ईमानदारी रंग लाती।
ईमानदारी रंग लाती।
टकू एक ग्वाला था। मां बाप मर चुके थे। अब वो दुनिया में अकेला था।वो करोड़ी मल सेठ की गाऊशाला से पशु चराने सुबह जंगल में ले जाता था।दिन भर उनको वहां चारता रहता।शाम को वापस गाऊशाला में ले आता।और खाना खाकर वहीं सोया रहता।अभी मुश्किल से दस बरस का था।तो उसकोअधिक दुनिया दारी की समझ भी नहीं थी।योनि अच्छे बुरे का भेद वो नहीं जान पाता था। क्योंकि जिंदगी का तुजर्बा बहुत कम था।फिर भी निहायत इमानदार था।और सेठ का उस पर बहुत विश्वास था।अधिक कुछ सोच नहीं पाता था। जिंदगी मज़े में कट रही थी।दिन भर जंगल में रहने के कारण वो जंगली जानवरों की भाषाएं समझ लेता था।और बोल भी लेता था।एक दिन वो जंगल में खाना लेकर नहीं गया। अचानक उसे बहुत भूख लग पड़ी।अब वो क्या करे।पेड़ों पर फल तो थे। लेकिन उसका कद छोटा होने के कारण उनकर चढ़ नहीं पाता था।और तोड़ नहीं पाता था।तभी उसने जिराफ को वहां से गुजरते हुए देखा।तो उसने झट से बौला- जिराफ चाचा मुझे भूख लगी है। लेकिन मेरा हाथ उपर फलों तक नहीं पहुंचता। मुझे उठा लो। जिससे मैं फल खा सकूं।जिराफ तुरंत झूका।और उसको सर पर बिठाया।पेड़ की चोटी तक पहुंचा दिया।टकू ने पेट भर कर फल खाए।और उतर गया।फिर अपने पशुओं को बुलाया।और गाऊशाला की तरफ चल पड़ा।फिर कुछ समय पश्चात गाऊशाला में पहुंचा।सब पशुओं को बांधा।और स्वयं कंबल ओढ़कर सो गया।जैसे ही सुबह उठा।तो किसी भी पशु ने चारा नहीं खाया था।सब पशु सुस्त थे।सेठ करोड़ीमल को पता चला।वो गाऊशाला में आया।और टकू को पुछा।ये पशुओं को क्या हो गया है।आज सुबह इन्होंने दुध भी नहीं दिया।तो टकू बोला-
"सेठ जी मुझे नहीं मालूम। लेकिन मैंने कुछ नहीं किया।बाकि नौकरों को लगा।कहीं उन सबकी नौकरी न चली जाए। इसलिए उन सब ने कह दिया।","सरकार टकू ठीक ढंग से काम नहीं करता।अब इसे निकाल देना चाहिए।ये सब इसकी ही बदौलत हुआ है।"
टकू सेठ के पांव पड़ता है।और बोलता है- "सेठ जी मैंने कुछ नहीं किया।ये सब आपको बहका रहे हैं।" परंतु सेठ उसकी एक न सुनता है।और उसे निकाल देता है।उधर सारे चिकित्सक कोशिश करते हैं। परंतु पशु ठीक नहीं होते।सेठ की चिंता बढ़ जाती है।आखिर एक गाए मर जाती है।टकू को पता चलता है।तो वो बहुत उदास होता है। लेकिन वो सोचता है। भगवान की मर्जी।
आखिर एक दिन उसको खाने को फिर कुछ नहीं मिलता।तो उसको जंगल की याद आती है।और वो जंगल की ओर चल देता है।रास्ते में उसको उसका दोस्त खरगोश मिलता है।वो बोलता है- "दोस्त तुम इतने दिनों से दिखाई नहीं दिए।क्या बात है?"तो टकू बोलता क्या"क्या बताऊं। दोस्त सेठ ने मुझे निकाल दिया।अब अपना कोई ठिकाना नहीं।समझ नहीं आता। कहां जाऊं।"इस पर खरगोश बोलता है- "सारे के सारे मनुष्य ऐसे ही होते हैं।हमारे रेतु और मेतु को ही देख लो।पहले उनसे जी भरके खेतीबाड़ी करवाते थे।जब से वो खटखटखट वाला दैत्य आया है।उन दोनों को डंडे मारकर निकाल दिया।अब बेचारे खाने पीने से मोहताज हैं। उल्टा दिन भर मनुष्यों का फेंका हुआ।कचरा खाते हैं।"टकू बोलता है- "सो तो ठीक बोला दोस्त।" खरगोश बोलता है- "फिर भी मुझे बताओ। तुम्हें सेठ ने क्यों निकाला।"तो टकू सारी बात बताता है।तो खरगोश बोलता है- "दोस्त तुम चिंता मत करो। तुम्हारे दुश्मनों को जरुर सबक सिखाएंगे।" वो टकु को एक पेड़ के पास ले जाता है।और बोलता है- "पेड़ भाई, थोड़े से अपने पत्ते गिरा दो।मेरी गाए मौसी और भैंस दादी बिमार हैं।"तो पेड़ तुरंत अपने पत्ते गिरा देता है।खरगोश उन पतों को इकट्ठा करता है।और टकू बोलता है।जाओ इन पतों को गाए मौसी और भैंस दादी के चारे में मिला दो।वो तुरंत ठीक हो जाएंगी।टकू तुरंत उन पतों को उठाता है।और सेठ के पास आता है।और बोलता है- "सेठ जी अगर आप इन पतों को पशुओं के चारे में मिलाकर खिलाएं।तो वे सब ठीक हो जाएंगे।जेडसारे नौकर टकू का उपहास उड़ाते हैं।कि इतने बड़े बड़े चिकित्सक असफल हो गए।और अब ये टकू इलाज करेगा।सेठ इलाज करवा करवा कर थक चुका होता है।आखिर वो सोचता है।टकू की बात मानने में क्या हर्ज है।आखिर उनको चारे में वो पत्ते दिए जाते है।और सेठ उसके नौकर हैरान हो जाते हैं।सबके सब पशु ठीक होने लगते हैं।सेठ टकू से माफी मांगता है।और उसे भारी इनाम में राशी देता है। बाकि सब नौकरों की डांटता फटकारता है।
