रिश्तों की कहानी
रिश्तों की कहानी
अरुण कुमार और अनीता देबि हॉस्पिटल में एक कोने में बैठे हैं। सुनीता और उसकी आठ साल की बेटा थोड़ी दूर में बैठे हुए हैं। अंदर अनिल कुमार का ऑपरेशन चल रहे हैं। अरुण और अनीता हाट जोड़के अनिल के लिए दुआ मांग रहे हैं। उनकी आँखों से आंसू बाह रही है। तब सुनीता की बेटा सुनील दौड़के आके अरुण के गोदी में बैठ जाता है और पूछता है ,' दादा जी पापा को क्या हुआ ? आप और दादी कियूं रो रहे हैं ?उधर ममी भी रो रही है। बताइये न दादा जी। ' छोटा बचा सुनील की बाते सुनके अनीता देबि बोलते हैं ,' कुछ नहीं हुआ तेरे पापा को , कुछ नहीं होगा तेरे पापको। तू अपनी ठाकुर जी को हाट जोड़के बोल मेरे लाल। '
अरुण कुमार सहर की एक जाने माने ब्यबसायी हैं। उनकी पुरखो का कपडे की धंदा है और ाचा चल रहा है। अभी भी लोग उनकी दुकान में आते रहते हैं.उनकी कोई अपनी औलाद नहीं हैं.उनकी चचेरा भाई के बेटा अनिल हैं.जब अनिल एक साल का था तब उसका माता पिता का देहांत हो गया था और उसदिन अनीता देवी और अरुण कुमार ने उसे गोद लिए और अपनी औलाद जैसे पलने लगे। अनिल की कसारे खुशियों में अनीता देबि की खुसी थी। अनिल का पढाई के लिए सबसे अचे स्कूल और कालेज में अरुण कुमार ने दाखिला दिए थे। अरुण पढ़ने में थोड़ा तेज था। उसका हर ख्वास पुरे करने में दोनों अरुण और अनीता कोई कसर नहीं चोदे थे। जब पढाई ख़तम हुआ तो अनिल नौकरी करने को बोला ,उसको वो पुराणी दुकान और पुराण घर पसंद नहीं था। अरुण उसको समझने कोशिस किये पर कोई जबरदस्ती नहीं किये। अनिल को एक बैंक में नौकरी मिल गया। उसका पोस्टिंग दूसरे सहर में था। वो वहां जानेके लिए मन बना लिया था। अनीता देबि बहुत रोये और बोले यहीं इस सहर में कोई नौकरी देख लो बेटा। वो अनिल को अपनी दूर होना बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे। भले उसको वो जनम नहीं दिए पर उसको अपनी दिलके टुकड़े जैसे खूब लाड प्यार से पाले हैं। कभी उसको अहसास होने का मौका नहीं दिए की वो उनका अपनी खुद की औलाद नहीं है। अनिल अपनी जिद में अड़ा हुआ था। फिर अरुण ने अनीता को समझाए और खुसी खुसी अनिल को जाने दिए। वहां अनिल एक किराये की माकन लेके रहने लगा। पहले एक साल तह हर चुटी में वो अरुण और अनीता के पास आता जाता था। फिर धीरे धीरे उसका आना जाना काम होने लगा। अनीता बेचैन होक फ़ोन करके पूछती थी कियूं नहीं आया। वो कुछ बहाना बना लेता था। उधर अनिल उसका अपनी जिंदगी जीने लगा। अरुण उसका खबर लेते रहते थे। वहां अनिल को उसका बैंक का मैनेजर की बेटी सुनीता से प्यार हो गया। उनकी प्यार इतनी आगे बढ़ गया की शादी तक बात आगया। अनिल इस दौरान उसके खुद के मामा महेश से वही सहर में मिला और वो मां के घर आने जाने लगा। महेश एक नंबर का अयासी था। उसने रिश्ते के बहाने अनिल से भी पैसे लेने लगा था।
एक दिन नसे के हालत में महेश ने अनिल को उसका जनम का सचाई बता दिया। वो अरुण और अनीता के खिलाफ अनिल को भड़काने वाले बात बोलते रहा। पहले पहले अनिल को ये पसंद नहीं था। वो अरुण और अनीता के प्यार और परबरिस को कभी भुला नहीं पाटा। पर महेश ने इतने कुछ किया तो अनिल के मन में थोड़ा खटास आगया। उसने एक बात सोचा की अरुण और अनीता ने उसको सचाई कियूं नहीं बताया ? वो उनसे अभिमान करने लगा और अपनी मन को भी समझा दिया। फिर सुनीता के पिता शादी के बात किये तो अरुण दो दिन का समाया माँगा। उसने अनीता को फ़ोन करके सुनीता के बारे में बोला और दो दिन के बाद उसका शादी है ,वहां अरुण के साथ ानेको कहा। पहले अनीता उसको समझे की शादी सुनीता से होगा और पुरे रीती रिवाज से खूब धूम धाम से.पर अनिल कुछ सुनने को तैयार नहीं था।
