रिश्तों की हत्या
रिश्तों की हत्या
सुमन जी के घर खुशी का माहौल है, हो भी क्यों न सुमन जी की बेटी मधु और बहू सांझ दोनों जल्दी माँ बनने वाली हैं। मधु को सातवां और सांझ को नवां महीना चल रहा था। सुमन जी की बेटी मधु, लाड में पली है, जब जो चाहिए हाज़िर। बचपन से लेकर आज तक हर ख्वाहिश पूरी की है। सुमन जी के बेटे विभोर के लिए भी बहन से बढ़कर कुछ नहीं। सुमन जी को भी भाई बहन का ये प्यार बहुत पसंद है।
जब सांझ शादी कर के इस घर में आई उसी दिन समझ गयी कि मधु इस घर के लिए क्या है। उसे इस बात से कोई खास समस्या नहीं थी। लेकिन कभी कभार ऐसा हो जाता था कि वह अपनी बात नहीं कह पाती। उसे डर था कि वह कुछ मधु के खिलाफ बोले तो घर में बवाल हो जाएगा।
शादी के बाद जब पहली बार विभोर उसके लिए अंगूठी लेकर आया था जन्मदिन पर कैसे मधु दी को पसंद आने पर विभोर ने उसके हाथ से अंगूठी लेकर मधु को दे दी थी और सांझ कुछ कह भी नहीं पायी।
जब सांझ की माँ के हाथ से कढ़ाई की हुई सुंदर सी बेडशीट बिना पूछे मधु अपने घर ले गयी कितना दुख हुआ था सांझ को, पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। ऐसे कितनी अनगिनत बातें थीं जो सांझ का मन दुखाती थीं लेकिन पति और सास को अपनी जान से प्यारी मधु की ही खुशी नज़र आती थी।
आज वो घड़ी आ गयी जब सांझ ने एक प्यारी सी नन्ही परी को जन्म दिया। सब खुश तो थे लेकिन शायद पापा दादी बनने से ज़्यादा नानी मामा बनने का इंतजार था। 6 दिन बाद ही मधु को दर्द शुरू हुआ, सभी हॉस्पिटल भागे। लेकिन अभी वक्त से पहले ही इस परिस्थिति में सभी घबरा गए। जिसका डर था वही हुआ मधु के बच्चे को डॉक्टर नहीं बचा पाए।
मधु, सुमन जी, विभोर सभी सदमे में थे। मधु का रोना नहीं रुक रहा था। जब सांझ को इसकी खबर मिली उसकी भी आंखे छलक गईं। अपनी बेटी को सीने से लगा कर वह मधु का दुख अनुभव कर पा रही थी। मधु को हॉस्पिटल से छुट्टी मिली, घर आई। घर आते ही उसने नन्ही परी की रोने की आवाज सुनी तो सीधे ही साँझ के कमरे में पहुच गयी। परी को गोद में उठाया कहा ये मेरी बेटी है।
सांझ ने कहा जी मधु दी आपकी बेटी ही है, आप इसकी बुआ हो। बुआ नहीं माँ, ये मेरे पास रहेगी ये मेरी बेटी है। सांझ के हाथ पांव ठंडे हो गए। उसकी जान, कलेजे का टुकड़ा, उसे अपने से अलग करने के ख्याल से ही वह डर गयी।
नहीं ऐसा कभी नहीं होगा। विभोर मम्मी जी आप कुछ बोल क्यूँ नहीं रहे? मेरी बेटी है ये, दस दिन की नन्ही जान, आप की चुप्पी को मैं क्या समझूं विभोर?
सांझ मधु अभी बहुत दुख से गुजरी है, बेटी उसे दे दो। ऐसा समझो जैसे मधु की जगह हमारे मरी हुई....
चुप हो जाओ विभोर, तुम लायक ही नहीं हो ना अच्छा पति ना अच्छा बाप कहलाने के। मैं मानती हूं मधु दी को बहुत दुख हुआ है, भगवान किसी माँ को ये दुख ना दे। लेकिन एक का दुख मिटाने के लिए मुझे आप लोग क्यूँ दुख में धकेलना चाह रहे हो? ये मेरी जान है, कोई अंगूठी या घर का सामान नहीं जो दीदी को पसंद आ गया तो इन्हे दे दूँ।
मधु तुम ज्यादा ही बोल रही हो, मेरी बेटी का दुख तुम्हें दिखता ही नहीं?
मम्मी जी जैसे आपको आपकी बेटी प्यारी है, मुझे मेरी बेटी प्यारी है और आज के बाद किसी ने मुझसे मेरी बेटी को अलग करने की सोची भी तो मैं पुलिस में चली जाउंगी और जब तक दीदी यहां है मैं अपने मायके जा रही हूँ। मुझे यहां अपनी बेटी के लिए सही माहौल नहीं दिखता।
और विभोर जब तुम अपनी बेटी को अपना बना सको अच्छे पिता और पति बन सको तो मुझे लेने आ जाना, नहीं तो नहीं।
प्रिय पाठकों, ये कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। बस इतना ही फर्क है कि इसमें सांझ ने अपने लिए आवाज़ उठाई, अपने बच्चे को अपने से अलग होने से बचा लिया। हकीकत में सांझ अपने बच्चे से अलग हो चुकी है। आप अपनी राय दें, आप क्या करते ?
