kumar gourav

Fantasy

4  

kumar gourav

Fantasy

दधीचि

दधीचि

6 mins
164



बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ रंजन बाबू के लिए सिर्फ नारा नहीं था। इस वाक्य को उन्होंने आत्मसात कर लिया था । संयोग से अधेड़ावस्था में जुड़वां बच्चों के पिता बने । जमाने से उलट बेटी को कान्वेंट में डाला और बेटे को सरकारी स्कूल में । पत्नी ने आपत्ति की तो उसको समझाया दोनों कान्वेंट में पढ़े इतनी हमारी हैसियत नहीं है और बेटे का क्या है नहीं भी पढ़ेगा तो मजदूरी करके जी लेगा । बेटी जात है समय को देखते हुए उसका पढ़ा लिखा होना जरुरी है ।


बेटी भी प्रतिभाशाली थी उसने हमेशा बाप का नाम आगे बढ़ाया । इधर बरगद की छाँव में एक फलदार वृक्ष पनप न सका । बेटा बारहवीं में फेल होकर एक बंगाली डॉक्टर के दुकान में कंपाउंडर हो गया । बेटे की परवाह रंजन बाबू को पहले भी न थी बस कभी कभार खर्च देते वक्त उसको और उसके पुरखों कोलानत मलामत के बहाने याद कर लिया करते थे । अब तो उसने खर्च माँगना भी छोड़ दिया था तो कब आया कब गया की भी खबर रंजन बाबू नहीं रखते ।

बेटी ने मेडिकल इंट्रेंस पासकर रंजन बाबू का नाम सूरज पर टांक दिया । अच्छे नंबरों का फायदा ये हुआ सरकारी कालेज मिल गया तो थोड़ी आर्थिक मोर्चे पर राहत हुई । लेकिन अन्य खर्च भी कम न थे । रंजन बाबू पहले ही रिटायर हो चुके थे । बेटा उनकी नजर में नाकारा ही था सो उससे कोई उम्मीद वे पालते नहीं थे । पत्नी ने घर खर्च के लिए पैसा मांगना धीरे धीरे कम कर दिया था । हाँलाकि उनको भान था बेटा घर में पैसे दे रहा है लेकिन ये तो उसका कर्तव्य है बुढ़ापे में मां बाप का ख्याल करे , सोचकर चुप रह जाते । कभी बेटे के प्रति प्यार जगता भी तो बेटी की चमक के आगे फीका पड़ जाता ।

डॉक्टरी के छह साल कैसे गुजर गये पता भी नहीं चला । 

आखिरी परीक्षा खत्म कर बेटी जब घर आई तो उसने बताया एक सहपाठी से प्यार करती है । रंजन बाबू बहुत खुश हुए रिटायर क्लर्क के लिए डाक्टर बेटी के लिए दामाद ढूंढना कोई हँसी खेल तो नहीं था लेकिन ये समस्या बिना चुटकी बजाये हल हो चुकी थी ।जमाने के चलन से बखूबी वाकिफ थे । डरते डरते लड़केवालों से मिले । बहुत ही अच्छे लोग थे प्रगतिशीलता की प्रतिमूर्ति एकबार भी जातपात धर्म हैसियत कुछ न पूछा ,सीधे सीधे बोल दिया देखिए लड़का लड़की पसंद करते हैं एकदूसरे को तो हमें क्या दिक्कत जीवन तो इन्हें ही साथ बिताना है । आप बस इतना करें की शादी का समारोह हमारी प्रतिष्ठानुसार हो । आखिर इस शहर में चालीस साल से डॉक्टर हैं हम हजारों लोग व्यक्तिगत रूप से जानते हैं ।

बेटी के प्यार में डूबे रंजनबाबू ने चौड़े होकर कह दिया उस सब के लिए निश्चिंत रहे हम क्लर्की से रिटायर हैं लेकिन शादी तो डॉक्टर बिटिया की है । 

रिश्ता तय हो गया तो मुँह मीठा करने का दौर चला उसी मीठे दौर में होनेवाली समधिन ने एक इच्छा और परोस दी । जी हमारा बेटा एमएस करना चाहता हैं यहाँ के चक्कर में रहा तो टाइम लगेगा इसलिए सोचा है लंदन से करवा दें । अब बहू यहाँ रहकर क्या करेगी तो वो भी वहीं से कर लेगी साथ में । लेकिन विदेश में खर्च बहुत हैं तो एक का खर्च आप उठा लें तो बढ़िया वैसे भी दामाद भी तो बेटे जैसा ही होता है ।मुँह में भरी मिठाई ने न निकलने नहीं दिया और जो निकला उसे हाँ ही माना गया । 


