हिम्मत मत हारीए।
हिम्मत मत हारीए।
रजत एक कालेज का होनहार विद्यार्थी था। हमेशा मैरिट में आता था। लेकिन अचानक एक बार शहर में महामारी फैली गई। ऐसा लगता था पूरा का पूरा शहर ही अस्पताल में पड़ा था। यहां तक की नौबत ये आ गई कि बेड भी किस्मत वालों को ही मिल रहे थे। और सबसे दिक्कत वाली बात ये कि सब अस्पतालों की तरफ भाग रहे थे और इस बीमारी का इलाज कोई भी नहीं था। कहते हैं मुसीबत आती तो चारों ओर से आती है। रजत की मां भी संक्रमित हो गई। अब उसको भी अस्पताल ले जाना था। लेकिन न तो घर में इतने पैसे थे और न ही अस्पताल में बेड। उधर मां की तबीयत दिन रात बिगड़ती जा रही थी। आखिर रजत को लगा अस्पताल तो ले जाना ही पड़ेगा। आखिर उसने शहर के अस्पतालों की वैवसाईट खोली और देखना शुरू किया। लेकिन कोई भी बेड कहीं पर भी खाली नहीं दिख रहा था। रजत बहुत हताश था। भगवान के आगे बार बार दुआ कर रहा था। प्रभू मेरी मां को बचा ले। इसके बिना इस दुनिया में मेरा कौन है। तभी अचानक शहर के बहुत बड़े उधोगपति के घर भी महामारी आ धमकीं। बदकिस्मती से उसे भी कहीं कोई बेड न मिला और रजत के पिता उस उधोगपति के यहां काम कर चुके थे। अपने समय में उसके बहुत विश्वास पात्र थे। उसने शहर में एक मेकशिफट अस्पताल खोला। रजत ने भी वहां अपनी मां को भर्ती करवाने का सोचा। लेकिन लोगों की बाढ़ देखकर काम बहुत कठिन लगा। फिर भी वो अपनी मां को लेकर उस मेकशिफट अस्पताल के बाहर पहुंचा। तो वहां वो उधोगपति भी अपनी गाड़ी से उतर रहा था। उसने रजत की मां को पहचान लिया और समझ गया कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। तुरंत उसने मेकशिफट अस्पताल के स्टाफ को रजत की मां को दाख़िल करने के लिए कहा। अब रजत आश्वस्त था कि अब उसकी मां ठीक लोगों के हाथ में है और जल्दी ही ठीक हो कर घर लौटेगी।