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Neerja Sharma

Classics Fantasy Thriller

4  

Neerja Sharma

Classics Fantasy Thriller

रिश्तों की स्याही

रिश्तों की स्याही

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तीसरी बिटिया का जन्म क्या हुआ, लीना की जिंदगी से रिश्तों की स्याही ही मिट गई। जीवन का हर रंग अब केवल काली स्याही सा हो गया था।रमेश अपने घर के इकलौते बेटे थे। सो परिवार को सारी आशाएँ कि पोता होगा। लेकिन एक के बाद एक तीन बेटियाँ होने से जीवन मानो स्याह हो गया। पहले बच्चे के समय में जब बेटी हुई तो सास नाराज हुई क्योंकि पोते की आशा थी। दूसरी हुई तो ससुर नाराज हो गए कि अब तो कोई आस ही नहीं रही।  

 बहुत हिम्मत करके जब उन्होंने तीसरे बच्चे का निर्णय लिया तो तब भी कन्या, तो पतिदेव के चेहरे का भी रंग स्याह हो गया। एक बेटे की आशा ने हँसते खेलते परिवार की जिंदगी को तबाह कर दिया। एक ऐसी अँधियारी काली स्याही जीवन पर छा गई जिसमें अब रंग भर पाना नामुमकिन था। डॉक्टर ने तीसरी डिलीवरी के समय में ही बता दिया था कि लीना ने अगर फिर से बच्चे का निर्णय लिया तो उसकी जिंदगी को खतरा हो सकता है। तीसरे बच्चे के समय समय पहले सास ने चाहा था कि वह सोनोग्राफी करवा कर पता कर लें कि लड़का है या लड़की। तो लीना ने इस बात से बिल्कुल इंकार कर दिया था कि वह यह कदम नहीं उठाएगी। जो भी होगा उसे भगवान का आशीर्वाद मान कर स्वीकार करेंगे। लेकिन अब जब तीसरी बार भी बेटी हुई तो सारे परिवार की सारी आशाएँ समाप्त हो गई। सब का जीवन एक काली स्याही सा बन गया जिसमें फिर से कोई रंग भरने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। 

 यद्यपि लीना का जीवन भी उतना ही दुखदाई हो गया था लेकिन मन के कोने में उसे अभी भी विश्वास था कि वह अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर इतना बड़ा बना देगी कि यही दादा-दादी जो नफरत कर रहे हैं वह कल गर्व से उनके बारे में बातें करेंगे और जिंदगी की काली स्याही फिर से इंद्रधनुष के रंग बिखराएगी। उसने अपने इसी विश्वास को जीवन का लक्ष्य बना जीने का निर्णय ले लिया और पीछे मुड़कर न देखा। 

आज लीना बहुत खुश है उनकी छुटकी भी आई. पी. एस. पास कर गई है और बड़ी दोनों तो डाक्टर है। आज सालों बाद रमेश ने लीना की माथे कि लट सँवारते हुए कहा," कितने भाग्यशाली हैं हम, हमारी बेटियाँ बेटों से बढ़कर है।"

रमेश के सीने से लगी लीना का बरसों का गुब्बार आज खुशी के आँसूँ बन अविरल बह रहा था। रमेश उसे प्यार से सहला माफी माँग रहे थे। रिश्तों की काली स्याही रंगीनियों में बदल गई। दरवाजे की ओट में खड़ी छुटकी दादी की गालों पर प्यार कर दादा जी के कमरे में भागी, खुशखबरी देने के लिए।


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