Ritu Agrawal

Tragedy

4.2  

Ritu Agrawal

Tragedy

रिश्तों की लक्ष्मण रेखा.......

रिश्तों की लक्ष्मण रेखा.......

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ऋचा बेहद खूबसूरत, पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी।वह नमन के कॉलिज में ही उसके साथ पढ़ती थी। धीरे-धीरे दोनों में प्यार हुआ और उन्होंने सारी जिंदगी एक साथ गुजरने का फैसला किया। उनके माता-पिता को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी। दोनों का परिवार शहर के जाने-माने समृद्ध परिवारों में गिना जाता था।जल्द ही चट मंगनी, पट ब्याह की तर्ज़ पर दोनों की शादी हो गई।


नमन के घर में उसके माता-पिता रमा और मोहनलाल, एक बड़ी बहन नैना और एक छोटी बहन नित्या थी।दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी और दोनों ही अपने परिवार में सुखी थीं।दोनों इसी शहर में ब्याही थीं सो आना-जाना लगा रहता था।यूँ तो घर माहौल बहुत खुशनुमा था और परिवार के सभी सदस्यों का स्वभाव भी बहुत अच्छा था पर ऋचा ने महसूस किया था कि बड़े जीजा जी यानी नैना का पति अमर जब भी अपने ससुराल आता तो बहुत अजीब सी बातें करता था। वह हमेशा नमन को, आँख मारकर कहता,"अरे भाई साले साहब, आप तो बड़े किस्मत वाले हो । आप ने तो , अपने लिए अप्सरा जैसी बीवी ढूँढी है,तुम्हारे तो ऐश हैं।"


वैसे तो ऋचा को अपनी तारीफ सुनकर खुश होना चाहिए था। पर अमर का कहने का अंदाज और ऋचा की ओर देखने का तरीका, ऋचा को बहुत बुरा लगता।अमर कभी-कभी बहुत भद्दे मजाक भी कर देता था । कभी उन दोनों से, उनके अंतरंग पलों के बारे में कुछ पूछ लेता था।ऋचा को इन सब चीजों पर बहुत गुस्सा आता था वह सोचती ," हर रिश्ते में एक लक्ष्मण रेखा होती है।कम से कम जीजाजी को ,रिश्तों की मर्यादा और अपनी सीमारेखा का तो ख्याल रखना चाहिए।"


रमा और नैना सदा यही कहती," इन्हें तो मजाक करने की आदत है ऋचा तुम बुरा मत मानना वैसे भी तुम इकलौती सलहाज हो तुम से मजाक नहीं करेंगे तो किस से करेंगे?"रिचा अपनी नई शादी और ननदोई के रिश्ते का लिहाज कर के खून का घूँट पी कर रह जाती।


शादी के बाद रिचा की ससुराल में पहली होली थी। ऋचा और नमन दोनों ही बहुत उत्साहित थे।रमा और मोहनलाल ने अपने बंगले में बहुत बड़ी होली पार्टी का आयोजन किया था।जिसमें ऋचा के परिवार के लोग, दोनों ननदों का परिवार और अन्य रिश्तेदार और मित्रों को आमंत्रित किया गया था।

होली की सुबह , नमन घर के बाहर बने लॉन में होली का इंतजाम देखने लगा। ऋचा भी जल्दी-जल्दी तैयार हुई और लॉन में आकर सास-ससुर के पाँव छुए।


हल्के गुलाबी रंग की खूबसूरत सी साड़ी में ऋचा का गुलाबी चेहरा और भी खिल उठा था। रमा ने उसकी बलाएँ लेकर कहा,"हाय! मेरी बहू इतनी सादगी में भी कितनी खूबसूरत लग रही है । किसी की नजर ना लगे। दूर खड़ा नमन अपनी आँखों से ऋचा की तारीफ़ करते हुए ,अपना प्यार जता रहा था। ऋचा शरम से और गुलाबी हुई जा रही थी ।


तभी नित्या और उसके पति आ गए। उन्होंने सभी को गुलाल लगाया और ऋचा और नमन ने भी उन्हें गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएँ दी।

मेहमानों का आना भी शुरू हो गया। थोड़ी देर बाद नैना और अमर भी आ गए।अमर ने ऋचा के गाल पर गुलाल लगभग मसलते हुए कहा आप तो आज बला की खूबसूरत लग रही हो।आपकी खूबसूरती आज किसी ना किसी की जान तो लेगी।" और हँस पड़ा।

ऋचा ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए नैना को गुलाल लगाया और उससे गले मिली। जिस पर अमर बेशर्मी से हँसते हुए बोला," अरे होली पर तो सब को गले लगाते हैं क्या ननद और क्या नंदोई?"


