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पहल

पहल

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"आखिर कब तक यूं ही अकेली चलती रहोगी। और क्यों। कहीं तो रूकना होगा ना।" संजय ने पहल करते हुये, सामने बैठे प्रित का हाथ थामते हुये कहाँ।

अचानक संजय ने हाथ थामने से, प्रित ना शरमायी, ना घबरायी। बस चुपचाप नज़रे झुकाये उसके हाथ को देखती रही।

"मै कुछ पुछ रहा हूं। ऐसे चुप ना रहो, कुछ बोलो।" संजय ने हाथ दबाते हुये कहा।

बहुत प्रयास के बाद,"अब मैं क्या कहूँ। तुम तो जानते हो मेरी पिछली जिंदगी। कितनी दर्दनाक रही है।" प्रित ने ज़ुबान खोली।

"हाँ तो क्या हुआ। वह अतीत था।" संजय

"लेकिन बहुत डरावना।" प्रित

"भूल जाओ उसे। नये सिरे से जीवन को प्रारंभ करो।" संजय

"अभी तो उसी सदमे से उभर नही पायी। नयी शुरुआत कैसे करूँ?"

"मेरा हाथ थाम कर। पहल करते हुये मैं इक बार हाथ सामने कर रहा हूँ। क्या तुम इक बार मेरा हाथ थामोंगी? हाथ आगे बढ़ाये हुये संजय की आँखो में और जबाँ पर काफी प्रश्न खड़े थे, जो प्रित से जवाब मांग रहे थे।



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