रामरस

रामरस

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गजोधर रोसड़ा से दू बोरा बैंगन टाटा मैजिक के छत पर लाद कर लाए हैं। सुबह आठ बजे ही पहुंच गए समस्तीपुर स्टेशन। दस बजे आएगी सियालदह पैसेंजर आठ बजे तो खुलती ही है मुजफ्फरपुर से। भोर मेें पाठा खुल गया था तो मेहरारू रोटी बना नहीं पाई पाठा खोजने मेें ही रह गई।  

प्लेटफार्म पर आरपीएफ वाला को बीस रूपया दिए और बुकिंग के झंझट से मुक्त हुए। ट्रेन आई और बोरा सहित चढ़ गए गजोधर। अभी ट्रेन प्लेटफार्म पर रेंग ही रही थी कि तीन चार डेली पैसेंजर दौड़कर दरवाजे पर लटक गए।

ट्रेन ने रफ्तार पकड़ी और एक एक कर सब ऊपर चढ़ गए। एक अधेड़ चिल्लाया "ये कौन बोरा रखा है गेट पर हटाओ इसको।" 

 दूसरा भिनभिनाया "मालगाड़ी बना दिया है एकदम।" 

 तीसरे उत्साही जवान से बोरी धकेल कर टॉयलेट का गेट जाम कर दिया। 

गजोधर चुपचाप देखते रहे। धीरे धीरे सब सेटल हो गया ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली लोग भी बैठ गये। तभी दोनों टांगों को सिकोड़े एक डेली पैसेंजर टॉयलेट के गेट को खोलने लगा। 

गजोधर आगे बढ़े और बोरा हटाकर फिर से बीच राहदारी में कर दिया। पैसेंजर फारिग होकर निकला और बोरी को धकेलकर चलती ट्रेन से नीचे की तरफ उछाल दिया। डिब्बे के मेहनतकश लोग आह आह करने लगे वहीं बाबू लोग उसकी बहादुरी पर वाह वाह कर रहे थे। 

गरीब के पेट पर लात पड़ती है तो सांप की तरफ फुंफकारता है, गजोधर भी फुंफकारे लेकिन ढ़ोरबा सांप से कौन डरता है। कुछ ही देर में कुचाकर चोखा बन गए। 

हाथ पैर जोड़े तब जान छूटी। खुद को सांत्वना देने के लिए लगे कबीरा गाने। 

तेघड़ा स्टेशन पर आरपीएफ वाले चढ़े किसका बोरा है किसका बोरा करके लगे बोरा में संगीन घोंपने। 

गजोधर फुसफुसाये " हमरा है " और धीरे से दूगो दसटकिया बढ़ाये। 

"न न रेट डबल हो गया है "आरपीएफ वालों ने झिड़का। 

 "और नहीं है बस इतना ही बचा है "गजोधर कुरता का जेबी झाड़ के दिखलाए। 

 "कहाँ है अभी पता चल जाएगा ऐ फेंको बोरा को बाहर " एक सिपाही चिल्लाया। 

पैसे हों तो निकले, जब तक गजोधर कुछ कहते दूसरा बोरा भी ट्रेन से बाहर। 

गजोधर धम्म से बैठ गए। बोगी में कुछ देर सन्नाटा छा गया। फिर अचानक से सब लोग सामान समेटने लगे बरौनी आने वाला है धीरे होगा तो आउटर पर निपनिया गुमटी सामने डेली पैसैंजर लोग उतरेंगे। 

 ट्रेन धीमी हुई लोग उतरे, कितने घुटने कितनी लातें गजोधर को लगी हिसाब नहीं। 

थोड़ी देर में बरौनी जंक्शन आ गया ट्रेन बीस मिनट रूकेगी यहां। सब लोग पानी भरने और केला खरीदने उतरे। 

गजोधर भी उतरकर सुधा डेयरी के काउंटर के बगल में गुमसुम से बैठ गये। ट्रेन चली गई और तब गजोधर ने पोटली खोली चार सूखी रोटियां और एक रामलड्डू। जमीन पर फैला दी गजोधर ने उसके टप टप गिरते आसूंओं से रोटियां कुछ नरम पड़ गई थी। 

दुकानवाले से दयाभाव से पूछा " रामरस लोगे।"

गजोधर ने उसकी तरफ देखा तो वो अपना टिफिन खोलकर एक पुड़िया बरामद कर चुका था। गजोधर की तरफ मुड़ते हुए बोला " क्या नाम है।" 

 मुंह में कौर भरे गजोधर घिघियाये " गजोधर दास।" 

 नाम सुनते ही रामरस की पुड़िया उसके हाथ से छूटकर जमीन पर बिखर गई। 

गजोधर चुपचाप कागज पर उसको लगे समेटने आखिर में कुछ छोटे छोटे कण प्लेटफार्म की फर्श पर रह ही गये। तब गजोधर ने पलक से एक बाल उखाड़ा और लगे उसे बुहारने। 

दुकानदार हतप्रभ हो गया था "ये क्या कर रहे हो।" 

 गजोधर ने निर्विकार रूप से उसकी तरफ बिना देखे कहा "आप लोग तो व्यापारी हैं उत्पादन की मेहनत के बारे में नहीं समझ पाओगे।" 


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