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GOPAL RAM DANSENA

Tragedy

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GOPAL RAM DANSENA

Tragedy

रजनी

रजनी

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रजनी अपने खाट में पड़े पड़े रो रही थी। उसके आखों से अश्रु की धारा निकल कर सिसकने के कारण मुहँ में समा रहे थे I वो सोच रहीं थी की आज जमाना 21वीं सदी में पहुंच गई है पर आदमी आज से 21 दशक पीछे की ओर जा रहा है I

एक नारी को सारे अलंकरण से सुशोभित किया जा रहा है जिससे उनके गुनाह छुप सके I आज भी पुरुष नारी पर हाथ उठाने से नहीं चूकता पर यदि नारी हाथ उठाए तो पूरा घर, जाति समाज, गांव की इज्जत दांव पर लग जाती है I नारी चुप हो सहे तो एक अलंकरण उसके नाम सुशील है नहीं तो सास चारो पहर हजारों शब्द जोड़कर महिला मंडलियों में प्रवचन सुनाते फिरती है I घर को अपने जमा पूंजी से चलाये तो ठीक नहीं तो कुलक्षणी ।

रजनी के आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा कि क्या करें मैके जाए तो माँ बाप के आँखों में आसुओं को देखना पड़ेगा, समझायेंगे की पति का घर ही पत्नी के लिए स्वर्ग है I शादी के बाद पति के घर से पत्नी का सिर्फ अर्थी ही निकलती है I तुम्हारी ही गलती होगी,मुँह चलाएगी तो सजा भी तो मिलेगा I लड़की हो लड़की की तरह रहो I

रजनी फफक पड़ी वह सोचती रही,आखिर भगवान ने लड़की क्यों बनाया जहाँ खुद के जीवन साथी को भी चुनने का अधिकार लड़कियों को नहीं, बाँध दिया जाता है किसी के साथ जीवन को दर्द के रूप मे जीने के लिए I मर्द किसी पर अपना बल बता पाए या ना बता पाए अपने साथ पत्नी धर्म के खूँटे पर बंधे एक नारी को बल तो जरूर बता सकता है और इस बल बताने में प्रतिकार भी कुछ मिलने की उम्मीद नहीं,ज्यादा से ज्यादा और मारो और मारो की चीख I सात फेरे याने सात जन्म तक जुल्म करने की परमिट I

क्या य़ह जुल्म नहीं रुक सकता क्या लड़की बाहर कभी आजादी से जी नहीं सकती I क्या ये चूडिय़ां युगों युगों तक इन हाथों को कोमल बनाती रहेंगी I पर मैं और अब नहीं सह सकती मुझे अपने हक के लिए खुद लड़ना होगा I

रजनी अचानक अपने आखों को साड़ी के पल्लू से पोंछकर घर से बाहर निकल पड़ी ।आंख घण्टों रोने के कारण लाल पर अब उनमे अपने भाग्य बँधन का पानी न था , बल्की एक नयी सुबह की सूरज की लालिमा थी जो उसके जीवन को प्रकाशित कर पूरे समाज को राह दिखाने हिम्मत रखता है I 


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