Akanksha Gupta

Abstract

3.8  

Akanksha Gupta

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रहस्यमयी दुल्हन भाग-1

रहस्यमयी दुल्हन भाग-1

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गाजे बाजे के साथ नई दुल्हन का स्वागत किया जा रहा था। दर्शना देवी हाथ में आरती का थाल लिए उसके दरवाजे तक पहुंचने का इंतजार कर रही थीं। घर के अंदर मंगल गीत गाये जा रहे थे। कुछ औरते दर्शना देवी के साथ खड़ी हुई आपस में नई बहू के विषय में चर्चा कर रही थीं।

कुछ देर बाद चंद्रिका अपने ससुराल के दरवाजे पर आंखे झुकाए सकुचाई सी गठबंधन से बंधी हुई अपने पति शेखर के साथ खड़ी हुई थीं। सुर्ख लाल लहंगे के साथ सोलह श्रृंगार किये चंद्रिका के सौंदर्य पर मोहित हो शेखर उसकी ओर ही देखे जा रहा था।

यह देखकर दर्शना देवी की प्रसन्नता का कोई पार ना था। सर्वप्रथम उन्होंने नवविवाहित दम्पति की आरती उतारी और फिर उसके बाद गृहप्रवेश की विधि पूरी करने के लिए चावलों भरा चांदी का कलश चंद्रिका के आगे रख दिया।

चावल के कलश को अपने दाहिने पैर से अंदर की ओर गिराने के बाद चंद्रिका शेखर के साथ घर के अंदर एक कदम रखती है। तभी एक औरत चांदी की परांत में घुला हुआ लाल रंग लाकर चंद्रिका के आगे रख देती हैं। उस परांत के आगे एक सफेद रंग की चौड़ी कपड़े की पट्टी बिछा दी जाती हैं। शेखर चंद्रिका की गठबंधन की ओढ़नी लेकर अलग खड़ा हो जाता हैं और चंद्रिका अपना पैर परांत मे रखते हुए आगे बढ़ती है। परांत से पैर निकाल कर चंद्रिका उस सफेद रंग के कपड़े पर अपने लाल रंग के पैरों के निशान बनाती हुई आगे बढ़ती है। उसके आगे बढ़ते ही गिरा हुआ कलश अपने आप सीधा हो जाता है। बिखरे हुए चावल कलश के अंदर भर जाते है और सफेद कपड़े से पैरो के निशान अपने आप ही मिट जाते हैं।

दर्शना देवी की कुल-परंपरा के अनुसार गृहप्रवेश के बाद नववधू को आठ दिन तक अपने कमरे में अकेले ही रहना होगा। इस बीच वह नये परिवेश में अजनबी लोगों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करेगी। ये आठ दिन पुरूष के सयंम और धैर्य की भी कड़ी परीक्षा होती थी। इन आठ दिनों में वह रात में अपनी पत्नी के कमरे में प्रवेश नही कर सकता था।

सारी रस्में खत्म होने के बाद चंद्रिका को उसके कमरे में ले जाया गया। कमरे में दियों की रोशनी की गई थी। सुगंधित इत्र की खुशबू से कमरा महक रहा था। पलंग पर लाल चादर बिछी हुई थी जिसके ऊपर सफेद रंग का एक कंबल अधखुला बिछाया गया था।

कमरे का दरवाजा बंद कर चंद्रिका ने अपना घूंघट खोलकर चैन की सांस ली। उसे यह कुलपरंपरा कुछ अजीब सी लगी लेकिन इसमें छुपी अच्छी शिक्षा को देखते हुए वह अपने आप को समझा देती है। विवाह की थकान की वजह से चंद्रिका को पलंग पर लिटते ही नींद आ जाती है।

अचानक से आधी रात को चंद्रिका की नींद खुली। उसे चूड़ियों की खन-खन सुनाई दे रही थी। उसने उठ कर देखा तो वहां बिल्कुल उसके जैसे कपड़े पहने हुए एक और दुल्हन बैठी थी जिसके चेहरे पर घूंघट पड़ा हुआ था। चंद्रिका उसे अचानक से अपने कमरे में देखकर डर गई थी। चंद्रिका जैसे ही उठकर उसके पास जाती है वैसे ही वह धीरे धीरे चलते हुए बाहर निकल जाती है। चंद्रिका उसे कई आवाजे भी लगाती हैं लेकिन वह नही रुकती। आखिर में चंद्रिका उसका पीछा करने लगती है।

उस दुल्हन का पीछा करते हुए जब चंद्रिका अपने कमरे से बाहर भागती हैं तो वो देखती हैं कि वह एक महलनुमा हवेली की सबसे ऊपरी मंजिल पर खड़ी है। इस हवेली में कितनी मंजिल थी, किसी के लिए भी कह पाना संभव नहीं था। इस मंजिल पर खड़े होकर चंद्रिका को नीचे की सभी चीजें चींटी जैसी नजर आ रही थीं। इस हवेली की हर मंजिल हूबहू एक जैसी थी।

पूरी हवेली लाल रंग के पत्थरों से बनी हुई थी। इस वर्गाकार हवेली की हर मंजिल पर चालीस कमरे थे। हर एक तरफ दस कमरे बने हुए थे। हर दस कमरों के बाद एक घुमावदार सीढ़ी थी। चारों दीवारों और उनसे लगें हुए पत्थर के स्तंभों पर एक जैसी नक्काशी और चित्रकारी उकेरी गई थी। बीच मे एक बड़ा सा आंगन था।

चंद्रिका यह सब देखकर कुछ देर के लिए हैरान हुई थी लेकिन उसे यह सब कुछ जाना पहचाना लगा।


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