फिर अनिल शादी के हाँ बोल दिया। इधर अरुण और अनीता अपने आप को खूब संभाले और सारे कपडे,गहेने और जो जो शादी के लिए चाहिए जल्द इकठा किये और उनकी दो पुराने कर्मचारी ,जो अनिल को बचपन से गोद में खिलाये ले के शादी के जगा पहुँच गए। उनकी थोड़ा देर होगया कियूं की एक लम्बा सफर था। वहां पहुँच के अनिल को गले लगा लिए। सुनीता को आशीर्वाद दिए। सुनीता की पिता से मिलके अरुण रिवाज के हिसाब से दुल्हन की सारे सामान दे दिए। अनिल का सामान खुद अनीता देबि उसको दिए और बोले इसे पहन कर मंडप पे जाना। पर तब तक शादी सुरु हो चूका था और अनिल का शादी महेस कर रहा था। भरे महफ़िल में एक अलग अंदाज से महेस ने सबके सामने अरुण और अनीता को बोला ये थोड़ी मेरा अनिल का असली माँ बाप है। में उसका असली मां हूँ। वो उसे पाले हैं ,पर असली नहीं हैं. यहाँ शादी अपनी हिसाब से कीजिये संदी जी (सुनीता की पिता को बोला ).' तब भी अपनी दर्द को चुपके अरुण और अनीता चुप रहे। पर अनिल उनका अपमान को देख के भी चुप रहा। ये अरुण और अनीता को एक बड़ा धक्का जैसे लगा। फिर कुछ समय बाद वो दोनों वहां से अपनी घर वापस आगये। जब उनकी कोई जरुरत नहीं तो रहेके भी क्या करेंगे। उस दिन अनीता वहां से निकल के गाडी में बैठ रोने लगी। अरुण के आँखों से भी आंसू टपकने लगे थे। दोनों ने अनिल की बड़ी धूम धाम से शादी करने का सोचे थे। कभो वो उसको पराया समझे नहीं। पर सबके सामने महेश का बात और अनिल का चुप रहना उनका दिल को बहुत चोट पहुंचाया था। दोनों घर पहुँच गए और अपनी दर्द को सिनेमे दबका जीने लगे। शादी का दो शाल बाद खबर मिला अनिल का एक बेटा हुआ। उसको देखने दोनों अरुण और अनीता गए। मिठाई की डिब्बा भरके लिए थे।
अपनी पोते को गोद में ले के अनीता गले लगा लिया। तब फिर वही महेश आगया और उन दोनों का मजाक उदय। बस अरुण और अनीता जो ले के गए थे सं अनिल को समझा दिए और वहां से चलने लगे। अनिल भी उनको रोका नहीं था। दोनों अपनी सहर वापस आगये। जिंदगी का ये अजब खेल उनको बड़ा दर्द दे रहा था। बाद में अनिल ने फ़ोन करके बेटा का नाम सुनील रखा बोलके बताया था। फिर दिन मैंने और साल बीतते गए। आठ साल के बाद खबर आया की अनिल को दिल का दौरा पड़ा है और उसका ऑपरेशन होगा। अरुण के सहर में बहुत बड़ा हॉस्पिटल था। तो अरुण ने सुनीता को बोले तुरंत अनिल को लेकर आजाने के लिए। अनिल को एक एम्बुलेंस में लाया गया और सीधे हॉस्पिटल में भर्ती करदिये अरुण. अरुण और अनीता पहले से हॉस्पिटल में थे। डाक्टर अनिल का पुरे जाँच किये और तुरंत ऑपरेशन करने बोले। उसके लिए तुरंत ३० लाख जमा करने को बोले। अरुण पहले से तैयार हो के आये थे। सारे काम तुरंत कर लिए और अनिल का ऑपरेशन सुरु हुआ। तब ८ साल के सुनील को पहलीबार अरुण और अनीता गले लगाए। वो बिलकुल अनिल जैसा था। तब सुनीता ने सुनील को बोला इन्हे प्रणाम करो ये तुम्हारी दादा और दादी है। सुनीता भी प्रणाम की और अनीता की गले लगके बहुत रोने लगी।
पूरा परिबार एक साथ हॉस्पिटल में हैं.सुनीता ने अरुण और अनीता को महेश के बारे में सब बता दिया। उसने दोनों को अनिल के लिए माफ़ी मांगी। तब अरुण बोले। 'बहु अनिल मेरा बेटा है। माँ बाप कभी भी अपने औलाद का किसी भी बात में नाराज नहीं होते पर थोड़ा दुःख होता। मेरा अनिल का कोई कसूर नहीं.तुम माफ़ी कियूं मांग रही हो। तुम तो मेरा बहु नहीं बेटी हो। 'ये सुनके सुनीता अरुण को पकड़ के रोने लगी। फिर अरुण सुनीता और अनीता को शांत किये और बोले मेरे अनिल के लिए भगबान से दुआ मानगो। सुनीता इस अनोखी रिस्तो की कहानी को समझ रही थी। वो समझ रही थी माँ बाप का प्यार क्या होता है ,तब डाक्टर ने बहार आये और अरुण उनके पास दौड़के गए। डाक्टर ने बताया ऑपरेशन सही हुआ है और अनिल जल्द ठीक हो जायेगा. २४ घंटे के बाद वो लोग उसे मिल सकते। फिर जब २४ घंटे बिट गया तो सब मिलने के लिए गए। सुनीता ने बोला अरुण को ,'पापा आप और ममी पहले जाके आपके बेटा को मिलिए। बाद में में आउंगी। अरुण और अनीता अंदर गए। अनिल जब उनको देखा उसके आँखों से आंसू बह गया। अनीता उसके पास जाकर बोली ,'रोना नहीं मेरे लाल। तू अब ठीक हो जायेगा। हम सब है बेटा तेरे साथ। सुनीता की और देख के बोली देख मेरी बहु और मेरी पोता भी यहाँ हैं। कुछ सोचना नहीं बेटा। सब ठीक हो जायेगा। '
तब सुनीता मन ही मन सोच रही थी इस रिश्तों की कहानी के बारे में। थोड़ी सी मुस्कान आंसुओं के साथ चेहरे पे था।