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aarti sharma

Inspirational

3.8  

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प्यारी मोढी

प्यारी मोढी

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एक बेटी के पैदा होने से सबसे ज्यादा खुशी उसके पिता को होती है। लेकिन ये कैसा नसीब है, इस लड़की का पैदा होते ही इसके बाप ने इसका मुंह तक नहीं देखा। रामप्रसाद के घर लक्ष्मी आई है, इनके तो भाग्य ही खुल ग‌ए "काकी कहने लगी"। लेकिन रामप्रसाद के चेहरे पर तनिक भी खुशी नहीं थी। ललिया को इस बात की भनक हों गई थी, कि उसका पति खुश नहीं हैं। ललिया ने अपनी बेटी का नाम मोढी रखा। ललिया अपनी बेटी को हर सुख देना चाहती थी। लेकिन उसकी ये ख्वाहिश अधूरी रह गई। जब मोढी दो साल की थी, तभी ललिया ने अपना दम तोड दिया था। बीना मां की बेटी और न बाप का सुख। मोढी अपने जीवन को एक अनाथ की तरह जी रही थी। पांच साल की उम्र में अपने बाप की गलती से मोढी को अपना एक हाथ गवाना पड़ा। मोढी ने अपने पिता से कोई शिकायत नहीं की।


रामप्रसाद अपनी बेटी को सात साल की उम्र में ही अकेला छोड़ शहर चला गया। और हर दिवाली में अपने घर आता। मोढी अपना जीवन सब्जी बेचकर व्यतित करती। उसकी एक ख्वाहिश थी, कि वह अपने पिता के साथ शहर जाये। और दूसरी तरफ उसके पिता को उसकी तनिक भी फिक्र नहीं थी। मोढी को अपने पिता से कोई शिकायत नहीं थी। उसने आज तक अपने पिता के सामने उफ तक नहीं किया। इन सब के बावजूद मोढी का बाप उसके कमाये हुए पैसों को शराब में उड़ा देता। एक दिन मोढी को शहर से फोन आया कि वह जल्दी शहर आ जा‌ए। मोढी ने सोचा कि उसके पिता ने अपने साथ रहने बुलाया है। उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। लेकिन जब मोढी शहर पहुंची तब उसे पता चला कि उसके पिता की सेहत ठीक नहीं है। मोढी का बाप एक सरकारी अस्पताल में भर्ती था। मोढी को पता चला कि उसका बाप सड़क पर रहता था। मोढी ने निस्वार्थ भाव से अपने पिता की सेवा की। और उसके बाद वह अपने पिता को लेकर एक घर में रहने लगीं। उसने अपनी कमाई के कुछ पैसे बचाकर रखें थे। उन पैसों से गुजारा करने लगी। अचानक एक ऐसी आपदा आ पड़ी पुरे विश्व में जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। कोरोनावायरस यह सुनते ही लोगों में मानों भय का माहौल बनने लगा। मोढी के पिता की सेहत अभी अच्छी भी नहीं हुई थी। मोढी के पास पैसों की तंगी हो गई। इन सब से जुझते हुए मोढी अपने पिता के लिए खाने पीने की व्यवस्था कर रही थी। कि एक दिन वहां के पुलिस ने उस जगह को खाली करने के लिए कहा। मोढी के पास इतने पैसे भी नहीं थे, कि वह शहर से गांव चली जाएं। लेकिन उसे अपने पिता की बहुत चिंता थी। उसने सभी कोशिश की लेकिन उसे निराश के अलावा कुछ नहीं मिला। मोढी ने भी हार नहीं मानी वह अपने पिता को सायकिल पर बैठाकर गांव के लिए निकल पड़ी। एक हाथ की लड़की अपने पिता को सायकिल पर लेकर केवल ३ दिन में अपने गांव पहुंची। उसके इस जज्बे से पुरा देश हैरान रह गया। सभी ने मोढी के जज्बे को सलाम किया। अंत में मोढी के पिता ने कहा कि भगवान ऐसी बेटी सभी को दें। लेकिन मेरे जैसा बाप किसी को ना दे। मोढी ने कहा कि इस वायरस ने कुछ लोगों की खुशियां छिनी है तो कुछ लोगों की खुशियां वापस दी है। कमाई के कारण बेटा मां से दूर रहता लेकिन इस लोकडाउन ने उस मां की खुशियां लोटा दी। ऐसी बहुत सी खुशियां वापस पा कर हम सबको मिलकर इसका सामना करना होगा और भारत को कोरोनावायरस से मुक्त करना होगा।


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