Anshu sharma

Drama

4.0  

Anshu sharma

Drama

सिमटते दायरे........

सिमटते दायरे........

6 mins
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सिमटते दायरे (रिश्तो की पोटली)



सुमा पढ़ने मे होशियार हमेशा प्रथम आई। डाक्टर बनुँगी पापा, चाहे कुछ हो जाये। हाँ हाँ बिटिया पढ़ो जितना पढ़ना है।हमेशा खुश होकर सुमा गले लग जाती पापा के।

बी.एस.सी की ही थी कि सुमा के पापा को हार्टअटैक हुआ। चाचा, ताऊ जी सब एक ही घर मे रहते आँगन और रसोई एक ही था।बस कमरे अलग। सुमा के पापा मिलाकर चलते सब प्रेम से रहते। पर अचानक आये हार्टअटैक से, सब घबरा गये की कही उनके बाद सुमा की पढ़ाई, शादी की जिम्मेदारी ना लेनी पडे। समय जैसा हो रिश्ते बहुत छूट जाते है।सुमा बहुत रोई पापा प्लीज मुझे कुछ बनना है।शादी नहीं करनी। पापा आपने वादा किया था मैं पढ़ुँगी। हाँ बेटा पर मैं मजबूर हूँ। मेरे बाद तेरी माँ अकेली कैसे संभालेगी ?घर तेरी शादी। नहीं पापा आपको कुछ नहीं होगा। आप ये नहीं सोचिए। बस खान पान योगा प्राणायाम से बीमारी नहीं होगी। आप सही हो जायेगें।बस मुझे पढ़ने दिजिए। मैं ताऊ जी, चाचा जी पर बोझ तो नहीं हूँ। आपकी बेटी हूँ। फिर उन्हें क्या ?

पर सुमा की किसी ने चलने नहीं दी और सुमा के पापा को उनके सामने ही शादी के लिए मना लिया गया।

और करीबी रिश्तेदार का बेटा था सुमेर से शादी कर ली गयी। सुमा के अरमान धरे रह गये। रोई, पर कोई नहीं सुनने वाला था। किताबे रद्दी मे देने चली सास। तो हाथ पैर जोड़ कर सुमा ने किताबे स्टोर के कमरे मे रखकर, पढ़ने के अरमान दफन कर दिये।उधर पिता भी चल बसे। चाचा, ताऊ जी ने रिश्ता नहीं रखा जैसा रखना था।

मम्मी वही उस घर मे गुजर बसर करती। सुमा का साल मे एक बार जाना होता वो भी बस सुबह से शाम तक। माँ ने अपनी चुलबुल सुमा को गृहस्थन बना देखा। कुछ कर भी नहीं सकती थी। बस खुश रहे ससुराल मे।तब भी मायके जाती तो पापा की इच्छा थी मिलकर रहे तो सबके पास जाती पर ताई, चाची बेमन से मिलते की देना ना पडे कुछ। ताई मुस्कुराती कहती सुमा बस अब कुछ नहीं दे पाऊगी हाथ तंग है।तुम्हारी मम्मी की जिम्मेदारी भी हम पर है उन पर ही खर्च हो जाता है।

पर सुमा मन मे जानती थी की नौकरानी की तरह माँ दोनो के घर का काम करती रहती।माँ से सारे काम कराती ताई या चाची । माँ चुपचाप अपना दर्द छुपा लेती। माँ मुझे पता है की आपको ये सब कैसे रखते है ? नहीं सुमा नजरे चुराती बोली सब बहुत प्यार करते है।तू बहुत दिनो मे आई इसलिए लग रहा है। दो वक्त की रोटी चाहिए बस।सुमा बोली वो भी इसलिए देते है आप सारा दिन काम करती हो वो दोनो बैठी रहती हैं।और इस मकान पर जो ध्यान है उन सबका। 

सुमा धीरे बोल बिटिया सुन लिया तो राई का पहाड़ बन जायेगा । तेरे पिता जी रिश्तो को महत्व देते थे।"रिश्तो की उनकी बनाई पोटली है संजोकर रखे हूँ"। सहकर बोलो माँ सहती हो सब इसलिए। कैसा व्यवहार है जानती नहीं क्या मैं ?अच्छा चल छोड तू भी हर बार क्या बात को पकडकर बैठ जाती है। रिश्ते निभाने ही होते है। सब अपने ही तो है।कुछ कहना बेकार है माँ तुमसे। जब मन या शरीर जवाब दे रहा हो तो कोई जरुरत नहीं दोनो के घर काम करने की।अच्छा ठीक है चल खाना खा ले। साग बनाया है। आपके हाथ का बना साग वाह।गाँव मे कुए के पास वाली चाची दे गई सुबह की सुमा के लिए बना लेना।दुख मे बहुत साथ निभाती है। तेरे पापा के सामने बडे अच्छे रिश्ते थे हमारे।बडा मान रखती है तेरे पापा का। चल अच्छे से ससुराल जा सबका ध्यान रख। मेरी चिंता नहीं करना। 

सुमा उदास मन से लौट आई कुछ कर भी नहीं सकती थी।ससुराल वाले माँ को रखने मे राजी नहीं थे। करती भी क्या ?

