दीया
दीया
दलान पर बैठे रामवरण को घरैतिन समाद भेजवाई ढिबरी लालटेन का बत्ती ला दिजिए, दिवाली में लोग नया लगाता है।
हुक्का पाती बाँधने का काम छोड़ वो कुरता हाथ में लिए दक्खिन टोला के लक्ष्मण साव की दूकान की तरफ बढ़ चले। चारों तरफ मुड़ी घुमाए लेकिन मुनुआ कहीं दिखा नहीं। सोच रहे थे उसको भी कुछ पड़ाका खरीद देते। बच्चा है मन तो ललचाता ही होगा। उसकी गरीबी का क्या है वो तो अब आधार कार्ड से लिंक हो गई है। थोड़ी चिंता की लकीरें उभरी अभी गायब है सांझ अन्हारे खेलकूद के आएगा तो फिर दौड़ाएगा। खैर जेहि विधि राखे राम ओहे विधि रहिए।
राम राम करते हुए दूकान पर चढ़े तो लक्ष्मण साव खेसारी बेसन का डब्बा चना बेसन में मिला रहे था। जबावी राम राम करते हुए साव मुस्कुराया " कहू कथि लेबे के है।"
रामवरण स्टूल पर टिकते हुए बोले "अभी तो तीन ठो ढिबरी और एक ठो लालटेन के बत्ती दे दहो बाकि मुनुआ कहीं खेले निकल गैले हन अबै छै तब पड़ाका उड़ाका ले जबो।"
मुनुआ का नाम लेते ही साव भड़क उठा "हो तोहर बेटा त तनी को उमिर में बड़का खेला करेवाला है।"
रामवरण घबराये " कि क देलकै हन तनी हमरो बतावअ् ?"
"अरे उ त नया दिया लेसले हैई। घूम घूम के एमकी गाँव में पटाखा न छोड़े के किरिया खिया रहलो हन। साफ पटाखा के बिकरी मर गैले हन, तीन हिंस रखले हैई अभी तक।"
उनकी आँखें फैली "अच्छा तभिए भोरे से गायब है।"
सावजी अपनी ही गरज में था बत्ती देते हुए बोला " पड़ाका ले न जा कम से कम नेमान करे भर त फोड़बहो कि न।"
रामवरण मनुआ का सोचकर खिले जा रहे थे " न रहे दीजिए, जब बेटा दिया लेस दिया है तो एगो दीया जलाना तो हमरा भी फर्ज होता है, है कि न ?"