्हें झांकते हुए पकड़ लिया और पूछा पढ़ना चाहता है क्या कल से स्कूल आ जाना, बस उन्होंने ने मेरे पढ़ने की पूरी ज़िम्मेदारी ली और मुझे जब यहाँ स्कूल में पढ़ाने की नौकरी मिली तो उन्होंने बस यही कहा अब तुम अपना कर्जा चुकाना आगे ग़रीब और ज़रुरत मंद बच्चों को पढ़ाने में मदद करना, बस जब से ही मैनें अपना लक्ष्य बना लिया है। 

अपनी सैलरी का थोड़ा सा हिस्सा घर ख़र्चे को रखता हूँ और ज़रुरत मंद बच्चों की पढ़ाई पर ख़र्च करता हूँ। 

किशन तुम्हारी माँ ने भी बहुत दुख झेले हैं, तुम अपने भाई और बहन को भी पढ़ाना और गरीब बच्चों के लिए कुछ कर पाओ तो ये कर्जा उतारने की कोशिश करना।

वो दिन देवकी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था उसके पैर ज़मीं पर नहीं टिक रहे थे, वो अपनी बहन पुनिया और मिसेज रहमान की भी शुक्रिया अदा करने गई तो मिसेज रहमान ने कहा देवकी तेरी मेहनत है और ईश्वर का इनाम है तेरे सब्र का बस अब तू आराम कर ईश्वर ने तेरे बच्चे को कामयाब कर दिया और उन नालायक लोगों को जिसने तुझे बेसहारा छोड़ दिया था, जिनका कोई नहीं होता उनका ईश्वर होता है।

किशन ने अपनी माँ को अच्छे घर में किराये से घर लेकर रहने लगा किशन अपनी उस दुकान के मालिक के पास भी धन्यवाद देने गया के अपने मुझे आपने मुझे जब परेशान था उस वक़्त मदद की और मुझे काम दिया आज आप सबके आशीर्वाद से मैं कामयाब हो गया हूँ मैं आपसे हमेशा जुड़ा रहूंगा, और जब भी आप मुझे याद करें मै आपका बेटा हूँ हर वक़्त मै हाज़िर रहूंगा। उन दुकान वाले हरिकृष्ण ने पास आकर आंखों में आंसू भर कर किशन को गले लगा लिया कहा पगले रुलाएगा क्या......!

किशन ने अपने भाई और बहन को भी पढ़ने की ललक लगा दी, किशन ने अपनी माँ से कहा अब काम छोड़ दो माँ, पर माँ ने कहा मैं एक घर तो नहीं छोड़ सकती हूँ मिसेज रहमान के घर तो काम करने जाऊंगी।

माँ का ये कहना किशन को लाजवाब कर गया।


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