रोज रोज का....
रोज रोज का....
रोज रोज का आपका ये कहते हुए रागिनी रसोई में चली गई , टिफिन लाने के लिये परन्तु रमेश गुस्से में होने के कारण बिना टिफिन लिये ही बड़बड़ाता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया , गुस्सा होने के कारण उसका चेहरा टमाटर की तरह लाल हो रखा था ! काम वाली जगह पहुंच गया और काम करने लग गया ! उसका बदला बदला तेवर देखकर उसके साथी समझ गये थे कि आज महोदय घर पर झगड़ा करके आये हैं मुनीश जो रमेश का काम वाली जगह पर सबसे अच्छा दोस्त था पूछा क्या हुआ भाई? कुछ नहीं बस घर पर तुम्हारी भाभी से !! रमेश ने कहा ! कोई बात नहीं कभी कभी हो जाती हैं ज्यादा चिंता मत करो सब अच्छा हो जायेगा , प्यार में थोड़ा बहुत झगड़ा चलता हैं और मुनीश कह ही रहा था कि रमेश ने उसकी बात काटते हुए बोला हम्म जानता हूँ यार ! सब ठीक हो जायेगा ! कह कर वापस अपने काम में लग गया ! दोपहर तक काम करने के बाद ज़ब आराम का टाइम हुआ तो उसे महसूस हुआ कि आज उसने गलती कर दी श्रीमती जी पर गुस्सा करके आज वो खाना भी नहीं खायेगी
पर अब हो भी क्या सकता हैं सोच कर बैठा ही था कि मुनीश उसके पास आकर बैठ गया और अपना टिफिन खोल कर बोल चल भाई आज तू टिफिन नहीं लाया ना तेरी भाभी के हाथ कि बनी काली काली रोटीया खा ले और हंसने लगा
रमेश ने दो-तीन बार माना किया पर मुनीश नहीं माना और उसे खाना खाने के लिये मना ही लिया भूख भी लगी थी तो दोनों ने साथ में खाना खाया और बातें करने लगे ! रमेश क्या बात हो गई थी जो सुबह सुबह भाभी से लड़ाई करनी पड़ी ! अरे ! कुछ नहीं थोड़ा आराम कर के वापस काम पर लगा गये
दोपहर बाद काम पर लगने के बाद रमेश का मन काम में नहीं लग रहा था सिर्फ रागिनी के बारे में ही सोच रहा था कि वो कितना प्यार करती हैं उससे और एक वो हैं कि कितना झगड़ता हैं रोज थोड़ा भी लेट हो जाता हैं तो चिंता हो जाती हैं उसे जाते ही कितने सवाल करती हैं कि क्या हुए आज आप लेट क्योंकि हो गये मेरे मन में कैसे कैसे ख्याल आने लगे थे??? और मैं हंस के टाल देता पर जब भी घर जाता हूँ तो वो इंतजार करती रहती हैं प्यार से मेरे लिये खाना बनाती हैं साथ ही खाती हैं ! जिस दिन मैं खाना नहीं खाता तो वो भी बिना खाये ही सो जाती हैं ! मेरे लिये तो व्रत भी करती हैं पुरे पुरे दिन बिना खाये रहती हैं !
ऐसे बहुत सारे ख्याल उसके मन में आ रहे हैं और शाम हो गई
रमेश आज उसकी पसंद की कोई चीज उसके लिये लेकर घर जाये पर क्या लेकर जाये समझ नहीं पा रहातो
गुलाब के फूलो का गजरा गुलाब का फूल मिठाई लेकर घर घर की तरफ जाने वाली गाड़ी के बैठ जाता हैं घर पहुँचता हैं और देखता हैं कि आज भी वो उसका इंतजार कर रही हैं पर थोड़ी थोड़ी नाराज भी लग रही हैं ! उसके लिये पानी लाती हैं ! रमेश मन ही मन मुस्करा रहा था अब उसके मन में कोई गुस्सा नहीं था सुबह कि सब बातें भुल चूका था वो ! रागिनी उससे कम ही बात कर रही थी पानी का गिलास देकर रसोई में चली गई ! रमेश भी उसके पीछे पीछे रसोई में चला गया रसोई के काम में बिजी रागिनी को पता नहीं चला कि कब वो आ गया ! रमेश ने उसको पीछे से पकड़ लिया तो अचानक से वो छींक पड़ी पर रमेश ही था तो उसने छुड़वाने का प्रयास भी नहीं किया सॉरी यार सुबह रमेश बोला और उसके होठ पर प्यारा सा चुंबन कर लिया वो भी रागिनी की सारी नाराजगी भी छू मन्तर हो गई रमेश ने कहा आज मैं भी तुम्हारी खाना बनाने में हेल्प करूंगा रागिनी जोर जोर से हंसने लगी और कहा आज से पहले कभी रसोई में आये भी हो क्या जो आज हम्म पता हैं मुझे सब बनाना भी आता हैं तुम कुछ मत करो मैं अकेला भी बना सकता हूँ रमेश ने कहा ! और प्यारी से इस्माइल दी रागिनी :- ठीक हैं फिर ऐसा करो मुझे बताते रहो जैसा जैसा तुम बताओगे वैसा वैसा ही मैं करती जाऊंगी ! रसोई दोनों की हंसी से गूंज उठी फिर दोनों ने साथ साथ खाना बनाया , रमेश ने अपने बेग से गजरा , फूल और मिठाई बाहर निकाल कर रागिनी को दिया ! दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया
और फिर दोनों रात के आग़ोश में खो गये।