वह ऋचा की ओर बढ़ने लगा तो ऋचा थोड़ा पीछे हट गई ।नैना ने अमर को कोहनी मारते हुए कहा," क्या आप भी ...हर वक्त मजाक करते रहते हैं।"

अब सब अबीर -गुलाल उड़ाते हुए, एक दूसरे को रंग लगाकर, संगीत की धुन में मस्ती में नाच रहे थे।होली की पार्टी अपने शबाब पर थी।अचानक अमर ने अपने दोनों हाथों में रंग लेकर ऋचा को पीछे से पकड़ा और बुरा न मानो होली है कहकर उसके मुँह पर रंग लगा दिया ,फिर उसके हाथ ऋचा की गर्दन के नीचे की ओर सरकने लगे। बौखलाई ऋचा ने अमर को एकदम से पीछे धकेलकर ,पीछे मुड़कर,एक जोर का तमाचा मारा। इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से अमर लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़ा।


सबका ध्यान उस ओर गया। रमा दौड़ती हुई आई और घबराकर बोली," क्या हुआ दामाद जी?"


अमर ने गुस्से में कहा," मैं तो ऋचा को जरा सा रंग लगा रहा था पता नहीं किस बात पर इतना नाराज हो गई और मुझ पर , घर के दामाद पर हाथ उठाया। यदि ऐसा अपमान ही करना था तो मुझे यहाँ बुलाने की क्या जरूरत थी?"


यह देख कर नैना भी चिल्ला पड़ी,"ये ऋचा, अपने आप को समझती क्या है?इतना घमंड कि अपने ननदोई पर हाथ उठाया।पता नहीं घर वालों ने कोई तमीज सिखाई भी है या नहीं।हम जा रहे हैं।"


अब रमा को बहुत गुस्सा आ गया। वह जोर-जोर से ऋचा पर चिल्लाने लगी,"यह क्या बदतमीजी है?तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जमाई जी पर हाथ उठाने की ? घर की बेटी और जमाई को कभी कोई नाराज करता है क्या? अरे होली है ....इतना मस्ती मजाक तो चलता है पर बहू तो......"


ऋचा बीच में ही अपनी सास की बात काट कर बोली,"माफ कीजिएगा मम्मी जी, यदि जमाई को कोई नाराज नहीं करता इसका मतलब ये तो नहीं कि उन्हें कैसी भी मनमानी करने दूँ या उन्हें अपने ब्लाउज में हाथ डालने दूँ।" यह सुनते ही एक सन्नाटा छा गया।


ऋचा रुँधे गले से फिर बोली,"ये हमेशा ही ओछी बातें करते रहते हैं और आज होली खेलने के बहाने इन्होंने अपनी दूषित मानसिकता और अश्लील हरकतों से अपनी सच्चाई उजागर कर दी। होली का मतलब , रंग लगाने के बहाने लड़कियों को गलत तरीके से छूने का लाइसेंस मिलना नहीं होता। छी....मुझे तो आज इनसे घिन आ रही है।"ऋचा यह सब कहते हुए गुस्से और अपमान से काँप रही थी।


यह सब सुनकर नमन को भी बहुत गुस्सा आया। वह बोला"जीजाजी, दीदी की वजह से मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ पर आपका यह घिनौना व्यवहार मुझे कतई बर्दाश्त नहीं है।आप यहाँ से अभी चले जाइए।"

इन सब चीजों की वजह से ऋचा की पहली होली के रंग में भंग पड़ गया था। बाद में ऋचा, नमन से बोली,"मुझे पहले ही जीजा जी को उनकी द्विअर्थी बातों के लिए टोक देना चाहिए था तो उनकी इतनी हिम्मत ही न होती। मैंने जो किया वह ठीक किया न नमन ?" ऋचा ने डबडबाई आँखों से पूछा और नमन ने उसे गले लगा लिया।

रितु अग्रवाल



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