Anil Jaswal

Fantasy

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Anil Jaswal

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राजा का अखाड़ा

राजा का अखाड़ा

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दीनू के पिताजी एक नामी पहलवान थे। मां भी नामी पहलवान थी। लेकिन एक बार गांव में महामारी फैली और दोनों की मृत्यु हो गई। अब दीनू अकेला था। लेकिन उसकी रगों में एक पहलवान का खून था। तो वो जब भी गांव में दंगल होता। तो जरूर देखता। उसका भी बहुत मन होता। कि वो भी दंगल लड़े। परंतु अपने आपको अनाथ पाकर। वो अपने मन को समझा लेता। कि यहां तो रोटी के लाले हैं। तो दंगल कौन लड़ेगा। खाली पेट कोई क्या कर सकता। लेकिन वो कसरत सुबह हर रोज करता। जिससे उसके शरीर में जान बहुत थी। उसके मां बाप ने एक गाए पाल रखी थी। उसको वो प्यार से लोकी कहता था। उसकी देखभाल करता। जो भी दुध देती। उसमें कुछ खुद पी लेता। और बाकि बेच देता। सबने उसे मां बाप के मरने के बाद कहा- कि लोकी को बेच डाल। लोकी जैसे ही ये बात सुनती।

जोर गर्दन हिलाती और चिंघाड़ती। मै तो यहां से नहीं जाने वाली। ये मेरा घर है। तुम लोग यहां से चलते बनो। वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। और उधर दीनू भी उसकी हां‌ में हां मिला देता। और कहता- तूं चिंता मत कर लोकी। तूं इस घर की मालकिन। मेरी रंगों में तेरा दूध दौड़ता। भला तुझे कौन निकाल सकता। और बात खत्म हो जाती। एक बार दीनू लोकी को चराने नदी किनारे जा रहा होता है। तो रास्ते में उसे वहां के राजा का अखाड़ा नजर आता है। वो वहां रूक जाता है। और देखने लग पड़ता है। तभी अंदर से राजा के पहलवान उसे डांटते हैं। और भगा देते हैं। ये लोकी को बात नहीं जचती। वो धीरे धीरे नदी किनारे पहुंच जाते हैं। दीनू देखता है। कि लोकी आज चर नहीं रही। परंतु चले जा रही है। दीनू जोर से चिल्लाता है- लोकी अब यहां पर चर ले। मैं भी थोड़ा आराम कर लूं। लेकिन लोकी जोर से चिंघाड़ती है।

और गर्दन हिलाती है। दीनू बोलता है- अच्छा लोकी। यहां नहीं चरना। चल लोकी मैया जहां चलना है चल। दोनों चलते जाते हैं। चलते चलते दीनू देखता है। एक कुटीया के सामने लोकी रूक जाती है। और आवाज लगाती है। अंदर से एक साधू महात्मा निकलता है। और बोलता है- अरे वाह आज तो गऊ मैया ने स्वयं बुलाया। मैया ठहरो। कुछ खाने के लिए देता हूं। तो लोकी फिर चिल्लाती है। अच्छा मैया नाराज हो गई। उधर दीनू दूर खड़ा होता है। साधू महात्मा बोलता है- अरे बेटा क्या नाम है तुम्हारा। दीनू अपना नाम बताता है। अरे गऊ मैया के साथ आया है। आजा अंदर आ जा। ये गऊ मैया का ही घर है। बताओ कैसे आना हुआ। तो दीनू बोलता है। वो पहलवान बनना चाहता है। लेकिन उसको कोई सिखाता नहीं है। जो भी देखो। भगा देता है। साधू महात्मा बोलते हैं- बेटा तुम्हें हमारी गऊ मैया लेकर आई है। गऊ मैया को हम नाराज नहीं कर सकते। ठीक है। हम तुम्हें पहलवानी सिखाएंगे।

इस तरह से दीनू का अभ्यास शुरू हो जाता है। महात्मा उसे टंगड़ी लूट सिखाते हैं। योनि टांग पकड़ कर खींचना। हथोड़ा फोड़- योनि हथोड़े की तरह जमीन पर पटकना। आरी‌चीर- शरीर को बीच से चीर देना। इत्यादि दांव पेंच में निपुणता ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌दिलाते हैं।  

कुछ दिनों बाद राजा का दरबारी दंगल होता है। उसमें राजा का सबसे बड़ा पहलवान ढोंगूं पहलवान सबको ललकारता है। कि कोई भी आकर उससे भीड़ सकता है। और अगर उसे पछाड़ देगा। तो राजा का दरबारी पहलवान घोषित हो जाएगा। बहुत से लोग कोशिश करते हैं। परंतु ढोंगू पहलवान को कोई नहीं हरा पाता।

आखिर साधू महात्मा एक दिन दीनू को बोलते हैं। दीनू अब तुम मेरे सबसे काबिल शिष्य बन चुके हैं। अब तुम ढोंगू पहलवान से दंगल में उतरो।

अब दीनू और ढोंगू पहलवान का दंगल शुरू होता है। दीनू सबसे पहले टंगड़ी लूट का प्रयोग करता है। और ढोंगूं पहलवान धड़ाम करके नीचे गिर जाता है। चारों ओर सन्नाटा छा जाता है। फिर दीनू हथोड़ा फोड़ दांव लगाता है। इससे ढोंगू पहलवान को ऊठाकर जोर से जमीन पर पटक देता है। फिर अंत में वो आरी चीर दांव लगाने लगता है। लेकिन ढोंगू पहलवान अपना अंत देख पांव पड़ जाता है। और जान की भीख मांगता है। ‌‌ये देख दीनू उसे छोड़ देता है। और दीनू पहलवान जिंदाबाद के नारे चारों तरफ लगते हैं। दीनू अब राजा का दरबारी पहलवान बन जाता है।   


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