रंग बिंरगी होली
रंग बिंरगी होली
आज कुछ हंसने हसाने की बात कर ली जाए ,एक हैं रायचंद वह पुरूष नहीं महिलाहैं । हाँ महिला ही हैं ,जब भी पूछूँ तो आप कैसी हैं ,तो तपाक से जबाब देते हैं कि "अरे ठीक ही होगें, समय नहीं है ठीक रहने के , चलूँ जरा बगल के घर में हो आऊँ। का हो रहा है ,मतलब पूरा दिन दूसरे घर में घुस कर हाल चाल लेना फिर पूरा दिन खाना पीना, फिर पूरे दिन उनके घर रहना ,फिर उनके घर से निकल कर नजरें तलाशती कि अब कल कहाँ जाना,है फिर दूसरे के घर जाकर रस ले ले कर बुराई करना, यह कौन सी बात है पर इसमें उनको आंनद आ जाता है फिर लोगों के बीच लड़ाई लगाना तो बुरी बात होती है पर वह ऐसा करती हैं । अजब गजब लोग हैं , वाह रे विधाता ऐसे लेगो को देख कर दुख भी होता है और हंसी भी आती कि और कोई काम नहीं है उनके पास पर आज भारत की हालत है। ऐसे ही लोग हैं, हाँ ऐसे ही लोग हैं, पर हमारी इस कहानी से आप लोग हंसे तो होंगे ही हैं ,जी बस हमारा काम हो गया होली की ढेरों शुभकामनायें आप सब की नंदिता एकांकी।