BABARIYA DHARINEE

Abstract Horror Others

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BABARIYA DHARINEE

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रहस्य मई मौलाना

रहस्य मई मौलाना

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आरा शहर की वर्षों पुरानी घटना है। उस जमाने की जब एक्का और बग्गी चला करती थी। करीम मियां कभी-कभी देर रात तक एक्का चलाया करते थे। बड़ी चौक के पास टमटम पड़ाव था। एक रात की बात है। करीम मियां सवारी का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने सोचा कि 10-15 मिनट देख लेते हैं सवारी मिली तो ठीक वर्ना घर वापस लौट जायेंगे। कुछ देर बाद वे घर जाने के लिये एक्का मोड़ रहे थे कि आवाज आयी-ए एक्का वाले चलोगे। 

 करीम मियां ने देखा दो बुजुर्ग मौलाना सफेद कुर्ता पैजामा पहले खड़े थे। उनके गले में सोने की चेन थी। एक के हाथ में छड़ी थी। उन्होंने फिर पूछा- चलोगे 

 क्यों नहीं सरकार जरूर चलेंगेकहां चलना है 

 चलूंगा हुजूररात काफी हो चुकी हैभाड़ा क्या देंगे 

 रात के सन्नाटे में दौड़ता हुआ इक्का कुछ ही देर में बड़ी चौक पहुंच गया। मौलान नीचे उतरे। उनमें से एक ने पूछा-तुम्हारा नाम क्या है। 

 करीम ने अपना नाम बताया। 

 ठीक है सरकार हम रोज आपका इंतजार करेंगेलेकिन आपने इतना बड़ा नोट दिया है। मेरे पास इसका खुदरा नहीं है। 

 खुदरा की जरूरत नहीं यह पूरा तुम्हारा है और रोज तुम्हें इतने ही पैसे मिलेंगे। 

 लेकिन सरकार यह तो बहुत ज्यादा है। इतना तो हम महीनों में भी नहीं कमाते हैं। 

 वे हंसते हुए बोले-कल ठीक समय पर आ जाना। 

 उस जमाने में सौ रुपये बहुत ज्यादा होते थे। अच्छे अच्छे अधिकारियों का भी वेतन इतना नहीं होता था। करीम मियां सोचते हुये घर की तरफ बढ़ गये। अगले दिन से वे रात को मौलानाओं का इंतजार करता और हर रोज ुसे सौ का नोट मिल जाता। पैसा आने पर घर की हालत सुधरने लगी। रहन-सहन का स्तर सुधरने लगा। पास पड़ोस के लोगों को समझ में नहीं ाया कि उसकी कौन सी लाटरी लग गयी है। 

 सुबह के वक्त दारोगा जी थाना पहुंचे तो हाजत में करीम खान अकेला नजर आया। उन्होंने पूछा-मौलाना लोग कहां गये। 

 सरकार हमें झपकी आ गयी थी। आंख खुली तो वे पता नहीं कैसे कहां चले गये। 

 चाबी तो मेरे पास थी। ताला भी बंद है। फिर वे कैसे निकल गयेदारोगा ने बड़बड़ाते हुये कहा। 

 सही-सही बताओ तुम्हारे पास इतना धन कहां से आया। 

 पता नहीं साहब हम तो गरीब आदमी हैंभाड़ा इतना ज्यादा देते थे तो उनको ले जाने से मना कैसे करता 

 ठीक है तुम जा सकते हो 

करीम खान उसके बाद रात-रात भर टमटम पड़ाव पर पड़ा रहता लेकिन वे मौलाना फिर उसे कभी नहीं मिले। 

 दारोगा जी के साथ भी अजीबो-गरीब घटनाएं होने लगीं। कई बार अदृश्य हाथों ने थप्पड़ मारकर मुंह लाल कर दिया। उन्होंने कान पकड़ा कि अब कभी बिना जांचे परखे ऐसी कार्रवाई नहीं करेंगे और अपना तबादला करा लिया। आरा के लोग आज भी इस कहानी को याद करते हैं।


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