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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

धूप

धूप

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ना जाने कब रात खत्म हो, सुबह का सुरज निकल आया। उषा की आँख खुली, उसे बड़ा ताज्जुब हो रहा था।

"आँख खुलने से पहले, वो जो कुछ देख रही थी, क्या वह सपना था ? या हकीकत ? और रवी.... वो कहाँ चला गया ?"

सोचते हुये फिर उसने आँखें मुंद ली।

उषा धूप में खड़ी थी। बहुत कड़ी धूप तो ना थी वह, किंतू नंगे पाँव, नंगे सर खड़ी रह सह ले, यैसी भी ना थी।

ना जाने रवी कहाँ से टपक पड़ा। उषा का ध्यान तो तब गया, जब रवी ने उसके सर पर छाता धरा और जमीं पर इशारे करते हुये, "लो, चप्पल पहन लो।" कहने लगा।

फिर वही रवी के शब्द कान मे गुंजते ही,उषा ने आँख खोली, तो वह कहीं भी उसके आसपास नहीं था। वह मन ही मन, "तुम तो मेरे आसपास भी नहीं, फिर हर पल तुम्हारा ए एहसास क्यों ? क्यों रात के अंधियारे में, गगन पर तारे बन चमचमाते हो। क्यों सूरज की धूप में छाँव बन मुझे ठंडी राहत दिलाते हो, क्यों ? क्यों ?"

पर उषा को सुननेवाला वहाँ कोई नहीं था।


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