रिश्तो मे बढ़ते तनाव व दुरियाँ
रिश्तो मे बढ़ते तनाव व दुरियाँ
सुधा, थकी हारी घर वापस लौटी, दरवाजा खोल, वहीं सोफे पर बैठ कर कुछ सोचने लगी. घर खाली था आज।घर मे चारो ओर शांती ही शांती थी।
वैसे आजकल हर रोज घर मे यैसी ही शांती छाइ रहती है. सुधीर और बच्चो के घर मे रहने के बावजुद भी.
सुधा वही बैठी बैठी सोच मे डुब गयी.
"ये आजकल, घर मे सुनापन कैसा? क्यों ? पहले तो ना घर मे सुनापन था, और नाही दिल में। लगता है, जैसे आजकल सब के मुँह पर ताले से लग गये है. किंतू क्यो? क्या हमारे मुँह पर ताले लगे है? या हमारे दिल पर। आखीर क्यों ? हम सब के बिच रिश्तो मे दुरीया बढ रही है? क्या वजह है इसकी।"
बबली का छोटी छोटी बात पर चिढकर बोलना. आरुष तो अपनी ही दुनीया मे खोया रहता है. सुधीर भी आजकल घरकी बातो मे ध्यान नहीं देते। एक घर मे चार लोंगो के चार कोने तैयार हुये है? आखीर यैसा होने की वजह क्या है?
आधुनिक पहनाव , आधुनीक रेहनसेहन, या आधुनीक विचार।
नही आधुनीक पह्नव तो सिर्फ हमारे बाह्य वर्तन को दर्शाता है, और आधुनीक विचार तो हमारे प्रगत विचार की आभा प्रकट करता है. आधुनीक विचार या पेहराव इन्सानो के बीच में रिश्तों की बढ़ती दुरीयों की वजह नही हो सकते।
जब तक बच्चे छोटे थे, उनकी देखभाल और परवरीश ही हम दोनो का माँ बाप के तौर पर मकसद था. सुधीर हमेशा चाहते थे, बच्चो की परवरीश और देखभाल मे कोइ कमी ना हो, और इसलीये मुझसे नोकरी भी छुडवाई. खुद दिन रात एक कर मेहनत करने लगे,और इसी तरह से एक आदत सी पड़ गयी उन्हे, घर की पूरी जिम्मेदारी मुझे सौंप , खुद को मशिन की तरह, बाहर की सुवीधाये जुटाने की. जिम्मेदारी निभाते निभाते, ना जाने कब, विचारोंमे परिवर्तन होता गया, और आपसी मतभेद ने हमारी आपसी भावनाओंके बीच दरारे डालनी शुरू कर दी. दिनभर सरपर काम का बोझा ढोते ढोते, जब देर रात घर लौटते, तो बच्चो के साथ या मेरे साथ बात करने की ना उनमे क्षमता बचती, और नहीं उनकी दिली तमन्ना होती. वैसे ही बच्चो का भी हाल हुवा।बढते एजुकेशन के साथ,पढ़ाई का बढ़ता बोझा, आगे जाने की बढ़ती होड़ ने ना जाने बच्चो को ही हमसे इमोशनली कब दुर कर दिया. बच्चो का अपना अलग ही विश्व निर्माण होने लगा. और उन्ही की तरह, सुधीर भी होने लगे. सुधीर का काम.... काम... और बाहरी लोगों से मेलमिलाप, बच्चोका एजुकेशन, काँम्पिटिशन, और उनकी भी बाहरी दुनीया।
बच्चोकी बढती उम्र, हायर एजुकेशन के साथ बढता तकनीकी ज्ञान, उनकी और हमारी सोच में विचारो मे अंतर आने लगा।
ना जाने कोन सी बात थी वह, पर हाँ इतना याद है, जब बबली ने कहा,
"ममा, वो आपका जमाना था। ये आपका जमाना नहीं है। कुछ तो सोच समझकर बोला किजीये. बाहर निकलकर देखीये, घर बैठे बैठे आपको क्या पता, दुनीया कितनी बदल गयी है।"
सकपका गयी थी सुधा तब।
एक लंबी सांस खिचकर सुधा विचारों के भंवर से बाहर आते हुये,
" हाँ यही वजह है, इन्ही आपसी विचारों में बढ़ती दुरीयों ने,आपसी विचार,मतो के बीच पड़ती दरारो ने हमारे घर के रिश्तो को खोखला कर दिया. एक घर मे रहने वाले चार लोंगो के चार ढंग के विचार, अलग अलग सोच ही हमारे रिश्तो के बिच बढती दुरीयों की वजह हैं।"
और शायद यह दरारे भर भी नही सकती, यह दरारे आने की वजह शायद हमारी अलग परवरीश, अलग शिक्षा, अलग विचार, अलग सोच, अलग जमाना, अलग स्थिती, अलग हालात, और उम्र का अंतराल, साथ ही जिंदगी का आया हुआ तजुर्बा यह सब इन की वजह हो। और यह वजह इतनी बडी है, की हमारे इमोशन को भी एक दुसरे से बांधे रखने में कमजोर साबित कर रही है।
इस सोच से, शायद सुधा को उसके परिवार मे बढ़ती दुरियों की वजह की एक कड़ी सी मिल गयीथी।