सुमा घर की जिम्मेदारी मे ही लगी रही। सास, ससुर गुजर गये।एक बेटा हुआ। मोहित को लाड प्यार से रखती। उसके कहने से पहले चीज मिल जाती। एक तरह से बिगाड ही दिया था। शादी भी कर दी धूमधाम से। चाचा ताऊ सभी को बुलाया। पर कोई नहीं आया की बहु को मुँह दिखाई देनी होगी कौन खर्चा करे।माँ ने धेवते के लिए गाँव वालो के साथ ढ़ेरो आर्शीवाद भेजे और एक सबकी नजरो से बचा के रखा। चाँदी का सिक्का। सुमा माँ को याद करके खूब रोई उसकी खुशी मे उसकी माँ ही नहीं थी।

कुछ समय बाद जैसे पहाड टूट पडा। सुमेर को आखिरी स्टेज कैंसर पता चला।

 सुमा कैंसर पिडित पति की जिम्मेदारी निभाती आई।बेटा एक काम था! सुमा ने मोहित को कहा हाँ क्या माँ ?मेरा चश्मा सही होना था।बहु तुरंत बोली माँजी अभी कुछ दिन पहले ही तो सही किया था। बहु वो पिछले साल की बात है।सकुचाते बोली मेरी दवा भी आयेगी।ओहो माँ पहले एक बार मे बताया करो गुस्सा दिखाता मोहित बोला। सुमा चुप रह गयी।पति का जमा पैसा कैंसर मे खर्च हो गया था। अब मोहित और बहु पार्टियां करते दस बार बाजार जाते पर सुमा का कुछ काम बोझ लगता।

पति की मौत के बाद, समा ने अपनी हर चीज के लिए बच्चो पर आश्रित हो गयी। एक दिन बेटे, बहु के कुछ शब्द बाण दिल पर लगे। खुब रोई और बची हुई पढ़ाई पूरी करने के लिए स्टोर रूम मे रखी किताबो की तरफ बढ़ चली। नहीं अब और नहीं हाथ फैलाऊगीं। 

एक बैग लिया और अपनी मार्कशीट उठाकर कालेज की तरफ बढ़ चली।सोच लिया, पार्ट टाइम नौकरी के साथ बेरंग जिंदगी मे खुशियो के रंग भरूगीं।बेटा बहु ने खूब रोका घर का काम कौन करेगा सब हँसेंगे की इस उम्रमे पढ़ाई और नौकरी ?लोग क्या कहेगेँ ?अब तक नहीं की बेटे बहु अच्छे से नहीं रखते होगे मोहित बोला। हाँ तो गलत क्या कहेगें ?तुम दोनो को पता है तुम्हारे पापा के जाने के बाद व्यवहार बदल गया। मैं अपनी माँ की तरह अपना अस्तित्व नहीं खोने दूँगी। सुमा ने ठान लिया जो उसकी कदर ही नहीं करते उसका सोचेगी नहीं।

बहुत मुश्किल से कह सुनकर एडमिशन प्राइवेट मिल गया और हौसला देखकर आसपड़ोस वालो ने सहायता भी की।सिलाई सिखाने का काम भी कर लिया।

गाँव जाकर माँ को लेने गयी। माँ मैं लेने आई हूँ। चाची, ताई मना करने लगी। मोहित और बहू को फोन करके बुला लिया गया कि रिश्तेदार क्या कहेगें ?की हम ध्यान नहीं रख पाये तेरी माँ का। सुमा ने कहा बहुत समय मिला आपको मेरी माँ का ध्यान रखने का पर आपने बस स्वार्थ के लिए रखा घर का काम कराया। सुमा की माँ बोली नहीं सुमा ये रिश्ते तेरे पिता जी की अमानत है।नहीं माँ नहीं .....रिश्तों की पोटली जो रखी है उसमे से मैं स्वार्थी रिश्ते निकाल रही हूँ। इस पोटली मे बस वो रिश्ते होगे जो हमारे अपने होगे।ये ताऊ ताई, चाचा चाची नहीं जो कभी अपने हुए ही नहीं। कुएँ वाली चाची जिन्होने दुख सुख मे साथ दिया।

वो अपने खून के रिश्तों से लाख गुना अच्छे है।अब नहीं माँ मैं पापा के जाने के बाद अपने को आपके जैसा नहीं बनने दूगी। जहाँ मान सम्मान नहीं वहाँ क्यूँ हाथ फैलाए या झुके ? मोहित और बहू ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार ना किया होता तो अपनी पढ़ाई, अपना अस्तित्व सब भूल गयी थी याद नहीं आता। ठोकर खा कर सब सीखते हैं। मोहित और बहू को भी रिश्तो की पोटली से निकाल रही हूँ। मोहित और बहू शर्म से नजरे झुकाऐ खड़े थे। तुरंत सुमा के पैरों में गिर गये माँ आज की बात ने हमारी आँखें खोल दी। सुमा की आँखें आँसुओं से भरी दोनों को गले लगा लिया। शाम का भूला घर आ जाये तो भूला नहीं कहते। मोहित बोला माँ बिना स्वार्थ वाले रिश्तों की पोटली हम भी संजोकर रखेगें। चलो माँ, नानी अपने घर चलो मोहित और बहू हाथ पकड़कर सुमा और सुमा की माँ को बाहर ले आये।रिश्तो की पोटली मे से स्वार्थ भरे रिश्ते निकाल दिये थे।अब थी रिश्तो की प्यार से भरी पोटली साथ।


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