रँग भरे खत...
रँग भरे खत...
कई बार सोचा, अब खत्म कर दूँ सारा रिश्ता, नहीं सही जाती उसकी बेरुखी पर एक उम्मीद की लौ है जो बुझती ही नहीं.लगता है, कभी वो दिन आएगा ज़रूर जब उसे मेरे सच्चे प्यार का एहसास होगा. अगर पहले से रिश्ता खत्म कर दिया तो उसके वापस आने के सारे रास्ते बंद हो जायेंगे. कई बार सोचती हूँ, क्या लिखूँगी उस आखिरी खत में कि, अब आगे से हम ना बात करेंगे ना मिलेंगे. पर जुबां क्या दिल का साथ देगी. चलो, बोल भी दिया हिम्मत करके.
तो क्या... मैं दिल से निकाल पाऊँगी. फिर क्या लिखूँ उस आखिरी खत में...?
सिर्फ कागज़ पर लिख भर देने से कहाँ टूटते हैँ रिश्ते?और क्या सात भाँवरे जोड़ पातीं हैँ मन को मन से.इसलिए नहीं लिखा आज तक वो आखिरी खत उसे जिसके लिए प्यार मेरा कभी कम हुआ ही नहीं, झगड़े में, दूरियों में भी. उसके पास उसका ईगो रह गया, मेरे पास मेरा स्वाभिमान और उसके लिए अनहद प्रेम.इसलिए नहीं लिख पाई आजतक वो आखिरी खत!अबके होली में वो निश्चय करके उठी, लिखेगी एक रँग भरा ख़त, उसे मना लेगी अपने प्यार को.मुस्कुराकर उठी अपने प्रिय को रँग भरे खत लिखने.

