बाल विकास।

बाल विकास।

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माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कारों पर ही बच्चे का व्यवहार और स्वभाव निर्माण होता है। सही ग़लत को समझना, बड़ों का आदर करना, लोगों की सहायता करना। ये सब एक बच्चे को उसके जन्म से सिखाया जाता है। हर माता-पिता की यही सोच होती है कि उसका बच्चा एक अच्छा और कामयाब इंसान बने। केवल माता पिता के संस्कारों पर ही बच्चे निर्भर नहीं होते। उनकी परवरिश में आसपास के लोगों का भी योगदान होता है। अच्छा बनाने में बहुत समय लग जाता है लेकिन किसी बच्चे को बुरा बनाना में किसी भी प्रकार की योगदान की आवश्यकता नहीं होती। कोई भी इंसान भला या बुरा नहीं होता बल्कि परिस्थिति और माहोल उसे बुरा या अच्छा इंसान बना देती है।

मनोज और बबली के दो बच्चे थे। उन दोनों बच्चों का ख्याल उसके माता-पिता बहुत अच्छे से रखते थे। उन दोनों बच्चों को मनोज और बबली बहुत अच्छी परवरिश और अच्छी शिक्षा दे रहे थे। भविष्य में उन दोनों को एक अनोखे रुप में देखा गया। दोनों बहुत अच्छे थे, पढ़ने में, खेल में, हर चीज में वह दोनों बहुत हुशियार थे। मनोज और बबली ने सोचा कि उनके दोनों बच्चे अच्छे और कामयाब इंसान बन ग‌ए हैं, तो अब उन्हें किसी बात की कोई चिंता नहीं होगी भविष्य में। लेकिन कुछ दिनों बाद मनोज और बबली के दोनों बच्चों ने संन्यास लेने की बात अपने माता-पिता से कही।

उन दोनों ने सोचा कि हमने अपने बच्चों को हर बात का ज्ञान दिया लेकिन इन दोनों ने दुनिया को छोड़कर मोक्ष की ओर कदम रख लिया इन सब बातों में इन दोनों को कैसे दिलचस्पी हुई। यह सोचकर मनोज और बबली बहुत परेशान हो गए थे। तभी अगली सुबह को कुछ लोग उन दोनों बच्चों से मिलने आए। उन लोगों को देखते ही मनोज और बबली समझ ग‌ए थे कि इस दुनिया की मोह माया से मुक्त होने का विचार उनके दोनों बच्चे को यहां से आया था। वे लोग मंदिर से आए हुए संन्यासी थे।

तब मनोज और बबली को यह बात समझ में आया कि केवल परिवार ही बच्चे की परवरिश नहीं करता है बल्कि पूरा कुटुंब करता है।


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