दिन मुहूर्त तय हुआ और तैयारियां शुरू हो गई । जीवन की अपनी बचत तो बाप दादे का मकान गिरवी रख रिटायर्ड क्लर्क ने डॉक्टरों की प्रतिष्ठा बचाने का लगभग पूरा इंतजाम कर लिया था कि लड़केवालों का फोन आ गया वो लंदन में एडमिशन की डेट आ गई है सो फीस के पैसे भिजवा दें । 

इस समय पैसे की मांग का मतलब खूब समझते थे । चारों तरफ नजर दौड़ाया कि कहीं से कुछ उधार मिल जाए । लेकिन कोई किस बिना पर उन्हें उधार देता पेंशन घर सब तो झोंक चुके थे शादी की तैयारियों में । आखिर में हताश होकर बैठ गये अगर बेटा नालायक न होता तो ये दिन न देखना पड़ता । सोचते हुए बेटे के बारे में पत्नी से पूछा तो उसने बताया फोन के बारे में सुनते ही खिसक लिया ।बिटिया तो शहर में दोस्तों को कार्ड बाँटने गई हुई थी इधर रंजनबाबू ज्वराक्रांत हो गये ।


आठदिन बाद नमूदार हुआ नालायक बेटा । खाट पर लेटे बाप को पानी पिलाते हुए धीरे से बोला आप चिंता न करें शादी तय तारीख को ही होगी और आप जैसे चाहते थे वैसे ही होगा ।  निराशा के उस माहौल में बेटे के शब्दों ने उन्हें थोड़ी हिम्मत दी । हालांकि वे समझते थे ये कोरे शब्द हैं लेकिन नालायक ने जीवन में उन्हें पहली बार सुख दिया था इस कल्पना ने उन्हें सुखद उत्साह से भर दिया ।  

शब्दों पर भरोसा तब हुआ जब एकबार फिर से लड़केवालों का फोन आया कि एडमिशन हो गया है आप चिंता न करें निश्चिंत होकर शादी की तैयारी करें ।

शादी की तारीख ज्यों ज्यों नजदीक आती जा रही थी रंजनबाबू तेजी सए स्वस्थ्य होते जा रहे थे वहीं बेटे की व्यस्तता और उसके चेहरे का पीलापन बढ़ता ही जा रहा था । थोड़ा खाली समय मिलते ही इच्छा होती बेटे से तैयारी संबंधी कुछ बात करें लेकिन बेटा हमेशा कन्नी काट जाता ।विवाह राजी खुशी संपन्न हो गया । रंजनबाबू भी पुरी तरह स्वस्थ्य हो चुके थे । बेटा बाहर बैठा हलवाई का हिसाब कर रहा था तो उन्होंने देखा एक भरा हुआ गैस सिलेंडर हलवाई अपने सामान के साथ टेम्पो पर लोड कर रहा है । 

उन्होंने उसे रोका और बेटे को आदेश दिया इसे उठाकर अंदर रखो । बेटे ने कहा रहने दीजिए इसके बदले पांच सौ रूपये काट लेंगे । बगल में बैठे बंगाली डॉक्टर ने भी कहा रहने दीजिए तो रंजनबाबू भड़क उठे " तुमलोगों को क्या मालूम पैसा कैसे कमाया जाता है उड़ाये जा रहे हो पंद्रह सौ का सिलेंडर पांच सौ में दे रहे हो । "

बंगाली को चुप रहने का इशारा कर बेटा सिलेंडर उठाकर तेजी से अंदर की तरफ बढ़ चला।उसके हटते ही बंगाली फूट पड़ा " अरे बुढ़ऊ इस शादी के लिए अपनी किडनी बेच दी है उसने वो इतना बोझ नहीं उठा सकता मर जाएगा ।"


चौखट के पास जाकर अचानक से वो तेजी से लड़खड़ाया और गिर पड़ा । चालीस किलो का सिलेंडर उसके ऊपर गिरा और वो फैल गया ।रंजनबाबू दौड़कर पहुंचे उसका सिर उठाकर गोद में रख रोने लगे जब तेरी जरूरत है तो छोड़कर जा रहा है नालायक ।

उसने हाथ जोड़े "आपकी इच्छा थी बेटी पढ़ लिखकर अच्छे घर जाए वो पूरा कर दिया मैंने । बस एकबार लायक बेटा कह दीजिए तो सूकून से चला जाऊं । "हाथ पकड़ लिए उन्होंने " मैं कैसे कह दूं जाने के लिए नालायक कहीं के । " 

फिर उसके आँखों से एक बूंद लुढ़की और  उसी के साथ उसकी गर्दन दूसरी तरफ लुढ़क गई ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Fantasy